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विश्व गैंडा दिवसः बेटी का घर बसाने के लिए दूर हो गई मां, जानें गैंडा मां और बेटी की रोचक कहानी - World Rhino Day special - WORLD RHINO DAY SPECIAL

World Rhino Day special: हर साल 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है. इस आयोजन का उद्देश्य विश्व भर में गैंडों की लुप्त होती प्रजाति को संरक्षित और संवर्धित करना है. गैंडों को लेकर दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क ने भी कई प्रयोग और कारगर कदम उठाए हैं.आइए जानते हैं दिल्ली जू ने गैंडों को लेकर कब-कब क्या कदम उठाएं.

विश्व गैंडा दिवस पर दिल्ली जू में गैंडा मां और बेटी की कहानी
विश्व गैंडा दिवस पर दिल्ली जू में गैंडा मां और बेटी की कहानी (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 22, 2024, 5:25 PM IST

Updated : Sep 22, 2024, 6:05 PM IST

नई दिल्ली: हर साल 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्वभर में पाए जाने वाले पांच प्रजाति- व्हाइट राइनो, ब्लैक राइनो, एक सींग वाले राइनो, जावा राइनो, सुमात्रन राइनो के प्रति लोगों को जागरूक करना और इन्हें संरक्षित करने के लिए विशेष कदम उठाना है. दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क (दिल्ली जू) में भी गैंडा संरक्षण और संवर्धन को लेकर बड़ा कदम उठाया गया और यहां दो मादा गैंडे मां-बेटी को अलग कर दिया गया.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में साल 2014 में राजा नाम के मेल गैंडे की मौत हो गई, जिसके बाद यहां केवल दो फीमेल गैंडा माहेश्वरी और अंजूहा बची थीं. दोनों मां-बेटी थी. अंजूहा की मां माहेश्वरी है. दोनों मादा गैंडा होने के कारण दस सालों से यहां गैंडा के प्रजनन पर विराम लग गया था. गैंडे की संख्या में कोई इजाफा नहीं हो पाया था. इसके मद्देनजर दिल्ली जू प्रशासन ने एनिमल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत मां माहेश्वरी को असम के गुवाहाटी जू भेज दिया. इस तरह मां- बेटी अलग हो गई. यही वहां से धर्मेंद्र नाम के एक मेल गैंडे को लाया गया. ताकि दिल्ली के नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडों के संख्या बढ़ सके.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क (ETV Bharat)

जानिए, दिल्ली जू में गैंडों से जुड़ी दिलचस्प बातें: 1952 में दिल्ली जू बनाने का कार्य शुरू हुआ था. करीब 7 साल में दिल्ली जू बनकर तैयार हुआ. 1 नवंबर 1959 को उद्घाटन हुआ था. 176 एकड़ में पत्थर की थीम पर बना जू जो बेहद हरा भरा पार्क है. यहां पर 84 से अधिक प्रजाति के पशु पक्षी संरक्षित किए गए हैं. जिन्हें देखने के लिए रोजाना हजारों की संख्या में पर्यटक दिल्ली जू आते हैं.

दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क डायरेक्टर डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि ज़ू में वर्तमान में 2 गैंडा हैं. जिसमें फीमेल गैंडा अंजूहा का जन्म दिल्ली ज़ू में हुआ था. दूसरे मेल गैंडे धर्मेंद्र को असम के गुवाहाटी ज़ू से लाया गया है. फिलहाल 1 सप्ताह पहले मेल गैंडे धर्मेंद्र को लाने के बाद उसे क्वॉरेंटाइन में रखा गया है. करीब 15 दिन बाद इस मेल गैंडे को बाड़े में अंजूहा के साथ रखा जाएगा. इसके बाद ही लोग गुवाहाटी से आए धर्मेंद्र नाम के गैंडे को भी देख सकेंगे.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास
दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास (ETV BHARAT)

अमेरिका और लंदन भेजे गए हैं गैंडे: दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क से अमेरिका और लंदन के ज़ू में भी गैंडे भेजे गए हैं. 20 अप्रैल 2007 में दिल्ली ज़ू से ब्रह्मपुत्र नाम के गैंडे को अमेरिका के सेंटियागो ज़ू में भेजा गया था. जहां पर उसके बच्चे भी हैं. 1973 में दो साल के गैंडे को लंदन के ज़ू को दे दिया गया था.

1965 में दिल्ली आए गैंडे की खाल आज भी म्यूजियम में हैः 1 दिसंबर 1965 को असम से मोहन नाम के मेल गैंडे को लाया गया था. 6 जुलाई 1988 को मोहन की बुजुर्ग होने पर मौत हो गई थी. मोहन की स्किन (खाल) को पहले दिल्ली के बाराखंभा रोड स्थित नेशनल म्यूजियम नेचुरल हिस्ट्री में भेजा गया था. जहां पर लोग गैंडे की स्किन को देखते थे. वर्तमान में यह खाल राजस्थान स्थित नेशनल म्यूजियम नेचुरल हिस्ट्री में रखी गई है.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास
दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास (ETV BHARAT)

दिल्ली जू में गैंडों का इतिहास

  1. 1959 में दिल्ली जू शुरू हुआ था. 1 अप्रैल 1962 को असम सरकार की तरफ से एक मेल गैंडा दिया गया था. जिसकी 13 अप्रैल 1970 को मौत हो गई थी. 1 दिसंबर 1965 को एक मेल गैंडा मोहन असम से 25,000 रुपये में खरीद कर ट्रेन से पुरानी दिल्ली लाया गया था. उस वक्त ट्रेन का खर्च 3,600 रुपये आया था और पुरानी दिल्ली से ज़ू तक गैंडे को लाने में 180 रुपये 80 पैसे खर्च हुए थे.
  2. असम से 28 मार्च 1968 को 25,000 रुपये में फीमेल गैंडा खरीदा गया था, जिसका नाम रंगी था. ट्रेन से इसे असम से दिल्ली लाया गया था. 28 जनवरी 1971 को रंगी ने बच्चे को जन्म दिया. 1973 में बच्चे को लंदन के व्हिपसनेड जू को दे दिया गया. 1 नवंबर 1984 को कैंसर से रंगी की मौत हो गई.
  3. पंजाब के छतबीड़ जू से 5 में 1982 को रोजी नाम की एक फीमेल गैंडा को ढाई लाख में लाया गया था. 2 जून 1986 को रोजी की बच्चों को जन्म देने के दौरान मौत हो गई. 3 मार्च 1983 को असम ज़ू से डब्बू नाम का एक मेल गैंडा लाया गया.
  4. असम से 20 दिसंबर 1990 को मोहिनी नाम की फीमेल गैंडा को लाया गया. मोहिनी और डब्बू से 27 दिसंबर 1992 को एक मेल गैंडे का जन्म हुआ. उस समय अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला चल रहा था. इसलिए उस बच्चे का नाम अयोध्या रखा गया. 20 अगस्त 1995 को दिल्ली 1 और मेल गैंडा पैदा हुआ. उसे दौरान खूब वर्षा हो रही थी और दिल्ली जू में पानी भरा हुआ था. ऐसे में मेल गैंडे के बच्चे का नाम मेघदूत रखा गया. हालांकि, 6 मार्च 1999 को मेघदूत की मौत हो गई थी. इससे पहले 27 नवंबर 1997 को फीमेल गैंडा माहेश्वरी का जन्म हुआ था. 24 अप्रैल 2001 को डब्बू की मौत हो गई और 25 अप्रैल 2001 को मोहिनी की मौत हो गई थी.
  5. 2001 में दिल्ली ज़ू में अयोध्या और माहेश्वरी बचे हुए थे. दोनों से ब्रह्मपुत्र नाम के मेल गैंडे का जन्म हुआ. ब्रह्मपुत्र को 20 अप्रैल 2007 को अमेरिका के सेंटियागो ज़ू भेज दिया गया था. बदले में वहां से गोयोना नाम की फीमेल गैंडा दिल्ली ज़ू लाई गई, जिसकी कुछ माह बाद में बीमारी से मौत हो गई थी.
  6. अक्टूबर 2005 को दिल्ली जू से अयोध्या नाम के गैंडे को पटना भेज दिया गया था. वहां से राजा नाम के मेल गैंडे को लाया गया था. राजा और माहेश्वरी से अंजूहा नाम की फीमेल गैंडा पैदा हुई. 20 सितंबर 2007 को सांप के काटने से राजा की मौत हो गई थी. 22 अगस्त 2013 को मुंबई से एक मेल गैंडा शिवा को लाया गया, जिसकी 18 जून 2014 को कैंसर से मौत हो गई थी.
  7. वर्ष 2014 के बाद से दिल्ली ज़ू में मां माहेश्वरी और बेटी अंजूहा ही थी. मेल गैंडा न होने से प्रजनन नहीं हो पा रहा था. 1 सप्ताह पूर्व माहेश्वरी को असम के गुवाहाटी ज़ू भेजकर वहां से बदले में धर्मेंद्र नाम का मेल गैंडा लाया गया है, जिसे अंजूहा के साथ रखा जाएगा. फिलहाल धर्मेंद्र को अभी क्वॉरेंटाइन में रखा गया है.

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नई दिल्ली: हर साल 22 सितंबर को विश्व गैंडा दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्वभर में पाए जाने वाले पांच प्रजाति- व्हाइट राइनो, ब्लैक राइनो, एक सींग वाले राइनो, जावा राइनो, सुमात्रन राइनो के प्रति लोगों को जागरूक करना और इन्हें संरक्षित करने के लिए विशेष कदम उठाना है. दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क (दिल्ली जू) में भी गैंडा संरक्षण और संवर्धन को लेकर बड़ा कदम उठाया गया और यहां दो मादा गैंडे मां-बेटी को अलग कर दिया गया.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में साल 2014 में राजा नाम के मेल गैंडे की मौत हो गई, जिसके बाद यहां केवल दो फीमेल गैंडा माहेश्वरी और अंजूहा बची थीं. दोनों मां-बेटी थी. अंजूहा की मां माहेश्वरी है. दोनों मादा गैंडा होने के कारण दस सालों से यहां गैंडा के प्रजनन पर विराम लग गया था. गैंडे की संख्या में कोई इजाफा नहीं हो पाया था. इसके मद्देनजर दिल्ली जू प्रशासन ने एनिमल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत मां माहेश्वरी को असम के गुवाहाटी जू भेज दिया. इस तरह मां- बेटी अलग हो गई. यही वहां से धर्मेंद्र नाम के एक मेल गैंडे को लाया गया. ताकि दिल्ली के नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडों के संख्या बढ़ सके.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क (ETV Bharat)

जानिए, दिल्ली जू में गैंडों से जुड़ी दिलचस्प बातें: 1952 में दिल्ली जू बनाने का कार्य शुरू हुआ था. करीब 7 साल में दिल्ली जू बनकर तैयार हुआ. 1 नवंबर 1959 को उद्घाटन हुआ था. 176 एकड़ में पत्थर की थीम पर बना जू जो बेहद हरा भरा पार्क है. यहां पर 84 से अधिक प्रजाति के पशु पक्षी संरक्षित किए गए हैं. जिन्हें देखने के लिए रोजाना हजारों की संख्या में पर्यटक दिल्ली जू आते हैं.

दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क डायरेक्टर डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि ज़ू में वर्तमान में 2 गैंडा हैं. जिसमें फीमेल गैंडा अंजूहा का जन्म दिल्ली ज़ू में हुआ था. दूसरे मेल गैंडे धर्मेंद्र को असम के गुवाहाटी ज़ू से लाया गया है. फिलहाल 1 सप्ताह पहले मेल गैंडे धर्मेंद्र को लाने के बाद उसे क्वॉरेंटाइन में रखा गया है. करीब 15 दिन बाद इस मेल गैंडे को बाड़े में अंजूहा के साथ रखा जाएगा. इसके बाद ही लोग गुवाहाटी से आए धर्मेंद्र नाम के गैंडे को भी देख सकेंगे.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास
दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास (ETV BHARAT)

अमेरिका और लंदन भेजे गए हैं गैंडे: दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क से अमेरिका और लंदन के ज़ू में भी गैंडे भेजे गए हैं. 20 अप्रैल 2007 में दिल्ली ज़ू से ब्रह्मपुत्र नाम के गैंडे को अमेरिका के सेंटियागो ज़ू में भेजा गया था. जहां पर उसके बच्चे भी हैं. 1973 में दो साल के गैंडे को लंदन के ज़ू को दे दिया गया था.

1965 में दिल्ली आए गैंडे की खाल आज भी म्यूजियम में हैः 1 दिसंबर 1965 को असम से मोहन नाम के मेल गैंडे को लाया गया था. 6 जुलाई 1988 को मोहन की बुजुर्ग होने पर मौत हो गई थी. मोहन की स्किन (खाल) को पहले दिल्ली के बाराखंभा रोड स्थित नेशनल म्यूजियम नेचुरल हिस्ट्री में भेजा गया था. जहां पर लोग गैंडे की स्किन को देखते थे. वर्तमान में यह खाल राजस्थान स्थित नेशनल म्यूजियम नेचुरल हिस्ट्री में रखी गई है.

दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास
दिल्ली नेशनल जियोलॉजिकल पार्क में गैंडे को लेकर क्या है खास (ETV BHARAT)

दिल्ली जू में गैंडों का इतिहास

  1. 1959 में दिल्ली जू शुरू हुआ था. 1 अप्रैल 1962 को असम सरकार की तरफ से एक मेल गैंडा दिया गया था. जिसकी 13 अप्रैल 1970 को मौत हो गई थी. 1 दिसंबर 1965 को एक मेल गैंडा मोहन असम से 25,000 रुपये में खरीद कर ट्रेन से पुरानी दिल्ली लाया गया था. उस वक्त ट्रेन का खर्च 3,600 रुपये आया था और पुरानी दिल्ली से ज़ू तक गैंडे को लाने में 180 रुपये 80 पैसे खर्च हुए थे.
  2. असम से 28 मार्च 1968 को 25,000 रुपये में फीमेल गैंडा खरीदा गया था, जिसका नाम रंगी था. ट्रेन से इसे असम से दिल्ली लाया गया था. 28 जनवरी 1971 को रंगी ने बच्चे को जन्म दिया. 1973 में बच्चे को लंदन के व्हिपसनेड जू को दे दिया गया. 1 नवंबर 1984 को कैंसर से रंगी की मौत हो गई.
  3. पंजाब के छतबीड़ जू से 5 में 1982 को रोजी नाम की एक फीमेल गैंडा को ढाई लाख में लाया गया था. 2 जून 1986 को रोजी की बच्चों को जन्म देने के दौरान मौत हो गई. 3 मार्च 1983 को असम ज़ू से डब्बू नाम का एक मेल गैंडा लाया गया.
  4. असम से 20 दिसंबर 1990 को मोहिनी नाम की फीमेल गैंडा को लाया गया. मोहिनी और डब्बू से 27 दिसंबर 1992 को एक मेल गैंडे का जन्म हुआ. उस समय अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला चल रहा था. इसलिए उस बच्चे का नाम अयोध्या रखा गया. 20 अगस्त 1995 को दिल्ली 1 और मेल गैंडा पैदा हुआ. उसे दौरान खूब वर्षा हो रही थी और दिल्ली जू में पानी भरा हुआ था. ऐसे में मेल गैंडे के बच्चे का नाम मेघदूत रखा गया. हालांकि, 6 मार्च 1999 को मेघदूत की मौत हो गई थी. इससे पहले 27 नवंबर 1997 को फीमेल गैंडा माहेश्वरी का जन्म हुआ था. 24 अप्रैल 2001 को डब्बू की मौत हो गई और 25 अप्रैल 2001 को मोहिनी की मौत हो गई थी.
  5. 2001 में दिल्ली ज़ू में अयोध्या और माहेश्वरी बचे हुए थे. दोनों से ब्रह्मपुत्र नाम के मेल गैंडे का जन्म हुआ. ब्रह्मपुत्र को 20 अप्रैल 2007 को अमेरिका के सेंटियागो ज़ू भेज दिया गया था. बदले में वहां से गोयोना नाम की फीमेल गैंडा दिल्ली ज़ू लाई गई, जिसकी कुछ माह बाद में बीमारी से मौत हो गई थी.
  6. अक्टूबर 2005 को दिल्ली जू से अयोध्या नाम के गैंडे को पटना भेज दिया गया था. वहां से राजा नाम के मेल गैंडे को लाया गया था. राजा और माहेश्वरी से अंजूहा नाम की फीमेल गैंडा पैदा हुई. 20 सितंबर 2007 को सांप के काटने से राजा की मौत हो गई थी. 22 अगस्त 2013 को मुंबई से एक मेल गैंडा शिवा को लाया गया, जिसकी 18 जून 2014 को कैंसर से मौत हो गई थी.
  7. वर्ष 2014 के बाद से दिल्ली ज़ू में मां माहेश्वरी और बेटी अंजूहा ही थी. मेल गैंडा न होने से प्रजनन नहीं हो पा रहा था. 1 सप्ताह पूर्व माहेश्वरी को असम के गुवाहाटी ज़ू भेजकर वहां से बदले में धर्मेंद्र नाम का मेल गैंडा लाया गया है, जिसे अंजूहा के साथ रखा जाएगा. फिलहाल धर्मेंद्र को अभी क्वॉरेंटाइन में रखा गया है.

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Last Updated : Sep 22, 2024, 6:05 PM IST
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