जयपुर : 1727 में जयपुर की बसावट से पहले कच्छावा वंश की राजधानी आमेर हुआ करती थी. जयपुर से नजदीक और चारों तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरे इस किले को स्थापत्य कला के साथ-साथ सुरक्षा के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता था. आमेर का किला देशभर के किलों में एक विशिष्ट स्थान रखता है. मानसिंह प्रथम ने कच्छावा शासकों की राजधानी के लिए आमेर किले की नीव रखी थी. किले में 12 दरिया इसके जल संरक्षण और व्यवस्थाओं को बयां करते हैं.
पानी के लिए किया गया था खास इंतजाम : आमेर किले का निर्माण जिस वक्त किया गया, उस दौरान लगातार आक्रमणकारियों का खतरा बना रहता था. महीनों तक आक्रांता गढ़ और किलों को घेर कर बैठ जाते थे. लिहाजा राजस्थान की भौगोलिक संरचना को समझते हुए आमेर किले के निर्माण से पहले यहां जल संचयन का खास ख्याल रखा गया था. अंदर की तरफ कई टांकों का निर्माण किया गया है. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि जब गणेश पोल से किले के अंदर दाखिल होते हैं, तो उस दौरान नजर आने वाले चौक के नीचे पानी का टांका बना हुआ है.
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शेखावत बताते हैं कि किले तक पानी पहुंचाने के लिए इस तरह की व्यवस्था की गई थी कि जयपुर शहर में मौजूद ताल कटोरा से पानी को ऊपर किले तक पहुंचाया जाता था. इस पूरी व्यवस्था में बिना किसी यांत्रिक व्यवस्था यानी बिजली और मोटर के पानी रहट के जरिए बैलों की मदद से निकालकर गढ़ तक चढ़ाया जाता था. चड़स के जरिए चार बैलों की जोड़ी के मदद से पहले केसर क्यारी के पास बने हौद में पानी पहुंचाया जाता था. फिर आवश्यकता के अनुसार हौद का ढक्कन खोलकर सिकोरों के पाइप के जरिए पानी आमेर किले के जड़ों में बने हुए कुएं में भरा जाता था. इस पूरी व्यवस्था को पूरा करने के लिए पांच चरण लगते थे. पूरे आमेर महल में पांच शताब्दी पहले इस तरह की व्यवस्था थी कि पाइपलाइन के जरिए पानी पहुंच जाता था. यहां तक की महाराजा मानसिंह के महल में चलने वाले फव्वारे भी इसी पानी से चलते थे.
महल को ठंडा रखने की थी व्यवस्था : आमेर महल में गर्मी के दौरान ठंडक बनाए रखने के लिए खसखस के पर्दों पर तांबे के पाइप के जरिए पानी गिराया जाता था. महल में बनी 12 दरिया इस वातानुकूलित व्यवस्था में मददगार साबित होती थी. जितेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार आमेर पहला ऐसा किला था, जिसमें काफी ऊंचाई तक बिना यांत्रिक व्यवस्था के पानी चढ़ाया जाता था.
मुगल शासक ने किया था कब्जा : जितेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार यूं तो आमेर को बड़ी सुरक्षा के लिहाज से बसाया गया था, लेकिन 1708 में महाराजा जय सिंह के शासनकाल में आमेर किले पर मुगल शासक बहादुर शाह ने कब्जा कर लिया था. इस दौरान जय सिंह को दौसा जाकर रहना पड़ा. करीब 8 महीने तक बहादुर शाह का कब्जा आमेर महल पर रहा था. बहादुर शाह ने आमेर का नाम बदलकर 'मोमीनाबाद' कर दिया था. शेखावत बताते हैं कि आमेर रियासत के प्रधानमंत्री रामचंद्र खत्री ने स्थानीय सामंतों के साथ मिलकर युद्ध के जरिए आमेर महल को मुक्त करवाया था. उन्होंने बताया कि इस युद्ध के दौरान आमेर के शासक जय सिंंह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के साथ मिलकर मेवाड़ गए हुए थे.
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हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की परिकल्पना : जितेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार महाराजा सवाई जय सिंह मेवाड़, जोधपुर समेत राजस्थान की अन्य रियासतों को एक साथ मिलकर विराट हिंदू साम्राज्य की परिकल्पना कर रहे थे. इस कड़ी में जय सिंह ने राजपूताना के राजपूत शासकों को एक कर लिया था. भीलवाड़ा जिले के हुरड़ा में इसके लिए एक सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था. जहां एक स्वर में यह तय किया गया था कि हिंदू साम्राज्य का झंडा दिल्ली पर लहराया जाएगा, लेकिन इस दौरान बूंदी के राजाओं ने मराठाओं के साथ मिलकर जय सिंह की इस योजना पर पानी फेर दिया और मुगल शासक को इसकी भनक लग गई, तो उन्होंने आमेर पर कब्जा जमा लिया.
वर्तमान स्वरूप में कई शासकों का योगदान : शेखावत के अनुसार आमेर महल का वर्तमान स्वरूप कई चरणों में जाकर पूरा हुआ है. मानसिंह प्रथम के इस किले के निर्माण के बाद महाराजा विष्णु सिंह, मिर्जा राजा जय सिंह, महाराजा राम सिंह प्रथम ने इसका विकास किया. इस दौरान आमेर किले को जयगढ़ के साथ रास्ता बनाकर जोड़ा गया और इसके पीछे तीन सागर बनाए गए. इसके लिए के चारों तरफ परकोटे का निर्माण किया गया और बुर्ज तैयार किए गए. इस तरह से सैनिक यहां पहरा देकर सुरक्षा व्यवस्था को माकूल बनाते थे.
शीश महल भी हैं खास : आमेर किले में बना शीश महल इसकी रौनक और बढ़ा देता है. इसमें जड़े करीब ढाई करोड़ छोटे छोटे रंग-बिरंगे कांच के टुकड़े और कांच का फर्श चमकता है, तो ऐसा लगता है कि एक दीपक की रोशनी में हजारों जुगनू एक साथ दमक रहे हैं. किसी दौर की मशहूर फिल्म मुग़ल-ए-आज़म का गीत 'प्यार किया तो डरना क्या...' का फिल्मांकन भी इसी शीश महल में किया गया था. महल की अन्य कलाकृतियों में इसे वास्तु कला की लिहाज से खास महत्व दिया गया है.
इस तरह बनाई गई थी केसर क्यारी : आमेर किले के ठीक सामने मौजूद मावठे में बनी हुई केसर क्यारी में मिर्जा राजा जयसिंह ने केसर उगाने का प्रयास किया था, लेकिन उनकी यह कोशिश कामयाब नहीं हुई. इसके पहले आईएस बगीचे को मोहन बाड़ी के नाम से जाना जाता था. शेखावत के अनुसार यहां एक के बाद एक तीन बगीचे बने हुए हैं, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इसमें चलने वाले पानी के फव्वारे और शीश महल की खिड़कियों से इसका नजारा तब केसर क्यारी की खूबसूरती को बढ़ा देता था.
शिला माता की हुई स्थापना : आमेर महल के प्रांगण में शिला माता का मंदिर भी बना हुआ है. किवदंती के अनुसार यहां नरबलि दी जाती थी, बाद में महाराजा मानसिंह ने एक चारण कवि की पंक्तियों से प्रभावित होकर देना बंद कर दिया था. जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि बंगाल के राजा केदार राय को युद्ध में पराजित करने के बाद शीला देवी की प्रतिमा को जीत कर महाराजा मानसिंह प्रथम जयपुर लेकर आए थे. आमेर में लाने के बाद इस प्रतिमा के स्वरूप में कुछ बदलाव भी किया गया था. इसके बाद यह प्रतिमा जयपुर राजवंश की श्रद्धेय माता के रूप में पूजी जाने लगी.