बहराइच/लखनऊः उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में इस समय भेड़ियों का आतंक हैं. बहराइच जिले में जहां अब तक आदमखोर हो चुके भेड़िए 10 लोगों की जान ले चुके हैं. वहीं, करीब 40 लोग घायल हैं. जिससे महसी तसील क्षेत्र के 35 गांव में दहशत का माहौल है. लोग घर से बाहर निकलना छोड़ दिए हैं और दिन-रात पहरा दे रहे हैं. यहां वन विभाग की टीम के साथ अधिकारी और मंत्री भी डेरा डाले हुए हैं. ड्रोन कैमरों से निगरानी की जा रही है. सीएम योगी आदित्यनाथ भी इसको लेकर सख्त निर्देश दिए हैं. यहां तक भेड़ियों को गोली मारने के आदेश भी जारी हुए हैं. इसके बावजूद भेड़ियों का हमला जारी है. अब बहराइच के अलावा अन्य जिलों में भेड़ियों के हमले की खबरें आ रही हैं, जो सरकार और प्रशासन के लिए चुनौती साबित हो रही है. भेड़ियों का आतंक यह पहली बार नहीं है. इसके पहले भी भेड़ियों ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में सैकड़ों लोगों की जान ले चुके हैं. आजादी के तीन साल बाद तो भेड़ियों का खात्मा करने के लिए फौज उतारनी पड़ी थी. वहीं, 1977 में 8 महीने तक ऑपरेशन चलाकर भेड़ियों को मारा गया था.
घाघरा के कछार में मिली भेड़िये की लोकेशनः वहीं, गुरुवार को बहराइच जिले के पचदेवरी गांव स्थित घाघरा के कछार में भेड़िए की लोकेशन मिली है. जिसके बाद घेराबंदी तेज कर दी गई है. संभावित ठिकाने को चारों ओर से वनकर्मियों ने घेर लिया है. वन विभाग की टीम लगातार उसकी घेराबंदी में लगी हुई है. ड्रोन से लगातार निगरानी की जा रही है. डीएफओ अजीत प्रताप सिंह ने बताया पचदेवरी गांव स्थित घाघरा की कछार में भेड़िए की लोकेशन की जानकारी मिली है. वन विभाग की टीम लगातार सर्च कर रही है.
भेड़ियों को मारने के लिए उतारनी पड़ गई थी फौजः गौरतलब है कि बहराइच के महसी में आदमखोर हो चुके भेड़ियों को शूट एट साइट का आदेश दे दिया गया है. यानी अब जो भेड़िया पकड़ में नहीं आ रहे हैं उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश हैं.अभी तक वन विभाग चार भेड़ियों को पकड़ भी चुका है, इनमें से दो भेड़िए लखनऊ चिड़ियाघर के आइसोलेशन वॉर्ड में हैं. ऐसा नहीं कि भेड़ियों का आतंक पहली बार देखा जा रहा है. समय-समय पर भेड़िए इस तरह का तांडव मचाते रहे हैं और सैकड़ो लोगों की जान लेते रहे हैं. यह सिलसिला उत्तर प्रदेश में 1950 से चला आ रहा है. सितंबर 1950 में भेड़ियों ने यूपी के विभिन्न इलाकों में खूब आतंक मचाया था. भेड़ियों ने एक ही रात में लखनऊ में तीन लोगों को मार डाला था. तब तत्कालीन प्रदेश सरकार ने पीएसी के साथ ही पुलिस को मैदान में उतारा था. लेकिन जब भेड़ियों पर काबू नहीं पाया जा सका तो फिर फौज को मैदान में उतारना पड़ा. सेना के साथ ही 400 शिकारी भी भेड़ियों को पकड़ने के लिए मैदान में उतारे गए. 25 दिन तक लगातार संघर्ष के बाद सेना के जवानों ने चार भेड़ियों को मार गिराया था.
1977 में जौनपुर में 42 बच्चों को बनाया था अपना शिकारः इसी तरह साल 1951 में फिरोजाबाद में भेड़ियों ने आतंक मचा दिया था. छह बच्चों को दो दिन में ही उठा ले गए थे. साल 1997 में जौनपुर में भेड़ियों के इस आतंक में 42 बच्चों की मौत हुई थी. आठ माह तक लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया था. इस ऑपरेशन का हिस्सा रहे वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट वीके सिंह बताते हैं कि साल 1997 के फरवरी मार्च माह में जौनपुर में भेड़ियों ने एक साथ हमला कर दिया था. 120 लोगों की आठ टीमें उस समय गठित की गई थीं. तीन शिफ्ट के हिसाब से उनकी ड्यूटी लगती थी. उस समय तकनीक का कोई रोल नहीं था तो मैप के जरिए भेड़ियों को ट्रैक किया जाता था. आठ माह की कड़ी मेहनत के बाद उस समय 13 भेड़ियों को मार गिराया गया था.
आखिर क्यों आबादी के बीच पहुंच रहे जंगली जानवरः उल्लेखनीय है कि वन्य जीवों के जीवन के लिए जंगलों का महत्व बहुत ज्यादा है. घने जंगल होंगे तो वन्य जीव जंगलों से बाहर निकलकर आबादी वाले इलाके में प्रवेश नहीं करेंगे. लेकिन जब वन क्षेत्र पर ही कब्जा होने लगेगा वहां रिहाइशी इलाके बसने लगेंगे तो फिर अपने जीवन की रक्षा और पेट पालने के लिए मजबूरन जंगली जानवरों को बाहर आकर मानवों का शिकार करना पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में लगातार वन क्षेत्र पर कब्जा होता जा रहा है. जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं, इसलिए जानवर जंगल से निकलकर बाहर आ रहे हैं. साल 2022 में 54 फीसदी तेंदुए बाघ अभ्यारण्य से बाहर आ चुके हैं. 2023 में लगभग 10 फीसद टाइगर्स की मौतें, इंसानी हमलों से हुई हैं. जैव विविधता पर जो रिपोर्ट बनी उसके मुताबिक 2022-23 में 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 ने विभिन्न तरह के कार्यों के लिए वन भूमि का प्रयोग किया. इसके चलते जंगल कम हुए और जानवरों के सामने समस्याएं बढ़ गईं.