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राजनीति की पिच पर टेस्ट मैच खेल रहे चंपाई, आउट नहीं कर पा रहा झामुमो, क्या खुद गुगली डालेंगे हेमंत! - Champai Soren

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 24, 2024, 4:59 PM IST

Jharkhand Political crisis. चंपाई सोरेन को लेकर प्रदेश की राजनीति काफी रोमांचक हो गयी है. इस सियासी पिच पर चंपाई सोरेन टेस्ट मैच खेल रहे हैं. डिफेंसिव मोड में आए चंपाई को झामुमो आउट नहीं कर पा रहा है. ऐसे में क्या हेमंत सोरेन खुद गुगली डालेंगे. इन कयासों और संभावनाओं को लेकर क्या कहते हैं जानकार, जानें ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से.

Will Champai Soren form new party before deadline or will JMM succeed in persuading him
ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

रांचीः झामुमो के उपाध्यक्ष और हेमंत कैबिनेट में मंत्री चंपाई सोरेन झामुमो के गले की हड्डी बन गये हैं. पार्टी को ना उगलते बन रहा और ना निगलते. इधर, चंपाई सोरेन कोल्हान में घूम घूमकर अपने समर्थकों से मिल रहे हैं. हर कार्यक्रम में खुद को असली आंदोलनकारी बता रहे हैं. बार-बार कह रहे हैं कि उन्होंने वैसे लोगों के लिए आंदोलन किया है जिनके बदन पर कपड़े और पैरों में चप्पल तक नहीं होते थे. अपने पांच माह के मुख्यमंत्रित्व काल का जिक्र कर रहे हैं.

27 अगस्त को खत्म हो रहा चंपाई का डेडलाइन

चंपाई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट के जरिए पार्टी और नेतृत्व के प्रति नाराजगी का पहला पत्ता खोला था. 20 अगस्त की देर रात दिल्ली से सरायकेला लौटने पर 21 अगस्त को दूसरा पत्ता खोलते हुए कहा था कि सात दिनों के भीतर उनकी आगे की रणनीति क्लियर हो जाएगी. इस बीच संन्यास की संभावना को खारिज कर चुके हैं. अब सबकी नजर उनके दो विकल्पों से जुड़े फैसले पर टिकी है. एक है अलग संगठन खड़ा करना और दूसरा है किसी साथी के साथ जुड़ जाना. उनका डेडलाइन 27 अगस्त को खत्म हो रहा है.

क्या हेमंत सोरेन खुद डालेंगे गुगली!

अब सवाल है कि राजनीति की पिच पर टेस्ट मैच खेल रहे चंपाई सोरेन को आउट करने में झामुमो क्यों संकोच कर रहा है. क्या हेमंत सोरेन खुद गुगली डालने वाले हैं. क्योंकि उन्होंने कोल्हान में मंईयां सम्मान योजना का शिड्यूल 28 अगस्त को तय कर दिया है. उनका कार्यक्रम चंपाई सोरेन के गढ़ सरायकेला में होना है. इधर, कांग्रेस के नेता चंपाई सोरेन को सुझाव दे रहे हैं कि 10 बार सोचने के बाद ही कोई बड़ा फैसला लें. इस गेम का अंजाम क्या निकलेगा.

क्या कहते हैं जानकार

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का कहना है कि भाजपा ने चंपाई सोरेन को भाव नहीं दिया. अब वे साथी खोज रहे हैं. जानकारी के मुताबिक वह जयराम महतो को खोज रहे हैं. सूर्य सिंह बेसरा भी हैं. लेकिन राजनीति में अब बेसरा का कोई दखल नहीं रहा. वह खुद कई पार्टियों की परिक्रमा कर चुके हैं. दरअसल, यहां पूरा खेल चंपाई सोरेन के बेटे को लेकर हो रहा है. चंपाई सोरेन अच्छी तरह जानते है कि आदिवासी वोटर सिर्फ चुनाव चिन्ह (तीर-धनुष) देखकर वोट देता है. इसलिए अलग संगठन खड़ा करने का मतलब है वोटकटवा का टैग लगाना. लिहाजा, हेमंत सोरेन चाहेंगे कि चंपाई सोरेन झुक जाएं. ऐसा करना चंपाई के लिए नागंवार गुजरेगा. गुरुजी की तबीयत ठीक रहती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती. ज्यादा संभावना है कि चंपाई सोरेन को अलग संगठन की दिशा में आगे बढ़ना विवशता बन जाए. इससे झारखंड को कोई फायदा होगा, ऐसा नहीं दिखता.

वरिष्ठ पत्रकार मनोज प्रसाद का कहना है कि चंपाई सोरेन ने राजनीति के चेस बोर्ड पर हेमंत सोरेन को चेक मेट वाली स्थिति में ला दिया है. अब हेमंत सोरेन पर निर्भर करता है कि चेस बोर्ड पर चेक मेट देने वाले मंत्री को कैसे हैंडल करें. हेमंत की कोशिश होगी कि किसी भी तरह मैच को ड्रॉ किया जाए. क्योंकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पक्ष में रिजल्ट नहीं आने पर उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है. यही वजह है कि इतने गंभीर मसले पर झामुमे का कोई भी नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है. मनोज प्रसाद का मानना है कि पर्दे के पीछे से चंपाई सोरेन को दो लॉलीपॉप दिखाए जा रहे होंगे. जाहिर है कि चंपाई सोरेन उसी तरफ कदम बढ़ाएंगे, जहां उन्हें फायदा होगा. संभावनाएं तो कई हैं. फिलहाल डोर क्लोज वाली स्थिति नहीं दिख रही है.

वरिष्ठ पत्रकार रजत गुप्ता का कहना है कि झामुमो में इस तरह की परिस्थिति अक्सर सामने आती रही है. उन्होंने बताया कि देर रात चलने वाली झामुमो की कई मीटिंग को करीब से देखा है. कई बार तो ऐसा लगा कि मारपीट तक हो जाएगी लेकिन थोड़ी देर बाद ही सबकुछ सेटल हो जाता है. संभावना है कि अंदरखाने बात भी हो रही होगी. पूरे प्रकरण में चंपाई सोरेन की गलती भी नहीं दिख रही है. ऐसा लगता है कि उनको मिस गाईड किया गया है. ज्यादा संभावना है कि हेमंत सोरेन उन्हें मना लेंगे. ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है. क्योंकि झामुमो के कामकाज का तरीका बिल्कुल अलग है. कई नेता पार्टी छोड़कर गये और बाद में लौट आए. आमतौर पर झामुमो से राजनीतिक की शुरुआत करने वाला नेता किसी दूसरे फॉर्मेट में सेट नहीं कर पाता है. दिलचस्प पहलू ये है कि झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है. भाजपा को आदिवासी इलाके की खोई जमीन को वापस पाना है. लिहाजा, चंपाई सोरेन के मामले में बीजेपी ग्राउंड से बाहर रहकर समीकरण साधना चाह रही है.

इसे भी पढ़ें- नए अध्याय यात्रा के तहत चंपाई आज कर सकते बड़ी घोषणा, झामुमो समेत पूरे राज्य की नजर - Champai Soren

इसे भी पढ़ें- चंपाई सोरेन के अगले कदम के इंतजार में झामुमो, सियासी फिजा में घुली नैतिकता की हवा! - Champai Soren

इसे भी पढ़ें- चंपाई सोरेन के खुले विकल्पों पर विराम, मझधार या फिर पार! - Champai Soren

रांचीः झामुमो के उपाध्यक्ष और हेमंत कैबिनेट में मंत्री चंपाई सोरेन झामुमो के गले की हड्डी बन गये हैं. पार्टी को ना उगलते बन रहा और ना निगलते. इधर, चंपाई सोरेन कोल्हान में घूम घूमकर अपने समर्थकों से मिल रहे हैं. हर कार्यक्रम में खुद को असली आंदोलनकारी बता रहे हैं. बार-बार कह रहे हैं कि उन्होंने वैसे लोगों के लिए आंदोलन किया है जिनके बदन पर कपड़े और पैरों में चप्पल तक नहीं होते थे. अपने पांच माह के मुख्यमंत्रित्व काल का जिक्र कर रहे हैं.

27 अगस्त को खत्म हो रहा चंपाई का डेडलाइन

चंपाई सोरेन ने 18 अगस्त को सोशल मीडिया पर भावनात्मक पोस्ट के जरिए पार्टी और नेतृत्व के प्रति नाराजगी का पहला पत्ता खोला था. 20 अगस्त की देर रात दिल्ली से सरायकेला लौटने पर 21 अगस्त को दूसरा पत्ता खोलते हुए कहा था कि सात दिनों के भीतर उनकी आगे की रणनीति क्लियर हो जाएगी. इस बीच संन्यास की संभावना को खारिज कर चुके हैं. अब सबकी नजर उनके दो विकल्पों से जुड़े फैसले पर टिकी है. एक है अलग संगठन खड़ा करना और दूसरा है किसी साथी के साथ जुड़ जाना. उनका डेडलाइन 27 अगस्त को खत्म हो रहा है.

क्या हेमंत सोरेन खुद डालेंगे गुगली!

अब सवाल है कि राजनीति की पिच पर टेस्ट मैच खेल रहे चंपाई सोरेन को आउट करने में झामुमो क्यों संकोच कर रहा है. क्या हेमंत सोरेन खुद गुगली डालने वाले हैं. क्योंकि उन्होंने कोल्हान में मंईयां सम्मान योजना का शिड्यूल 28 अगस्त को तय कर दिया है. उनका कार्यक्रम चंपाई सोरेन के गढ़ सरायकेला में होना है. इधर, कांग्रेस के नेता चंपाई सोरेन को सुझाव दे रहे हैं कि 10 बार सोचने के बाद ही कोई बड़ा फैसला लें. इस गेम का अंजाम क्या निकलेगा.

क्या कहते हैं जानकार

वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का कहना है कि भाजपा ने चंपाई सोरेन को भाव नहीं दिया. अब वे साथी खोज रहे हैं. जानकारी के मुताबिक वह जयराम महतो को खोज रहे हैं. सूर्य सिंह बेसरा भी हैं. लेकिन राजनीति में अब बेसरा का कोई दखल नहीं रहा. वह खुद कई पार्टियों की परिक्रमा कर चुके हैं. दरअसल, यहां पूरा खेल चंपाई सोरेन के बेटे को लेकर हो रहा है. चंपाई सोरेन अच्छी तरह जानते है कि आदिवासी वोटर सिर्फ चुनाव चिन्ह (तीर-धनुष) देखकर वोट देता है. इसलिए अलग संगठन खड़ा करने का मतलब है वोटकटवा का टैग लगाना. लिहाजा, हेमंत सोरेन चाहेंगे कि चंपाई सोरेन झुक जाएं. ऐसा करना चंपाई के लिए नागंवार गुजरेगा. गुरुजी की तबीयत ठीक रहती तो ऐसी नौबत ही नहीं आती. ज्यादा संभावना है कि चंपाई सोरेन को अलग संगठन की दिशा में आगे बढ़ना विवशता बन जाए. इससे झारखंड को कोई फायदा होगा, ऐसा नहीं दिखता.

वरिष्ठ पत्रकार मनोज प्रसाद का कहना है कि चंपाई सोरेन ने राजनीति के चेस बोर्ड पर हेमंत सोरेन को चेक मेट वाली स्थिति में ला दिया है. अब हेमंत सोरेन पर निर्भर करता है कि चेस बोर्ड पर चेक मेट देने वाले मंत्री को कैसे हैंडल करें. हेमंत की कोशिश होगी कि किसी भी तरह मैच को ड्रॉ किया जाए. क्योंकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके पक्ष में रिजल्ट नहीं आने पर उन्हें नुकसान झेलना पड़ सकता है. यही वजह है कि इतने गंभीर मसले पर झामुमे का कोई भी नेता खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है. मनोज प्रसाद का मानना है कि पर्दे के पीछे से चंपाई सोरेन को दो लॉलीपॉप दिखाए जा रहे होंगे. जाहिर है कि चंपाई सोरेन उसी तरफ कदम बढ़ाएंगे, जहां उन्हें फायदा होगा. संभावनाएं तो कई हैं. फिलहाल डोर क्लोज वाली स्थिति नहीं दिख रही है.

वरिष्ठ पत्रकार रजत गुप्ता का कहना है कि झामुमो में इस तरह की परिस्थिति अक्सर सामने आती रही है. उन्होंने बताया कि देर रात चलने वाली झामुमो की कई मीटिंग को करीब से देखा है. कई बार तो ऐसा लगा कि मारपीट तक हो जाएगी लेकिन थोड़ी देर बाद ही सबकुछ सेटल हो जाता है. संभावना है कि अंदरखाने बात भी हो रही होगी. पूरे प्रकरण में चंपाई सोरेन की गलती भी नहीं दिख रही है. ऐसा लगता है कि उनको मिस गाईड किया गया है. ज्यादा संभावना है कि हेमंत सोरेन उन्हें मना लेंगे. ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है. क्योंकि झामुमो के कामकाज का तरीका बिल्कुल अलग है. कई नेता पार्टी छोड़कर गये और बाद में लौट आए. आमतौर पर झामुमो से राजनीतिक की शुरुआत करने वाला नेता किसी दूसरे फॉर्मेट में सेट नहीं कर पाता है. दिलचस्प पहलू ये है कि झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है. भाजपा को आदिवासी इलाके की खोई जमीन को वापस पाना है. लिहाजा, चंपाई सोरेन के मामले में बीजेपी ग्राउंड से बाहर रहकर समीकरण साधना चाह रही है.

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