बस्तर : वर्ष 2024 बीतने में अब खुछ ही पल बचे रह गए हैं. जिसके बाद नए साल 2025 की शुरुआत होगी. वर्ष 2024 में बस्तर के गांवों ने इतिहास भी रचा है. इनमें एक गांव है चांदामेटा. इस गांव की झोली में 2024 ने खुशियां तो डाली ही, लेकिन साल बीतने के दौरान पूरे गांव को रूला भी दिया. यह गांव बस्तर जिले के अंतिम छोर में उड़ीसा राज्य के सीमावर्ती क्षेत्र में बसा हुआ है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र है.
विकास की राह में चांदामेटा गांव : चांदामेटा गांव, नक्सल संगठन का ट्रेनिंग सेंटर हुआ करता था, जहां नक्सली अपने लाल लड़ाकों को ट्रेनिंग दिया करते थे. पहाड़ों की ऊंची चोटी पर बसा यह गांव बीते वर्षों में नक्सल मुक्त हुआ, जिसके बाद चांदामेटा गांव में विकास के कार्य शुरू हुए. विकास की सीढ़ी के तौर पर चांदामेटा को मुख्यालय तक जोड़ने के लिए सड़क का निर्माण कराया गया, जिसके बाद यहां आंगनबाड़ी और स्कूल की घंटी बजी.
आजादी के बाद पहली बार मतदान : चांदामेटा में विकास कार्य होने के चलते निर्वाचन आयोग ने लोगों की सुविधा को देखते हुए यहां मतदान केंद्र की स्थापना भी की. साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में चांदामेटा के ग्रामीणों ने इतिहास रचते हुए आजादी के बाद पहली बार अपने ही मतदान केंद्र में वोट डाला. इससे पहले चांदामेटा के कुछ ही ग्रामीण वोट डालने के लिए छिंदगुर पोलिंग बूथ आते थे. क्योंकि उन्हें पहाड़ की पथरीली व पगडंडियों वाले रास्ते पर 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. इस वजह से वोटिंग प्रतिशत भी कम रहती थी. लेकिन इस बार चांदामेटा में पोलिंग बूथ बनने के बाद सभी वर्ग के लोगों ने बढ़ चढ़कर वोट डाला, जिससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई है.
सड़क हादसे से पसरा मातम : साल 2024 जाते जाते चांदामेटा के ग्रामीणों के आंखों में आंसु भी दे गया है. 21 दिसम्बर को चांदामेटा में एक बड़ा सड़क हादसा हो गया. चांदामेटा से 7 किलोमीटर दूर कोलेंगे में सप्ताहित बाजार के लिए ग्रामीणों को लेकर जा रहा मिनी ट्रक कैम्प के पास घाट से उतरने के दौरान अचानक अनियंत्रित होकर पलट गया. इस हादसे में 7 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई. वहीं, 43 ग्रामीण घायल हो गए. जिससे चांदामेटा गांव में मातम पसर गया. इसी वजह से 2024 का शुरुआती समय ग्रामीणों के लिए खुशियों वाला रहा तो अंत दुखों से भरा रहा है.