जयपुर : करीब 3500 साल पुराना दर्शनशास्त्र, जिसे कुछ लोग आध्यात्म का पूरक मानते हैं. राजस्थान विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र में वेद और उपनिषद पढ़ाया भी जा रहा है. वहीं, हाल ही में करपात्री महाराज की दो किताबों को सिलेबस में शामिल किया गया है. फिलॉसफी सिर्फ आध्यात्म नहीं, बल्कि किसी भी विषय में दी जाने वाली सर्वोच्च उपाधि को डॉक्टरेट इन फिलॉसफी ही कहा गया है. यानी किसी विषय के गहन चिंतन को फिलॉसफी कहा गया है. वहीं, राजस्थान विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मनीष ने फिलॉसफी को जीवन जीने का व्यवहार बताया. इसे आध्यात्म नहीं बल्कि किसी भी विषय की आत्मा कहा जा सकता है.
दर्शन के मूल तत्व को आत्मा को माना गया है : जब हम दर्शनशास्त्र की बात करते हैं तो हमारी धुरी केवल धर्म, आध्यात्म और दर्शन तक सिमट कर रह जाती है तो क्या फिलॉसफी सिर्फ आध्यात्म तक सिमटा हुआ है. इसी पर बातचीत करते हुए डॉ. मनीष ने बताया कि केवल फिलॉसफी की ही अगर बात करें तो विश्व पटल पर इसे सिर्फ आध्यात्म के रूप में नहीं देखा जाता. इसे ज्ञान के प्रति प्रेम के तौर पर देखा जाता है और यही परिभाषा दुनिया भर में मान्य है. जहां तक आध्यात्म का प्रश्न है तो भारतीय परंपरा में दर्शन के मूल तत्व को आत्मा को माना गया है.
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खुद की चेतन को ही ब्रह्म माना गया: उन्होंने बताया कि यूनेस्को ने 2002 में वर्ल्ड फिलॉसफी डे की शुरुआत की थी, जिसका मूल अर्थ किसी भी विषय को गहनता से जानने से है. उसमें जैसे आध्यात्म भी एक विषय है, यानी की फिलॉसफी ऑफ स्पिरिट, फिलोसोफी का सोल की जब बात करेंगे तो आध्यात्म की बात की जाएगी. भारतीय परंपरा ने इस विषय को सबसे महत्वपूर्ण माना है. ऐसे में यहां दर्शन का अर्थ आध्यात्म ज्यादा हो गया है. हालांकि, दर्शनशास्त्र के प्रमुख 9 स्कूल माने गए हैं, उनमें पांच स्कूल तो ईश्वर को ही नकार रहे हैं. ये सभी स्कूल निरीश्वरवादी हैं, लेकिन आत्मा को माना गया है. भारत का सबसे बड़ा दर्शनशास्त्र अद्वैत वेदांत भी जब अल्टीमेट ट्रुथ की बात करते हैं, तो वहां भी ईश्वर की बात गौण हो जाती है और उसमें व्यक्ति के स्वभाव या फिर खुद की चेतन को ही ब्रह्म माना गया है.
दर्शन जीवन जीने के एक व्यवहार : उन्होंने आत्मा का भी मूल अर्थ नैतिकता बताते हुए कहा कि आत्मा का अर्थ पारलौकिक नहीं, बल्कि जीवन को नैतिक रूप से किस तरह जिया जाए. इस पर विचार करना ही आध्यात्म है. भारतीय दर्शन में दर्शन को जीवन जीने के एक व्यवहार के रूप में देखा गया है. कॉलेज-यूनिवर्सिटी लेवल पर भी वेद उपनिषद दर्शनशास्त्र का हिस्सा है और अब तो करपात्री महाराज की दो पुस्तकों को भी इसमें जोड़ा गया है. उनका ये मानना है कि हर परंपरा की विशेष बात होती है और भारतीय परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता ही अध्यात्म है. सभी विद्यार्थी ये जानें कि भारतीय परंपरा वास्तव में क्या है.
आखिर में उन्होंने बताया कि किसी भी विषय का गहन अध्ययन फिलॉसफी है. फिर चाहे वो केमिस्ट्री हो या मैथ और साइंस जैसे किसी भी टॉपिक की बात हो. यानी कि उस विषय की गहराई में जाकर उसकी फाउंडेशन की बात करें और इस गहराई में जाने का तरीका फिलॉसफी सिखाती है. इसी वजह से डॉक्टरेट ऑफ फिलॉसफी कहा जाता है, चाहे फिर वो पीएचडी किसी भी विषय में क्यों ना हो.