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गढ़वाल विवि छात्रों और किसानों को दे रहा मछली उत्पादन का प्रशिक्षण, स्वरोजगार से होंगे मालामाल

जंतु विज्ञान विभाग कर रहा 3 क्विंटल मछलियों का उत्पादन, बाजार में बेचकर हो रही आमदनी

FISH PRODUCTION TRAINING
गढ़वाल विवि में मछली उत्पादन प्रशिक्षण (Photo courtesy- Garhwal University)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 21, 2024, 10:33 AM IST

Updated : Oct 21, 2024, 3:59 PM IST

श्रीनगर: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अब पारंपरिक खेती से किसानों की आमदनी नहीं हो रही है. साल भर मेहनत करने के बाद भी उनकी फसल से इतना पैसा नहीं मिल पाता कि वे अगली फसल के लिए बीज भी खरीद सकें. ऐसी स्थिति में श्रीनगर स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय का जंतु विज्ञान विभाग किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, ताकि वे मछली पालन से आय अर्जित कर सकें.

गढ़वाल विवि में मत्स्य पालन का प्रशिक्षण: इस वर्ष जंतु विज्ञान विभाग ने अपनी फिश हैचरी में 3 क्विंटल पंगास, रोहू, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन कर किसानों को प्रशिक्षण दिया है, ताकि पर्वतीय क्षेत्रों के किसान पारंपरिक खेती के साथ मछली पालन के क्षेत्र में काम कर सकें.

गढ़वाल विवि छात्रों और किसानों को दे रहा मछली उत्पादन का प्रशिक्षण (Video- ETV Bharat)

जंतु विज्ञान विभाग दे रहा मछली पालन का प्रशिक्षण: जंतु विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक प्रोफेसर आरएस फर्त्याल ने ईटीवी भारत को बताया कि उनके द्वारा चौरस में पंगास, जयंती रोहू और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है. उनका उद्देश्य उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे उनको आमदमी हो सके.

छात्रों को स्वरोजगार के लिये कर रहे प्रोत्साहित: प्रो आरएस फर्त्याल बताते हैं कि सरकार लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रही है. वे फिशरी के छात्रों को मछली पालन के बारे में जानकारी दे रहे हैं, ताकि पढ़ाई पूरी करने के बाद जिन छात्रों के पास भूमि है, वे मछली पालन कर स्वरोजगार शुरू कर सकें. इसके साथ ही, छात्र यहां मछली पालन कर उसे बाजार में बेच रहे हैं और उसी आय से अगली बार मछली पालन के लिए निवेश कर रहे हैं.

पंगास मछली के उत्पाद से होगा अच्छा मुनाफा: प्रो फर्त्याल ने बताया कि उनके द्वारा लगभग 3 क्विंटल मछली का बीज डाला गया है. अभी तक 2 से 3 दिन में 40 किलो तक मछली वे बाजार में बेच चुके हैं. उन्होंने कहा कि पंगास मछली लगभग 6 माह में बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी मुनाफा होता है. जो किसान मछली पालन का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, वे जंतु विज्ञान विभाग में आकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और प्रशिक्षण ले सकते हैं.

हमने पिछले साल भी मछली उत्पादन का प्रशिक्षण दिया था. इस बार में पंगास की संख्या बढ़ाई है. हम किसानों को मछली पालन के लिए प्रेरित कर रहे हैं. हम अपने छात्रों को इसलिए प्रशिक्षित कर रहे हैं कि पढ़ाई के बाद अगर वो खाली रहते हैं तो मछली पालन से स्वरोजगार कर सकते हैं. हमारी सरकार भी लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही है.
-प्रो आर एस फर्त्याल, जंतु वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि-

मत्य पालन प्रशिक्षण से छात्र उत्साहित: एमएससी के छात्र अजय भूषण ने बताया कि यहां पर मछली पालन और पॉन्ड मैनेजमेंट के बारे में बताया जाता है. विभाग में फिश हैचरी होने के चलते उन्हें यहां प्रैक्टिकल जानकारी मिल जाती है. मछली पालन स्वरोजगार का काफी अच्छा जरिया है और पर्वतीय क्षेत्रों में किसान मछली पालन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

इस प्रशिक्षण में हम मछली के बारे में बहुत सारी जानकारी ले रहे हैं. हम यहां जान रहे हैं मछली कैसी होती है. मछली क्या व्यवहार, खानपान क्या है. साउथ एशिया में मछली का बहुत बड़ी संख्या में उत्पादन होता है. वहां लोग इसे रोजगार के रूप में अपनाते हैं. हमारे यहां भी इसे स्वरोजगार का अच्छा माध्यम बनाया जा सकता है.

-अजय भूषण, छात्र, एमएससी, गढ़वाल विवि-

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श्रीनगर: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अब पारंपरिक खेती से किसानों की आमदनी नहीं हो रही है. साल भर मेहनत करने के बाद भी उनकी फसल से इतना पैसा नहीं मिल पाता कि वे अगली फसल के लिए बीज भी खरीद सकें. ऐसी स्थिति में श्रीनगर स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय का जंतु विज्ञान विभाग किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, ताकि वे मछली पालन से आय अर्जित कर सकें.

गढ़वाल विवि में मत्स्य पालन का प्रशिक्षण: इस वर्ष जंतु विज्ञान विभाग ने अपनी फिश हैचरी में 3 क्विंटल पंगास, रोहू, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन कर किसानों को प्रशिक्षण दिया है, ताकि पर्वतीय क्षेत्रों के किसान पारंपरिक खेती के साथ मछली पालन के क्षेत्र में काम कर सकें.

गढ़वाल विवि छात्रों और किसानों को दे रहा मछली उत्पादन का प्रशिक्षण (Video- ETV Bharat)

जंतु विज्ञान विभाग दे रहा मछली पालन का प्रशिक्षण: जंतु विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक प्रोफेसर आरएस फर्त्याल ने ईटीवी भारत को बताया कि उनके द्वारा चौरस में पंगास, जयंती रोहू और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन किया जा रहा है. उनका उद्देश्य उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को मछली पालन के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे उनको आमदमी हो सके.

छात्रों को स्वरोजगार के लिये कर रहे प्रोत्साहित: प्रो आरएस फर्त्याल बताते हैं कि सरकार लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रही है. वे फिशरी के छात्रों को मछली पालन के बारे में जानकारी दे रहे हैं, ताकि पढ़ाई पूरी करने के बाद जिन छात्रों के पास भूमि है, वे मछली पालन कर स्वरोजगार शुरू कर सकें. इसके साथ ही, छात्र यहां मछली पालन कर उसे बाजार में बेच रहे हैं और उसी आय से अगली बार मछली पालन के लिए निवेश कर रहे हैं.

पंगास मछली के उत्पाद से होगा अच्छा मुनाफा: प्रो फर्त्याल ने बताया कि उनके द्वारा लगभग 3 क्विंटल मछली का बीज डाला गया है. अभी तक 2 से 3 दिन में 40 किलो तक मछली वे बाजार में बेच चुके हैं. उन्होंने कहा कि पंगास मछली लगभग 6 माह में बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी मुनाफा होता है. जो किसान मछली पालन का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, वे जंतु विज्ञान विभाग में आकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और प्रशिक्षण ले सकते हैं.

हमने पिछले साल भी मछली उत्पादन का प्रशिक्षण दिया था. इस बार में पंगास की संख्या बढ़ाई है. हम किसानों को मछली पालन के लिए प्रेरित कर रहे हैं. हम अपने छात्रों को इसलिए प्रशिक्षित कर रहे हैं कि पढ़ाई के बाद अगर वो खाली रहते हैं तो मछली पालन से स्वरोजगार कर सकते हैं. हमारी सरकार भी लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही है.
-प्रो आर एस फर्त्याल, जंतु वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि-

मत्य पालन प्रशिक्षण से छात्र उत्साहित: एमएससी के छात्र अजय भूषण ने बताया कि यहां पर मछली पालन और पॉन्ड मैनेजमेंट के बारे में बताया जाता है. विभाग में फिश हैचरी होने के चलते उन्हें यहां प्रैक्टिकल जानकारी मिल जाती है. मछली पालन स्वरोजगार का काफी अच्छा जरिया है और पर्वतीय क्षेत्रों में किसान मछली पालन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

इस प्रशिक्षण में हम मछली के बारे में बहुत सारी जानकारी ले रहे हैं. हम यहां जान रहे हैं मछली कैसी होती है. मछली क्या व्यवहार, खानपान क्या है. साउथ एशिया में मछली का बहुत बड़ी संख्या में उत्पादन होता है. वहां लोग इसे रोजगार के रूप में अपनाते हैं. हमारे यहां भी इसे स्वरोजगार का अच्छा माध्यम बनाया जा सकता है.

-अजय भूषण, छात्र, एमएससी, गढ़वाल विवि-

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Last Updated : Oct 21, 2024, 3:59 PM IST
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