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विश्व गौरैया दिवस: 12 साल पहले हुई थी गौरैया को बचाने की शुरूआत, आज किस पायदान पर पहुंचे हम, पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट - Worlds Sparrow Day

World's Sparrow Day: एक समय था जब आंगन में बहुत सारी नन्हीं चिड़िया चहचहाती नजर आती थी लेकिन अब धीरे-धीरे चिड़िया की वो मधुर आवाज कानों से दूर होती जा रही है. वर्ल्ड्स स्पैरो डे पर पढ़िए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट जिसमें नन्हीं गौरैया की सभी खासियत आप तक पहुंचाने की कोशिश की गई है.

World's Sparrow Day
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Mar 20, 2024, 10:28 AM IST

Updated : Mar 20, 2024, 1:21 PM IST

नई दिल्ली: 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस (World's Sparrow Day)मनाया जा रहा है, इस दिन को मनाने का उद्देश्य है गौरेया चिड़िया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके लिए हमारे आस पास का माहौल बेहतर करना. गौरेया चिड़िया को घरेलू चिड़िया भी कहा जाता है क्योंकि ये घरों के अंदर भी घोसले बनकर रह लेती है, एक समय था जब गौरेया चिड़िया विलुप्त होने की कगार पर थी तब दिल्ली में 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गौरेया के संरक्षण के लिए इसे राजकीय पक्षी घोषित किया. इसके बाद दिल्ली के राजकीय पक्षी गौरया के संरक्षण के लिए स्पैरो नाम से कई मुहिम शुरू की गई. इससे दिल्ली में गौरैया की संख्या बढ़ी है. विश्व गौरेया दिवस पर पेश है ईटीवी भारत दिल्ली की स्पेशल रिपोर्ट.

विश्व गौरैया दिवस पर खास रिपोर्ट

घर के आंगन में आकर चहचहाती हुई दाने चुगने वाली गौरैया एक दशक पहले दिल्ली में समाप्ती की कगार पर पहुंच चुकी थी. इसके पीछे का मुख्य कारण शहरीकरण, घटते पेड़ और बढ़ता प्रदूषण था. लेकिन बीते कुछ सालों से चल रहे जागरूकता अभियान के बाद गौरेया चिड़िया की संख्या में इजाफा हुआ है.

दिल्ली ज़ू में क्या इंतजाम?

सेंट्रल जू अथॉरिटी की डीआईजी और दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क की डायरेक्टर आकांक्षा महाजन के मुताबिक पिछले एक दशक में गौरैया की संख्या में सुधार हुआ है. लोग विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया गया है. दिल्ली जू में बड़ी संख्या में गौरैया रहती हैं. क्योंकि यहां पर हजारों के संख्या में पेड़ पौधे हैं. जिससे तापमान और प्रदूषण भी कम रहता है. दिल्ली जू के अधिकारियों के मुताबिक गौरैया अंडे देने के वक्त अपना घोसले बनाती है. ज्यादातर वो झाड़ियों में रहती हैं. जगह जगह लोग चिड़ियों के लिए घोसले बनाते हैं लेकिन गौरैया इंसानों के बनाए घास फूस के घोसलों में बहुत कम आती हैं. अगर लकड़ी का घोसला बना दिया जाए, तो उसमें गौरैया घासफूस लाकर अपना घोसला बनाकर आराम से रह सकती है.

विश्व गौरैया दिवस:
विश्व गौरैया दिवस

गौरैया मनुष्यों के बीच रहने वाली पक्षी है. दिल्ली जू में जगह-जगह लकड़ी के घोसले बनाए गए हैं, जिनमें गौरैया रहती हैं. गौरैया पेड़ पौधों के बीच रहकर दानेा खाकर जी सकती है. जो दिल्ली जू में उन्हे पर्याप्त मात्रा में दाना पानी मिल जाता है.

दिल्ली में इन कारणों से विलुप्त हो रहीं गौरैया

दिल्ली में शहरीकरण के साथ पेड़ पौधे भी कम होते चले गए. इमारतें बनती गईं और इमारतों से बालकनी और खिड़कियां भी गायब होते चले गए. घरों में घोंसले बनाकर रहने वाली गौरैया के लिए सुराखों की कमी पड़ने लगी. कीड़े मारने वाली कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ने लगा. पौधों की कमी होने लगी इन सब कारणों के गौरैया की कमी होती गई. हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस इसीलिए बनाए जाता है, जिससे लोगों को गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके.

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2012 में राजकीय पक्षी घोषित की गई गौरैया

दिल्ली से विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसे राजकीय पक्षी घोषित करने की योजना बनाई. अगस्त 2012 में गौरैया को दिल्ली का राजकीय पक्षी घोषित किया गया. इसके तहत गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान चलाए गए. दिल्ली में यमुना नदी के किनारे ज्वार, बाजरा और मूंज की स्थानीय घासें भी उगाई जाने लगीं. जंगली करोंदा जैसी झाड़ियां भी तैयार की गईं, ये सब गौरैयों के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती हैं. लोग भी जागरूक हुए लोगों ने घर पर बर्तन में पानी और दाना भी रखना शुरू कर दिया. गौरैया के लिए लकड़ी के घोसले भी रखने लगे. इससे दिल्ली में गौरैया की तादाद बढ़ी है.

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गर्मी में छत पर पानी जरूरत रखे

दिल्ली में पक्षियों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ता है. ऐसे में कई बार प्यास के कारण भी पक्षी दम तोड़ देते हैं. दिल्ली जू और यमुना के किनारे ये समस्या नहीं होती है लेकिन जिन इलाकों में इमारतें हैं और पानी के प्राकृतिक स्रोत नहीं हैं. ऐसे स्थानों पर लोगों को अपने छत पर किसी बर्तन में पंक्षियों के लिए पानी और अन्न के दाने रखने चाहिए, जिससे गौरैया के साथ अन्य पक्षी भी अपनी प्यास बुझा सकें.

गौरैया के बारे में विशेष बाते

गौरैया को हाउस स्पैरो भी कहा जाता है. ये मानव और प्रकृति के लिए उपयोगी है. क्योंकि यह कीड़ों को खाती है, जिससे कीड़े पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं. घर के अपशिष्ट कपास के दाने भी को खाती है.

गौरैया के बारे में दिलचस्प बातें

  • गौरैया के नर के पीठ पर लाल रंग के पंख होते हैं मादा की पीठ पर भूरे और धारीदार पंख होते हैं
  • गौरैया की लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है और ये इंसानों के बीच में रहना पसंद करती है
  • गौरैया एक बार में एक से आठ अंडे तक देती है लेकिन इनमें से आधे अंडों से बच्चे बन पाते हैं
  • कई बार बिल्ली, गिलहरी व अन्य शिकारी पक्षी भी गौराया के अंडों को नुकसान पहुंचा देते हैं.

गौरैया क्यों है जरूरी?

गौरैया एक ऐसी चिड़िया है जो पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी है. इसके अलावा धर्मशास्त्र के मुताबिक गौरैया का आपकी छत पर आना आपके लिए शुभ हो सकता है. कुछ जानकार मानते हैं कि ये चिड़िया शांत और सदभावना का संदेश लेकर आती है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली ज़ू में पेट पूजा का पूरा इंतजाम, 2 साल से बंद पड़ी कैंटीन खुलेगी, लगेंगे पानी-जूस के कियोस्क

नई दिल्ली: 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस (World's Sparrow Day)मनाया जा रहा है, इस दिन को मनाने का उद्देश्य है गौरेया चिड़िया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके लिए हमारे आस पास का माहौल बेहतर करना. गौरेया चिड़िया को घरेलू चिड़िया भी कहा जाता है क्योंकि ये घरों के अंदर भी घोसले बनकर रह लेती है, एक समय था जब गौरेया चिड़िया विलुप्त होने की कगार पर थी तब दिल्ली में 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गौरेया के संरक्षण के लिए इसे राजकीय पक्षी घोषित किया. इसके बाद दिल्ली के राजकीय पक्षी गौरया के संरक्षण के लिए स्पैरो नाम से कई मुहिम शुरू की गई. इससे दिल्ली में गौरैया की संख्या बढ़ी है. विश्व गौरेया दिवस पर पेश है ईटीवी भारत दिल्ली की स्पेशल रिपोर्ट.

विश्व गौरैया दिवस पर खास रिपोर्ट

घर के आंगन में आकर चहचहाती हुई दाने चुगने वाली गौरैया एक दशक पहले दिल्ली में समाप्ती की कगार पर पहुंच चुकी थी. इसके पीछे का मुख्य कारण शहरीकरण, घटते पेड़ और बढ़ता प्रदूषण था. लेकिन बीते कुछ सालों से चल रहे जागरूकता अभियान के बाद गौरेया चिड़िया की संख्या में इजाफा हुआ है.

दिल्ली ज़ू में क्या इंतजाम?

सेंट्रल जू अथॉरिटी की डीआईजी और दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क की डायरेक्टर आकांक्षा महाजन के मुताबिक पिछले एक दशक में गौरैया की संख्या में सुधार हुआ है. लोग विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक किया गया है. दिल्ली जू में बड़ी संख्या में गौरैया रहती हैं. क्योंकि यहां पर हजारों के संख्या में पेड़ पौधे हैं. जिससे तापमान और प्रदूषण भी कम रहता है. दिल्ली जू के अधिकारियों के मुताबिक गौरैया अंडे देने के वक्त अपना घोसले बनाती है. ज्यादातर वो झाड़ियों में रहती हैं. जगह जगह लोग चिड़ियों के लिए घोसले बनाते हैं लेकिन गौरैया इंसानों के बनाए घास फूस के घोसलों में बहुत कम आती हैं. अगर लकड़ी का घोसला बना दिया जाए, तो उसमें गौरैया घासफूस लाकर अपना घोसला बनाकर आराम से रह सकती है.

विश्व गौरैया दिवस:
विश्व गौरैया दिवस

गौरैया मनुष्यों के बीच रहने वाली पक्षी है. दिल्ली जू में जगह-जगह लकड़ी के घोसले बनाए गए हैं, जिनमें गौरैया रहती हैं. गौरैया पेड़ पौधों के बीच रहकर दानेा खाकर जी सकती है. जो दिल्ली जू में उन्हे पर्याप्त मात्रा में दाना पानी मिल जाता है.

दिल्ली में इन कारणों से विलुप्त हो रहीं गौरैया

दिल्ली में शहरीकरण के साथ पेड़ पौधे भी कम होते चले गए. इमारतें बनती गईं और इमारतों से बालकनी और खिड़कियां भी गायब होते चले गए. घरों में घोंसले बनाकर रहने वाली गौरैया के लिए सुराखों की कमी पड़ने लगी. कीड़े मारने वाली कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ने लगा. पौधों की कमी होने लगी इन सब कारणों के गौरैया की कमी होती गई. हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस इसीलिए बनाए जाता है, जिससे लोगों को गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके.

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2012 में राजकीय पक्षी घोषित की गई गौरैया

दिल्ली से विलुप्त होती गौरैया के संरक्षण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इसे राजकीय पक्षी घोषित करने की योजना बनाई. अगस्त 2012 में गौरैया को दिल्ली का राजकीय पक्षी घोषित किया गया. इसके तहत गौरैया के संरक्षण के लिए कई अभियान चलाए गए. दिल्ली में यमुना नदी के किनारे ज्वार, बाजरा और मूंज की स्थानीय घासें भी उगाई जाने लगीं. जंगली करोंदा जैसी झाड़ियां भी तैयार की गईं, ये सब गौरैयों के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती हैं. लोग भी जागरूक हुए लोगों ने घर पर बर्तन में पानी और दाना भी रखना शुरू कर दिया. गौरैया के लिए लकड़ी के घोसले भी रखने लगे. इससे दिल्ली में गौरैया की तादाद बढ़ी है.

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गर्मी में छत पर पानी जरूरत रखे

दिल्ली में पक्षियों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ता है. ऐसे में कई बार प्यास के कारण भी पक्षी दम तोड़ देते हैं. दिल्ली जू और यमुना के किनारे ये समस्या नहीं होती है लेकिन जिन इलाकों में इमारतें हैं और पानी के प्राकृतिक स्रोत नहीं हैं. ऐसे स्थानों पर लोगों को अपने छत पर किसी बर्तन में पंक्षियों के लिए पानी और अन्न के दाने रखने चाहिए, जिससे गौरैया के साथ अन्य पक्षी भी अपनी प्यास बुझा सकें.

गौरैया के बारे में विशेष बाते

गौरैया को हाउस स्पैरो भी कहा जाता है. ये मानव और प्रकृति के लिए उपयोगी है. क्योंकि यह कीड़ों को खाती है, जिससे कीड़े पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं. घर के अपशिष्ट कपास के दाने भी को खाती है.

गौरैया के बारे में दिलचस्प बातें

  • गौरैया के नर के पीठ पर लाल रंग के पंख होते हैं मादा की पीठ पर भूरे और धारीदार पंख होते हैं
  • गौरैया की लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है और ये इंसानों के बीच में रहना पसंद करती है
  • गौरैया एक बार में एक से आठ अंडे तक देती है लेकिन इनमें से आधे अंडों से बच्चे बन पाते हैं
  • कई बार बिल्ली, गिलहरी व अन्य शिकारी पक्षी भी गौराया के अंडों को नुकसान पहुंचा देते हैं.

गौरैया क्यों है जरूरी?

गौरैया एक ऐसी चिड़िया है जो पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी है. इसके अलावा धर्मशास्त्र के मुताबिक गौरैया का आपकी छत पर आना आपके लिए शुभ हो सकता है. कुछ जानकार मानते हैं कि ये चिड़िया शांत और सदभावना का संदेश लेकर आती है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली ज़ू में पेट पूजा का पूरा इंतजाम, 2 साल से बंद पड़ी कैंटीन खुलेगी, लगेंगे पानी-जूस के कियोस्क

Last Updated : Mar 20, 2024, 1:21 PM IST
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