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SpaDeX को सफलतापूर्वक लॉन्च करके ISRO ने रचा इतिहास, जानें इसके फायदे - ISRO LAUNCHES SPADEX

साल 2024 खत्म होने से ठीक पहले इसरो ने स्पेडेक्स को सफलतापूर्वक लॉन्च करके बड़ी उपलब्धि हासिल की है. आइए इसके बारे में जानते हैं.

ISRO launches SpaDeX
इसरो ने स्पेडेक्स को सफलतापूर्वक किया लॉन्च (ISRO)
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By ETV Bharat Tech Team

Published : Dec 31, 2024, 1:51 PM IST

हैदराबाद: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (IRSO) ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. इसरो ने बीते सोमवार यानी 30 दिसंबर 2024 की रात 10:00:15 बजे स्पेडेक्स (Space Docking Experiment) यानी SpaDeX लॉन्च करके इतिहास रच दिया है. इसरो ने श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से स्पेडेक्स को लॉन्च किया, जिसने PSLV-C60 के साथ अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरी. इसरो की यह कामयाबी दुनिया में भारतीय स्पेस प्रोग्राम की ताकत का प्रदर्शन कर रही है.

SpaDeX क्या है?

स्पेडेक्स का फुल फॉर्म स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (Space Docking Experiment) है. यह एक ऐसा एक्सपेरीमेंट है, जिसमें दो सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष के लो अर्थ ऑर्बिट में एक-दूसरे को ढूंढने, जोड़ने, सामान ट्रांसफर करने और अलग करने की टेस्टिंग की जाती है. आइए हम आपको स्पेडेक्स के इस प्रोसेस को आसान भाषा में समझाते हैं. जैसा कि हमने आपको बताया कि स्पेडेक्स में दो सैटेलाइट्स होती हैं, जिनमें से एक को चेज़र और दूसरे को टारगेट कहा जाता है. इस दोनों के बीच दो तरह के प्रोसेस होते हैं:

डॉकिंग: जब एक सैटेलाइट यानी चेज़र अंतरिक्ष में पहले से मौजूद दूसरे सैटेलाइट यानी टारगेट को ढूंढकर उससे जुड़ता है तो उसे डॉकिंग कहते हैं. यह जुड़ाव कुछ ऐसा होता है, जैसे किसी ट्रेन के दो कोच आपस में जुड़ते हैं और फिर अंदर के लोग एक-दूसरे कोच में जा सकते हैं.

अनडॉकिंग: डॉकिंग की विपरित प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं. जब दोनों सैटेलाइट्स एक-दूसरे से अलग होते हैं तो उस प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को ऑटोनोमस डॉकिंग कहते हैं.

डॉकिंग और अनडॉकिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल स्पेस में घूमने वाले सैटेलाइट्स को रिसोर्सेज़ पहुंचाने, रिफ्यूलिंग करने या किसी जरूरी सामान को ट्रांसफर करने जैसे कामों के लिए किया जाता है. डॉकिंग और अनडॉकिंग के कारण अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक स्पेस में रहकर अपने मिशन को सफल बना पाते हैं. इस कारण भविष्य में भारत के तमाम स्पेस प्रोग्राम की सफलता के लिए स्पेडेक्स का सफलतापूर्वक लॉन्च होना काफी जरूरी था.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के इस स्पेडेक्स मिशन का मकसद भविष्य में भारत के अंतरिक्ष स्टेशन, चंद्रमा मिशन समेत अन्य कई बड़े अंतरिक्ष मिशन्स में सफलता पाना है. स्पेडेक्स का सफलतापूर्वक लॉन्च दुनिया को यह संदेश देता है कि अब भारत इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी का निर्माण खुद अपने दम पर भी कर सकता है.

30 दिसंबर की रात को स्पेडेक्स को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद इसरो ने अपने आधिकारिक एक्स (पुराना नाम ट्विटर) अकाउंट से कुछ शानदार विजुअल्स पोस्ट किए हैं, जो इस ऐतिहासिक मिशन को दिखा रहा है.

स्पेडेक्स की कुछ खास बातें:

  • SpaDeX में दो छोटे सैटेलाइट्स शामिल हैं, SDX01 (Chaser) और SDX02 (Target), जिनका वजन लगभग 220 किलोग्राम है.
  • इन सैटेलाइट्स को 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक सर्कुलर ऑर्बिट में प्लेस किया जाएगा.
  • उसके बाद ये सैटेलाइट्स इनमें मौजूद अत्याधुनिक सेंसर और एल्गोरिदम का उपयोग करके एक-दूसरे सैटेलाइट्स की पहचान करेंगे, एलाइंग करेंगे और डॉक करेंगे.
  • यह एक ऐसी उपलब्धि होगी, जिसे अभी तक सिर्फ कुछ चुनिंदा देशों ने ही हासिल किया है.
  • इस प्रयोग को पूरा करने के बाद भारत, अमेरिका के नासा (NASA), रूस, चीन और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएंगे, जो ऑटोनोमस डॉकिंग करने में सक्षम हैं.
  • डॉकिंग की प्रक्रिया आज यानी 31 दिसंबर 2024 से शुरू होगी और फाइनल डॉकिंग 7 जनवरी 2025 तक हो सकती है.

इस मिशन के फायदे

ऐसा माना जा रहा है कि इसरो के इस मिशन की सफलता के बाद अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बनने और चंद्रयान-4 प्रोजेक्ट को सफल बनाने में मदद मिलेगी.

हैदराबाद: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (IRSO) ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. इसरो ने बीते सोमवार यानी 30 दिसंबर 2024 की रात 10:00:15 बजे स्पेडेक्स (Space Docking Experiment) यानी SpaDeX लॉन्च करके इतिहास रच दिया है. इसरो ने श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से स्पेडेक्स को लॉन्च किया, जिसने PSLV-C60 के साथ अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरी. इसरो की यह कामयाबी दुनिया में भारतीय स्पेस प्रोग्राम की ताकत का प्रदर्शन कर रही है.

SpaDeX क्या है?

स्पेडेक्स का फुल फॉर्म स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (Space Docking Experiment) है. यह एक ऐसा एक्सपेरीमेंट है, जिसमें दो सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष के लो अर्थ ऑर्बिट में एक-दूसरे को ढूंढने, जोड़ने, सामान ट्रांसफर करने और अलग करने की टेस्टिंग की जाती है. आइए हम आपको स्पेडेक्स के इस प्रोसेस को आसान भाषा में समझाते हैं. जैसा कि हमने आपको बताया कि स्पेडेक्स में दो सैटेलाइट्स होती हैं, जिनमें से एक को चेज़र और दूसरे को टारगेट कहा जाता है. इस दोनों के बीच दो तरह के प्रोसेस होते हैं:

डॉकिंग: जब एक सैटेलाइट यानी चेज़र अंतरिक्ष में पहले से मौजूद दूसरे सैटेलाइट यानी टारगेट को ढूंढकर उससे जुड़ता है तो उसे डॉकिंग कहते हैं. यह जुड़ाव कुछ ऐसा होता है, जैसे किसी ट्रेन के दो कोच आपस में जुड़ते हैं और फिर अंदर के लोग एक-दूसरे कोच में जा सकते हैं.

अनडॉकिंग: डॉकिंग की विपरित प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं. जब दोनों सैटेलाइट्स एक-दूसरे से अलग होते हैं तो उस प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को ऑटोनोमस डॉकिंग कहते हैं.

डॉकिंग और अनडॉकिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल स्पेस में घूमने वाले सैटेलाइट्स को रिसोर्सेज़ पहुंचाने, रिफ्यूलिंग करने या किसी जरूरी सामान को ट्रांसफर करने जैसे कामों के लिए किया जाता है. डॉकिंग और अनडॉकिंग के कारण अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक स्पेस में रहकर अपने मिशन को सफल बना पाते हैं. इस कारण भविष्य में भारत के तमाम स्पेस प्रोग्राम की सफलता के लिए स्पेडेक्स का सफलतापूर्वक लॉन्च होना काफी जरूरी था.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के इस स्पेडेक्स मिशन का मकसद भविष्य में भारत के अंतरिक्ष स्टेशन, चंद्रमा मिशन समेत अन्य कई बड़े अंतरिक्ष मिशन्स में सफलता पाना है. स्पेडेक्स का सफलतापूर्वक लॉन्च दुनिया को यह संदेश देता है कि अब भारत इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी का निर्माण खुद अपने दम पर भी कर सकता है.

30 दिसंबर की रात को स्पेडेक्स को सफलतापूर्वक लॉन्च करने के बाद इसरो ने अपने आधिकारिक एक्स (पुराना नाम ट्विटर) अकाउंट से कुछ शानदार विजुअल्स पोस्ट किए हैं, जो इस ऐतिहासिक मिशन को दिखा रहा है.

स्पेडेक्स की कुछ खास बातें:

  • SpaDeX में दो छोटे सैटेलाइट्स शामिल हैं, SDX01 (Chaser) और SDX02 (Target), जिनका वजन लगभग 220 किलोग्राम है.
  • इन सैटेलाइट्स को 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक सर्कुलर ऑर्बिट में प्लेस किया जाएगा.
  • उसके बाद ये सैटेलाइट्स इनमें मौजूद अत्याधुनिक सेंसर और एल्गोरिदम का उपयोग करके एक-दूसरे सैटेलाइट्स की पहचान करेंगे, एलाइंग करेंगे और डॉक करेंगे.
  • यह एक ऐसी उपलब्धि होगी, जिसे अभी तक सिर्फ कुछ चुनिंदा देशों ने ही हासिल किया है.
  • इस प्रयोग को पूरा करने के बाद भारत, अमेरिका के नासा (NASA), रूस, चीन और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएंगे, जो ऑटोनोमस डॉकिंग करने में सक्षम हैं.
  • डॉकिंग की प्रक्रिया आज यानी 31 दिसंबर 2024 से शुरू होगी और फाइनल डॉकिंग 7 जनवरी 2025 तक हो सकती है.

इस मिशन के फायदे

ऐसा माना जा रहा है कि इसरो के इस मिशन की सफलता के बाद अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के बनने और चंद्रयान-4 प्रोजेक्ट को सफल बनाने में मदद मिलेगी.

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