जयपुर. आज दौड़ती-भागती जिंदगी, कंपटीशन और करियर की चिंता, वर्कलोड और बढ़ती दूरियों के बीच लोग हंसना भूल गए हैं, जबकि दुनिया के कई रिसर्च में यह सामने आया है कि खुलकर हंसना भी एक तरह का इलाज है, जिसे प्रमाणित भी किया जा चुका है. खुलकर हंसने से न सिर्फ ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है, बल्कि इम्युनिटी बढ़ाने और एंटीबॉडीज बनाने में भी हंसना शरीर के लिए मददगार साबित हुआ है. यही वजह है कि आज लाफ्टर को एक थेरेपी के रूप में देखा जाने लगा है और कई योग इंस्टिट्यूट ने इसे अपनाया भी है. यही नहीं शहरों में कई लाफ्टर क्लब तक खुल चुके हैं.
लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसिन : अंग्रेजी में कहावत है कि लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसिन यानी की जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसना सबसे अच्छी दवा है. कैसे? इस पर प्रकाश डालते हुए योगाचार्य ढाकाराम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि जब हम दिल खोल कर हंसते हैं तो हमारे मस्तिष्क से हैप्पीनेस हारमोंस क्रिएट होते हैं, जो आपको हंसने के लिए मोटिवेट करते हैं. और जब व्यक्ति खुश होता है, हंसता है, तो ये शरीर के लिए मेडिसिन का काम करती है. इससे हार्ट और फेफड़े भी मजबूत होता है और कहते भी हैं कि हंसने से खून बढ़ता है. उन्होंने मजाक के अंदाज में कहा कि महिलाओं का ब्यूटी पार्लर का खर्चा तक बच जाता है, क्योंकि हंसने से चेहरे स्वतः खिल उठते हैं. इसलिए ना सिर्फ हंसना मेडिसिन है, बल्कि हंसी के बिना जीवन ही नहीं है.
बेवजह हंसना भी जरूरी : उन्होंने कहा कि यदि आप किसी से मिले और उसका चेहरा मुरझाया हुआ, लटका हुआ हो तो उसे देखकर यही फील होता है कि ये व्यक्ति कितना दुखी और परेशान है. इसलिए हंसने के जितने भी फायदे बताएं वो कम है. हालांकि दौड़ती-भागती जिंदगी में लोग हंसना भूल गए हैं. ढाकाराम ने कहा कि आज लोग सेल्फिश हो गए हैं. जब किसी व्यक्ति से मतलब का काम होता है तो उसके साथ में हंस भी लेते हैं, और जब काम नहीं होता तो मुस्कुराते भी नहीं है. लोग हंसने का कारण ढूंढते हैं. जबकि हमें बेवजह हंसना चाहिए. इसका कोई कारण नहीं होना चाहिए. यही वजह है कि आज लाफ्टर को थेरेपी का नाम दिया गया है. लोग आज इस थैरेपी के लिए हजारों रुपए खर्च कर देते हैं. शहर में सिर्फ हंसने के लिए लाफ्टर क्लब बन चुके हैं.
आर्टिफिशियल हंसी की हो शुरुआत : उन्होंने कहा कि लाफ्टर क्लब में वही लोग जा रहे हैं जो पहले ही हंसते हैं, जबकि इन क्लब में उन लोगों को जाना चाहिए जो लोग नहीं हंसते. जरूरी यह है कि जो लोग नहीं हंसते उन्हें मोटिवेट करें और जब वो अपने चारों तरफ हंसते हुए चेहरे देखते है तो वो ना चाहते हुए भी हंसने लगते हैं. इसके लिए आर्टिफिशियल हंसी से शुरुआत कर सकते हैं. धीरे-धीरे इसी से हैप्पीनेस हारमोंस डेवलप होने लग जाते हैं, और फिर व्यक्ति को रियल हंसी आती है.
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तनाव की वजह से कोटा में सुसाइड की खबरें : उन्होंने बताया कि हंसने से बीमारियां भी कम होती हैं. यदि आप स्ट्रेस में हो और कोई खुशी का कारण मिलता है, तो आपको एक नई ताजगी मिलती है. यही वजह है कि जो लोग डिप्रेशन में है, एंजायटी से पीड़ित है, स्ट्रेस में रहते हैं, उनके लिए लाफिंग थेरेपी बहुत महत्वपूर्ण है. हालांकि आज स्ट्रेस सबसे ज्यादा युवाओं में ही देखने को मिलता है. फिर चाहे वो पढ़ाई का स्ट्रेस हो, या रोजगार का हो. यही नहीं, कोटा में तो तनाव की वजह से आए दिन छात्रों के सुसाइड की खबरें सामने आती है.
पहला सुख निरोगी काया : योगाचार्य ने कहा कि इस तरह के मामलों में लाफ्टर थेरेपी 100 फीसदी कारगार है, लेकिन लाफ्टर तभी आता है जब शरीर स्वस्थ होता है. यदि घुटने में दर्द है और फिर हंसने को कहेंगे, तो हंसा भी नहीं जाता. बुजुर्गों ने भी कहा है कि पहला सुख निरोगी काया. इसलिए हंसने के लिए शरीर का स्वस्थ रहना भी जरूरी है. इसके लिए नियमित योगासन, क्रियाएं, प्राणायाम और ध्यान करते हैं, तो वो सोने पर सुहागा हो जाएगा और जहां तक कोटा में छात्रों के सुसाइड के मामले हैं तो छात्र मन से अस्थिर होता है या फिर उसकी आकांक्षाएं बहुत होती है और जब छात्र योग करेंगे, लाफ्टर थेरेपी अपनाएंगे, तो मन शांत रहेगा, कंसंट्रेशन पावर बढ़ेगी. इससे इस तरह की घटनाओं पर भी नकेल कसेगी.
आखिर में उन्होंने बताया कि योग के साथ जुड़कर इस लाफ्टर थेरेपी से भी जुड़ा जा सकता है. उन्होंने अपील भी की कि हर एक योग इंस्टिट्यूट को लोगों को 5 से 10 मिनट खुलकर हंसने का मौका देना चाहिए. ताकि उनके हैप्पीनेस हार्मोंस और ज्यादा विकसित हो. व्यक्ति आनंदित होगा तो तनाव से होने वाले सेहत के नुकसान से भी बच जाएगा.