रांची: लोकसभा चुनाव में एक ओर जहां नेता किसी तरह चुनाव लड़ने के लिए टिकट पाने की जुगत में जुड़े रहते हैं. वहीं झारखंड में एक नेता ऐसे भी हैं, जो दो बार सांसद और विधायक रह चुके हैं. बावजूद इसके वे इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. हम बात कर रहे हैं हजारीबाग के पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता की.
भुवनेश्वर मेहता 1992 और 2004 में हजारीबाग से सांसद रह चुके हैं. इसके अलावा वह 80 के दशक में दो बार विधायक के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं.
"पिछले चार दशक में भुवनेश्वर मेहता सीपीआई पार्टी की ओर से आठ से नौ बार चुनाव लड़ चुके हैं. जिसमें उन्होंने चार बार जीत भी हासिल की है. वे 2009, 2014 और 2019 में हजारीबाग सीट से सीपीआई पार्टी के लिए सांसद का चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन दो बार को छोड़कर हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा." - अजय सिंह, प्रवक्ता, झारखंड सीपीआई
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि हर चुनाव में सीपीआई की ओर से हजारीबाग सीट पर चुनाव लड़ने का दम भरने वाले भुवनेश्वर मेहता इस बार चुनाव से क्यों हट गए? इसका कारण पूछे जाने पर पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता अपनी उम्र और अन्य समस्याओं का हवाला देते हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भुवनेश्वर मेहता इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ेगा. झारखंड सीपीआई के वरिष्ठ नेता होने के नाते सीपीआई के शीर्ष नेताओं ने उनसे चुनाव लड़ने का आग्रह किया था, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, पूर्व सांसद भुवनेश्वर मेहता को चुनाव लड़ने की तैयारी के लिए दिल्ली भी बुलाया गया था और वहां भी शीर्ष नेताओं ने उन्हें काफी समझाने का प्रयास किया कि वे पार्टी के लिए चुनाव लड़ें, क्योंकि यह पार्टी की इज्जत का सवाल है. लेकिन लाख अनुरोध के बावजूद भुवनेश्वर मेहता ने एक न सुनी और उन्होंने चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया. जिसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को हजारीबाग से नए उम्मीदवार की तलाश करनी पड़ी और हजारीबाग से अनिरुद्ध कुमार नामक उम्मीदवार को मैदान में उतारने का निर्णय लिया गया.
अब सवाल ये उठता है कि जब हर राजनीतिक व्यक्ति की ये इच्छा होती है कि वो किसी भी क्षेत्र से चुनाव लड़े लेकिन इसके बावजूद भी भुवनेश्वर मेहता जैसे नेता जो दो बार सांसद रह चुके हैं उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार क्यों कर दिया?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसका मुख्य कारण ये है कि जब 2004 में भुवनेश्वर मेहता जब चुनाव जीते थे तो उस समय पूरे गठबंधन ने उनका साथ दिया था. "साइन इंडिया" के नारे के बावजूद भुवनेश्वर मेहता 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा जैसे नेता को हराने में कामयाब रहे थे. इसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी, लेकिन उसके बाद 2009, 2014 और 2019 में सीपीआई पार्टी के लिए हजारीबाग लोकसभा से खड़े हुए भुवनेश्वर मेहता को हर बार हार का सामना करना पड़ा.
लगातार तीन हार के बाद यह साफ हो गया कि यूपीए या इंडिया गठबंधन के बिना हजारीबाग से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का उम्मीदवार नहीं जीत सकता. इसीलिए भुवनेश्वर मेहता ने इस बार चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया. इस पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता महेंद्र पाठक ने भी सहमति जतायी.
"अगर इंडिया गठबंधन के तहत हजारीबाग से उन्हें सीट मिलती तो उनकी पार्टी भुवनेश्वर मेहता को जरूर मैदान में उतारती, लेकिन पिछले तीन चुनावों के नतीजों को देखने के बाद यह साफ है कि इस बार सीपीआई को फिर हार का सामना करना पड़ सकता है, ऐसे में वे हारने के लिए अपनी पार्टी के किसी बड़े नेता को मैदान में नहीं उतार सकते." - महेंद्र पाठक, वरिष्ठ नेता, सीपीआई
गौरतलब है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने इंडिया गठबंधन के तहत हजारीबाग सीट पाने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन इंडिया गठबंधन ने कोडरमा सीट पर सिर्फ भाकपा माले के लिए सहमति जताई. जिसके कारण सीपीआई पार्टी को हजारीबाग सीट नहीं मिल पाई.
पूरी कहानी को समझने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि दो बार सांसद और दो बार विधायक रहने के बावजूद भुवनेश्वर मेहता को हजारीबाग से हार का डर सता रहा था. इसीलिए उन्होंने इस बार चुनावी मैदान में उतरने से साफ इनकार कर दिया. अब देखना यह है कि बड़े नेता को छोड़कर छोटे नेता पर दांव लगाने से सीपीआई झारखंड को कितना नुकसान उठाना पड़ता है या इसका कुछ अलग ही नतीजा होगा.