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NDA के साथ आने पर मुस्लिम वोटर नीतीश से हुए दूर! CM इस स्ट्रैटेजी से जीतेंगे उनका दिल

2025 के चुनाव से पहले मुस्लिम वोट बैंक पर सभी की नजरें हैं. नीतीश ने भी अल्पसंख्यकों के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है.

Muslim votes important for Nitish Kumar
2025 को लेकर नीतीश कुमार की रणनीति (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 29, 2024, 7:48 PM IST

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2025 विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों की चिंता सताने लगी है. यही कारण है कि सोमवार को एनडीए की बैठक में नीतीश कुमार का फोकस अल्पसंख्यकों पर रहा. साथ ही कट्टरवादी हिंदुत्व को लेकर चर्चा में रहने वाले गिरिराज सिंह को पीछे की कतार में बैठाया गया. इसके कारण नीतीश कुमार मुस्लिमों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहे हैं. वहीं अपनी सेक्युलर राजनीति की धुंधली हो रही छवि को भी चमकाने का प्रयास किया.

एनडीए की बैठक में नीतीश कुमार का निर्देश: वहीं एनडीए की बड़ी बैठक में घटक दल के सभी नेताओं को अल्पसंख्यकों के पास जाकर समझाने का निर्देश नीतीश कुमार ने दिया है. नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्हें बताइए बिहार सरकार ने सबसे अधिक उनके लिए काम किया है. आखिर नीतीश कुमार को यह कहने की क्यों जरूरत पड़ रही है?

विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को लेकर चिंता (ETV Bharat)

जीत के लिए जरूरी हैं मुस्लिम: एनडीए की बैठक में 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार ने 220 प्लस का टारगेट सेट किया है. मंत्री विजय कुमार चौधरी ने दावा किया है कि इस बार विपक्ष टिक नहीं पाएगा. अब इस टारगेट को अचीव करने के लिए बिहार के करीब 17 फीसदी मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी जरूरी है.

नीतीश कुमार की मुस्लिम वोट पर नजर!: इसका सबसे बड़ा कारण है कि 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया यानी एनडीए का एक भी मुस्लिम विधायक चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाया था. बाद में बसपा के विधायक जमा खान को जदयू में शामिल करा कर मंत्री बनाया गया. यही नहीं 2024 यानी कि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी एनडीए का मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव नहीं जीत पाया. नीतीश कुमार को चिंता सता रही है जिस प्रकार से मुस्लिम जदयू से दूर हुए हैं. 2025 में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट को जीतना उनके लिए बड़ी चुनौती है इसलिए उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है.

"नीतीश कुमार के राज में मुसलमानों के लिए सबसे अधिक काम किए गए हैं. अल्पसंख्यक विभाग का बजट कई गुना बढ़ाया गया है. कब्रिस्तान की घेराबंदी नीतीश कुमार के शासन में ही शुरू हुई. अल्पसंख्यक के बच्चों के लिए स्कॉलरशिप सहित कई योजना शुरू की गई है. यहां तक की मदरसा शिक्षकों को वेतन और अन्य सुविधा नीतीश कुमार के शासन में ही मिली है. हमें भरोसा है कि नीतीश कुमार के विकास के काम को लेकर ही अल्पसंख्यक 2025 में वोट करेंगे."- जमा खान, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, बिहार सरकार

Muslim votes important for Nitish Kumar
नीतीश कुमार (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

डैमेज कंट्रोल की तैयारी: 2020 विधानसभा चुनाव में बिहार में 19 सीटों पर मुस्लिम चेहरे जीत कर आए थे. उसमें से एनडीए के एक भी नहीं थे. जदयू ने 11 उम्मीदवार को खड़ा किया था कोई जीत नहीं पाया. बिहार विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की है. पार्टी ने 5 सीट जीती हैं.

बिहार विधानसभा में कुल 19 मुस्लिम चेहरे: वहीं, अन्य पार्टियों से जीते मुस्लिम उम्मीदवारों की बात करें तो राजद से 8, कांग्रेस से 4, भाकपा (माले) से एक और बसपा से एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. बसपा से जीते हैं जमा खान बाद में जदयू में शामिल हो गए और उन्हें मंत्री बनाया गया.अभी एनडीए सरकार में जमा खान इकलौते मुस्लिम मंत्री हैं. यानी 243 विधानसभा में कुल 19 मुस्लिम चेहरे चुनकर आए.

बीजेपी के साथ ने बढ़ा दी दूरी: 2015 की बात करें तो बिहार विधानसभा में 24 मुस्लिम चेहरे थे, जिसमें राजद के 11, वहीं, जेडीयू से 5 चेहरे सदन में आए. उस समय नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ चुनाव लड़े थे, लेकिन 2015 के बाद से जब से नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन किया है, मुस्लिम वोटरों ने दूरी बना ली है.

काम करने के बाद भी नहीं दूर हुई नाराजगी!: मुसलमानों के लिए सबसे अधिक काम करने के बावजूद बीजेपी के खिलाफ मुसलमानों में जो एनआरसी और सीएए और वक्फ बोर्ड को लेकर जो गुस्सा है, उसको काउंटर करने में जेडीयू असफल रही. इस साल लोकसभा चुनाव में भी जदयू से मुस्लिम दूर रहे हैं. लोकसभा चुनाव में जदयू ने किशनगंज से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार से चुनाव हार गया.

Muslim votes important for Nitish Kumar
नीतीश कुमार (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

'बीजेपी के खिलाफ मुस्लिम': राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है कि नीतीश कुमार के हाल के कुछ महीनो में बीजेपी के साथ विवादास्पद मुद्दों में भी बहुत कड़े तेवर नहीं रहे हैं, जो पहले हुआ करता था. वक्फ बोर्ड का मामला हो, एनआरसी और अन्य मामलों के साथ नीतीश कुमार ने एनडीए में जिस प्रकार से फिर से वापसी की है, उससे भी मुस्लिम खेमा खुश नहीं है. क्योंकि मुस्लिम बीजेपी के अगेंस्ट में रहे हैं और इसका खामियाजा नीतीश कुमार को भी उठाना पड़ रहा है.

"मुस्लिम चुनाव में उसी पार्टी और उम्मीदवार का समर्थन करते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो. ऐसे में उनके पास इस बार प्रशांत किशोर की पार्टी के रूप में भी विकल्प होगा. साथ ही सीमांचल में एआईएमआईएम एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है. वहीं सिवान में शहाबुद्दीन का एक समय जलवा था. अब उनके परिवार के लोग आरजेडी में शामिल हो गए हैं तो आरजेडी पहले से ही अल्पसंख्यकों का घर रहा है. अब आरजेडी पर विश्वास बढ़ सकता है. यही सब कारण है कि नीतीश कुमार की चिंता मुस्लिम वोटों को लेकर बढ़ी है."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

47 सीटों पर मुस्लिम वोट हैं निर्णायक: बिहार में मुस्लिम समुदाय की आबादी 16 फीसदी है. सूबे की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. सीमांचल के इलाके में मुस्लिम समुदाय की आबादी 40 से 70 फीसदी के करीब है.

Muslim votes important for Nitish Kumar
ईटीवी भारत GFX (ETV Bharat)

सीमांचल का समीकरण: बिहार के सीमांचल क्षेत्र में 4 लोकसभा सीटें और 24 विधानसभा सीटें आती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के साथ रहते हुए जेडीयू को दो सीटों पर जीत हासिल की थी और बीजेपी ने एक सीट पर कब्जा जमाया था जबकि एक सीट कांग्रेस को मिली थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में से बीजेपी आठ, कांग्रेस पांच और जेडीयू चार सीटें जीती थीं. आरजेडी और भाकपा माले ने एक-एक सीट जीती थी. एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीती थीं, जिनमें से चार पिछले साल आरजेडी में शामिल हो गए हैं. ऐसे में आरजेडी के पांच और ओवैसी की पार्टी के एक विधायक सीमांचल में है.

वक्फ बोर्ड पर भी नाराजगी: बिहार में 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अल्पसंख्यकों को लेकर बीजेपी से कभी समझौता नहीं किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी विवादास्पद मुद्दों पर बीजेपी से अपनी अलग राय रखते रहे. बीजेपी के नेता भी मुसलमानों के मामले में चुप्पी साधे रहते थे. उस समय नीतीश कुमार बीजेपी के हिंदुत्व वादी नेताओं को आईना दिखाने के लिए यह बयान दिया करते थे कि इस देश में वही शासन करेगा जो टीका भी लगाएगा और टोपी भी पहनेगा

नीतीश कुमार मस्जिदों में दुआ मांगने और दरगाह पर चादरपोशी करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. यहां तक की मुसलमानों के पर्व में भी बढ़-कर कर अपनी भागीदारी निभाते रहे हैं. केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अब नीतीश कुमार के रुख बदले हैं. ताजा मामला वक्फ बोर्ड को लेकर भी है जिसमें संसद में जदयू ने पुरजोर समर्थन किया था और अभी गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा को लेकर भी जदयू का नरम रख रहा है. ऐसे में यह सवाल अब उठ रहा है कि नीतीश कुमार के लाख प्रयास के बाद भी क्या मुस्लिम नीतीश कुमार पर भरोसा करेंगे?

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एनडीए की बैठक में नीतीश कुमार का निर्देश: वहीं एनडीए की बड़ी बैठक में घटक दल के सभी नेताओं को अल्पसंख्यकों के पास जाकर समझाने का निर्देश नीतीश कुमार ने दिया है. नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्हें बताइए बिहार सरकार ने सबसे अधिक उनके लिए काम किया है. आखिर नीतीश कुमार को यह कहने की क्यों जरूरत पड़ रही है?

विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को लेकर चिंता (ETV Bharat)

जीत के लिए जरूरी हैं मुस्लिम: एनडीए की बैठक में 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश कुमार ने 220 प्लस का टारगेट सेट किया है. मंत्री विजय कुमार चौधरी ने दावा किया है कि इस बार विपक्ष टिक नहीं पाएगा. अब इस टारगेट को अचीव करने के लिए बिहार के करीब 17 फीसदी मुस्लिम वोटों में हिस्सेदारी जरूरी है.

नीतीश कुमार की मुस्लिम वोट पर नजर!: इसका सबसे बड़ा कारण है कि 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया यानी एनडीए का एक भी मुस्लिम विधायक चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाया था. बाद में बसपा के विधायक जमा खान को जदयू में शामिल करा कर मंत्री बनाया गया. यही नहीं 2024 यानी कि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भी एनडीए का मुस्लिम कैंडिडेट चुनाव नहीं जीत पाया. नीतीश कुमार को चिंता सता रही है जिस प्रकार से मुस्लिम जदयू से दूर हुए हैं. 2025 में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट को जीतना उनके लिए बड़ी चुनौती है इसलिए उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है.

"नीतीश कुमार के राज में मुसलमानों के लिए सबसे अधिक काम किए गए हैं. अल्पसंख्यक विभाग का बजट कई गुना बढ़ाया गया है. कब्रिस्तान की घेराबंदी नीतीश कुमार के शासन में ही शुरू हुई. अल्पसंख्यक के बच्चों के लिए स्कॉलरशिप सहित कई योजना शुरू की गई है. यहां तक की मदरसा शिक्षकों को वेतन और अन्य सुविधा नीतीश कुमार के शासन में ही मिली है. हमें भरोसा है कि नीतीश कुमार के विकास के काम को लेकर ही अल्पसंख्यक 2025 में वोट करेंगे."- जमा खान, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, बिहार सरकार

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नीतीश कुमार (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

डैमेज कंट्रोल की तैयारी: 2020 विधानसभा चुनाव में बिहार में 19 सीटों पर मुस्लिम चेहरे जीत कर आए थे. उसमें से एनडीए के एक भी नहीं थे. जदयू ने 11 उम्मीदवार को खड़ा किया था कोई जीत नहीं पाया. बिहार विधानसभा चुनावों में एआईएमआईएम ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की है. पार्टी ने 5 सीट जीती हैं.

बिहार विधानसभा में कुल 19 मुस्लिम चेहरे: वहीं, अन्य पार्टियों से जीते मुस्लिम उम्मीदवारों की बात करें तो राजद से 8, कांग्रेस से 4, भाकपा (माले) से एक और बसपा से एक मुस्लिम उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. बसपा से जीते हैं जमा खान बाद में जदयू में शामिल हो गए और उन्हें मंत्री बनाया गया.अभी एनडीए सरकार में जमा खान इकलौते मुस्लिम मंत्री हैं. यानी 243 विधानसभा में कुल 19 मुस्लिम चेहरे चुनकर आए.

बीजेपी के साथ ने बढ़ा दी दूरी: 2015 की बात करें तो बिहार विधानसभा में 24 मुस्लिम चेहरे थे, जिसमें राजद के 11, वहीं, जेडीयू से 5 चेहरे सदन में आए. उस समय नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ चुनाव लड़े थे, लेकिन 2015 के बाद से जब से नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन किया है, मुस्लिम वोटरों ने दूरी बना ली है.

काम करने के बाद भी नहीं दूर हुई नाराजगी!: मुसलमानों के लिए सबसे अधिक काम करने के बावजूद बीजेपी के खिलाफ मुसलमानों में जो एनआरसी और सीएए और वक्फ बोर्ड को लेकर जो गुस्सा है, उसको काउंटर करने में जेडीयू असफल रही. इस साल लोकसभा चुनाव में भी जदयू से मुस्लिम दूर रहे हैं. लोकसभा चुनाव में जदयू ने किशनगंज से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार से चुनाव हार गया.

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नीतीश कुमार (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

'बीजेपी के खिलाफ मुस्लिम': राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है कि नीतीश कुमार के हाल के कुछ महीनो में बीजेपी के साथ विवादास्पद मुद्दों में भी बहुत कड़े तेवर नहीं रहे हैं, जो पहले हुआ करता था. वक्फ बोर्ड का मामला हो, एनआरसी और अन्य मामलों के साथ नीतीश कुमार ने एनडीए में जिस प्रकार से फिर से वापसी की है, उससे भी मुस्लिम खेमा खुश नहीं है. क्योंकि मुस्लिम बीजेपी के अगेंस्ट में रहे हैं और इसका खामियाजा नीतीश कुमार को भी उठाना पड़ रहा है.

"मुस्लिम चुनाव में उसी पार्टी और उम्मीदवार का समर्थन करते हैं जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो. ऐसे में उनके पास इस बार प्रशांत किशोर की पार्टी के रूप में भी विकल्प होगा. साथ ही सीमांचल में एआईएमआईएम एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है. वहीं सिवान में शहाबुद्दीन का एक समय जलवा था. अब उनके परिवार के लोग आरजेडी में शामिल हो गए हैं तो आरजेडी पहले से ही अल्पसंख्यकों का घर रहा है. अब आरजेडी पर विश्वास बढ़ सकता है. यही सब कारण है कि नीतीश कुमार की चिंता मुस्लिम वोटों को लेकर बढ़ी है."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विशेषज्ञ

47 सीटों पर मुस्लिम वोट हैं निर्णायक: बिहार में मुस्लिम समुदाय की आबादी 16 फीसदी है. सूबे की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं. सीमांचल के इलाके में मुस्लिम समुदाय की आबादी 40 से 70 फीसदी के करीब है.

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सीमांचल का समीकरण: बिहार के सीमांचल क्षेत्र में 4 लोकसभा सीटें और 24 विधानसभा सीटें आती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के साथ रहते हुए जेडीयू को दो सीटों पर जीत हासिल की थी और बीजेपी ने एक सीट पर कब्जा जमाया था जबकि एक सीट कांग्रेस को मिली थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में से बीजेपी आठ, कांग्रेस पांच और जेडीयू चार सीटें जीती थीं. आरजेडी और भाकपा माले ने एक-एक सीट जीती थी. एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीती थीं, जिनमें से चार पिछले साल आरजेडी में शामिल हो गए हैं. ऐसे में आरजेडी के पांच और ओवैसी की पार्टी के एक विधायक सीमांचल में है.

वक्फ बोर्ड पर भी नाराजगी: बिहार में 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अल्पसंख्यकों को लेकर बीजेपी से कभी समझौता नहीं किया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सभी विवादास्पद मुद्दों पर बीजेपी से अपनी अलग राय रखते रहे. बीजेपी के नेता भी मुसलमानों के मामले में चुप्पी साधे रहते थे. उस समय नीतीश कुमार बीजेपी के हिंदुत्व वादी नेताओं को आईना दिखाने के लिए यह बयान दिया करते थे कि इस देश में वही शासन करेगा जो टीका भी लगाएगा और टोपी भी पहनेगा

नीतीश कुमार मस्जिदों में दुआ मांगने और दरगाह पर चादरपोशी करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं. यहां तक की मुसलमानों के पर्व में भी बढ़-कर कर अपनी भागीदारी निभाते रहे हैं. केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद अब नीतीश कुमार के रुख बदले हैं. ताजा मामला वक्फ बोर्ड को लेकर भी है जिसमें संसद में जदयू ने पुरजोर समर्थन किया था और अभी गिरिराज सिंह की हिंदू स्वाभिमान यात्रा को लेकर भी जदयू का नरम रख रहा है. ऐसे में यह सवाल अब उठ रहा है कि नीतीश कुमार के लाख प्रयास के बाद भी क्या मुस्लिम नीतीश कुमार पर भरोसा करेंगे?

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