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'10 करोड़ साल पहले मेडागास्कर से अलग हुआ था भारत' - Saurashtra Basin Formation

MUMBAI SAURASHTRA BASIN STUDY: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) और राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र, तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा सौराष्ट्र बेसिन के तलछटों का एक आकर्षक ऐतिहासिक अध्ययन सामने आया है. इनका कहना है कि करीब 10 करोड़ साल पहले मेडागास्कर से सौराष्ट्र बेसिन अलग हुआ था. इससे ही भारतीय क्षेत्र का निर्माण हुआ.

MUMBAI SAURASHTRA BASIN STUDY
मुंबई से लगे अरब सागर का तट. (प्रतीकात्मक तस्वीर) (ANI)
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By PTI

Published : Aug 1, 2024, 1:41 PM IST

मुंबई: पश्चिमी गुजरात के तटीय क्षेत्र से मुंबई के उत्तर तक फैले हुए सौराष्ट्र बेसिन का निर्माण लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले मेडागास्कर से भारत के अलग होने से हुआ था. हाल ही में हुए अध्ययन के निष्कर्षों से यह जानकारी मिलती है.

सौराष्ट्र बेसिन के तलछटों का यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे की ओर से तिरुवनंतपुरम स्थित राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (एनसीईएसएस) के साथ मिलकर किया जा रहा है. इस अध्ययन का उद्देश्य इस क्षेत्र के पैलियोजियोग्राफी के बारे में जानकारी प्राप्त करना है. पैलियोजियोग्राफी, अध्ययनों का एक तरीका है जो हमें बताता है कि अतीत में पृथ्वी के हिस्से कैसे दिखते थे.

अध्ययन का उद्देश्य इस क्षेत्र के भूवैज्ञानिक इतिहास की समझ को बेहतर बनाना है. इसके साथ ही बेसिन के खनिजों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाना है. सौराष्ट्र बेसिन पश्चिमी गुजरात और मुंबई के उत्तर में समुद्र तट पर है. यह समुद्र और जमीन दोनों को मिलाकर 2,40,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.

अध्ययन में कहा गया है कि यहां का अधिकांश भूभाग डेक्कन ट्रैप नामक ज्वालामुखीय चट्टानों में दबा हुआ है. अंदाजा लगाया जाता है कि यह 66 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के दौरान पश्चिमी घाट पर ज्वालामुखी विस्फोटों से निर्मित हुए थे. इसमें कोई शक नहीं है कि ज्वालामुखीय राख और चट्टानों के नीचे तलछट भारतीय उपमहाद्वीप की सहस्राब्दियों की यात्रा को छिपाये हुए है.

अध्ययन के प्रमुख लेखक और आईआईटी बॉम्बे के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. पवन कुमार रजक ने कहा कि सौराष्ट्र बेसिन का निर्माण लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले मेडागास्कर से भारत के अलग होने से हुआ था. अलग होने से पहले, भारत, मेडागास्कर और सेशेल्स एक साथ जुड़े हुए थे. अलग होने के बाद, भारत का पश्चिमी किनारा तराई बन गया. वहीं इसके उत्तरी और उत्तर-पूर्वी हिस्से ने उच्चभूमि का रूप ले लिया.

सौराष्ट्र बेसिन, कैम्बे, कच्छ और नर्मदा जैसे आस-पास के बेसिनों के साथ, भारत के पश्चिमी सीमांत का एक हिस्सा है. जिसे हाइड्रोकार्बन संसाधनों के लिए संभावित स्थलों के रूप में पहचाना गया है. इसलिए, इन तलछटों की उत्पत्ति को जानना अन्वेषण प्रयासों और इन संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में सहायता कर सकता है.

आईआईटी बॉम्बे में पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शांतनु बनर्जी ने कहा कि अगली योजना उसी क्षेत्र में काम करना है. उन्होंने कहा कि हम स्रोत क्षेत्रों और उस समय के पैलियोग्राफिक परिवर्तनों की हमारी समझ को परिष्कृत करना चाहते हैं. हमें यह जांचना होगा कि क्या तलछट मेडागास्कर और सेशेल्स से भी प्राप्त हुए थे. उन्होंने कहा कि हम अध्ययन क्षेत्र के लिए भूकंपीय डेटा प्राप्त करने के लिए तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) से संपर्क करने की योजना बना रहे हैं. इससे हमें बेसिन विन्यास का निर्धारण करने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही हम अरब सागर में तलछट का पता लगा सकेंगे.

अध्ययन में प्राचीन नदी प्रणालियों में पैलियो-ड्रेनेज पैटर्न भी पाए गए, जो यह समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि भूगर्भीय बलों के कारण समय के साथ परिदृश्य कैसे विकसित हुए और उनका आकार कैसे बदला. अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में, ये निष्कर्ष प्राचीन नदी प्रणालियों के मार्गों पर प्रकाश डाल सकते हैं.

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सौराष्ट्र बेसिन के तलछटों का यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे की ओर से तिरुवनंतपुरम स्थित राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र (एनसीईएसएस) के साथ मिलकर किया जा रहा है. इस अध्ययन का उद्देश्य इस क्षेत्र के पैलियोजियोग्राफी के बारे में जानकारी प्राप्त करना है. पैलियोजियोग्राफी, अध्ययनों का एक तरीका है जो हमें बताता है कि अतीत में पृथ्वी के हिस्से कैसे दिखते थे.

अध्ययन का उद्देश्य इस क्षेत्र के भूवैज्ञानिक इतिहास की समझ को बेहतर बनाना है. इसके साथ ही बेसिन के खनिजों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाना है. सौराष्ट्र बेसिन पश्चिमी गुजरात और मुंबई के उत्तर में समुद्र तट पर है. यह समुद्र और जमीन दोनों को मिलाकर 2,40,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है.

अध्ययन में कहा गया है कि यहां का अधिकांश भूभाग डेक्कन ट्रैप नामक ज्वालामुखीय चट्टानों में दबा हुआ है. अंदाजा लगाया जाता है कि यह 66 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के दौरान पश्चिमी घाट पर ज्वालामुखी विस्फोटों से निर्मित हुए थे. इसमें कोई शक नहीं है कि ज्वालामुखीय राख और चट्टानों के नीचे तलछट भारतीय उपमहाद्वीप की सहस्राब्दियों की यात्रा को छिपाये हुए है.

अध्ययन के प्रमुख लेखक और आईआईटी बॉम्बे के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. पवन कुमार रजक ने कहा कि सौराष्ट्र बेसिन का निर्माण लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले मेडागास्कर से भारत के अलग होने से हुआ था. अलग होने से पहले, भारत, मेडागास्कर और सेशेल्स एक साथ जुड़े हुए थे. अलग होने के बाद, भारत का पश्चिमी किनारा तराई बन गया. वहीं इसके उत्तरी और उत्तर-पूर्वी हिस्से ने उच्चभूमि का रूप ले लिया.

सौराष्ट्र बेसिन, कैम्बे, कच्छ और नर्मदा जैसे आस-पास के बेसिनों के साथ, भारत के पश्चिमी सीमांत का एक हिस्सा है. जिसे हाइड्रोकार्बन संसाधनों के लिए संभावित स्थलों के रूप में पहचाना गया है. इसलिए, इन तलछटों की उत्पत्ति को जानना अन्वेषण प्रयासों और इन संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में सहायता कर सकता है.

आईआईटी बॉम्बे में पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर शांतनु बनर्जी ने कहा कि अगली योजना उसी क्षेत्र में काम करना है. उन्होंने कहा कि हम स्रोत क्षेत्रों और उस समय के पैलियोग्राफिक परिवर्तनों की हमारी समझ को परिष्कृत करना चाहते हैं. हमें यह जांचना होगा कि क्या तलछट मेडागास्कर और सेशेल्स से भी प्राप्त हुए थे. उन्होंने कहा कि हम अध्ययन क्षेत्र के लिए भूकंपीय डेटा प्राप्त करने के लिए तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) से संपर्क करने की योजना बना रहे हैं. इससे हमें बेसिन विन्यास का निर्धारण करने में मदद मिलेगी. इसके साथ ही हम अरब सागर में तलछट का पता लगा सकेंगे.

अध्ययन में प्राचीन नदी प्रणालियों में पैलियो-ड्रेनेज पैटर्न भी पाए गए, जो यह समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि भूगर्भीय बलों के कारण समय के साथ परिदृश्य कैसे विकसित हुए और उनका आकार कैसे बदला. अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में, ये निष्कर्ष प्राचीन नदी प्रणालियों के मार्गों पर प्रकाश डाल सकते हैं.

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