पटनाः बिहार बीजेपी के समक्ष नेतृत्व तलाशने की चुनौती है. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं. एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत के हिसाब से सम्राट चौधरी अध्यक्ष पद छोड़ेंगे और पार्टी किसी दूसरे नेता को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी देगी. इसको लेकर मंथन शुरू हो गया है. इस दौड़ में कई नेता शामिल हैं, जो प्रदेश अध्यक्ष के लिए दावेदार हैं.
एक व्यक्ति एक पद सिद्धांतः लोकसभा और विधानसभा चुनाव को देखते हुए काफी जद्दोजहद के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. 6 महीने नहीं बीते की बिहार के राजनीतिक समीकरण बदल गई. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर चलती है. सम्राट चौधरी के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. पार्टी किसी पिछड़े या अति पिछड़े चेहरे पर दाव लगा सकती है.
"भाजपा में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत है. पार्टी ने सख्ती से पालन भी किया है. सम्राट चौधरी के डिप्टी सीएम बनने के बाद मंथन शुरू हो गया है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह चौकाने वाले फैसले के लिए जाने जाते हैं. हालांकि संजीव चौरसिया, राजेंद्र गुप्ता, जनक राम और तारकिशोर प्रसाद दौड़ में शामिल हैं." -प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार
राजेंद्र गुप्ता दौड़ में सबसे आगेः सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में राजेंद्र गुप्ता का नाम सबसे ऊपर चल रहा है. राजेंद्र गुप्ता विधान पार्षद हैं और अति पिछड़ा समाज से आते हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी भी माने जाते हैं. राजेंद्र गुप्ता उत्तर बिहार के संयोजक भी हैं. अगर अति पिछड़ा पर दाव लगाया जाता है तो राजेंद्र गुप्ता प्रमुख दावेदार हो सकते हैं. इनका संगठन में काम करने का अनुभव भी है.
संजीव चौरसिया पिछली बार भी दौड़ में थेः BJP युवा को तवज्जो दे रही है. 50 या 55 साल के नेताओं को आगे लाया जा रहा है. ऐसे में राजेंद्र गुप्ता की दावेदारी में उम्र आड़े आ सकती है. इसके अलावा राजेंद्र गुप्ता वोकल नहीं माने जाते हैं. आक्रामक राजनीति इनकी पहचान नहीं है. दीघा विधायक संजीव चौरसिया पिछली बार भी अध्यक्ष पद के दौड़ में शामिल थे. अति पिछड़ा समाज से आने वाले संजीव चौरसिया पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया के पुत्र हैं. संजय जयसवाल की टीम में महामंत्री थे.
संजीव चौरसिया की छवि वोकल नेता की नहींः संजीव चौरसिया आक्रामक राजनीति नहीं करते हैं. विरोधियों पर भी बोलने के दौरान उनके तेवर नरम रहते हैं. संजीव चौरसिया की छवि वोकल नेता की नहीं है. जनक राम दलित समाज से आते हैं और पिछले सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे. जनक राम गोपालगंज से सांसद भी रह चुके हैं. संजय जयसवाल की टीम में महामंत्री थे फिलहाल पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं. दलित सियासत में ईनकी पकड़ अच्छी मानी जाती है. जनक राम विधान पार्षद हैं.
उम्र ज्यादा होने से तारकिशोर हो सकते हैं पीछेः जनक राम मूल रूप से बसपा की राजनीति से आए हैं. उसके बाद भाजपा में शामिल हुए थे. जनक राम आक्रामक सियासत के लिए नहीं जाने जाते हैं. विरोधियों के प्रति भी इनके तेवर तल्ख नहीं होते. तारकिशोर प्रसाद पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं और बनिया समाज से आते हैं. बनिया समाज के लोगों को संगठन या कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. इस लिहाज से इनका दावा मजबूत है. कटिहार से विधायक हैं और मृदु भाषी होने के चलते पार्टी नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं. हालांकि इनके तेवर भी आक्रामक नहीं है और उम्र आड़े आ सकती है.
गुपचुप रहकर राजनीति हैं प्रदीप कुमारः प्रदीप कुमार अररिया से सांसद हैं. अति पिछड़ा समाज से आते हैं. जातिगत जनगणना को देखते हुए प्रदीप कुमार की दावेदारी मजबूत मानी जा सकती है. अति पिछड़ा समाज से प्रदीप कुमार आते हैं. प्रदीप कुमार के जरिए भाजपा कोसी इलाके को साध सकती है. प्रदीप कुमार को प्रदेश स्तर पर संगठन में काम करने का अनुभव प्राप्त नहीं है. प्रदेश के नेताओं से इनका मेलजोल बहुत ज्यादा नहीं है. ये गुपचुप रहकर यह राजनीति करना सही मानते हैं.
राधा मोहन सिंह के करीबी हैं प्रमोद कुमारः विधायक प्रमोद कुमार अति पिछड़ा समाज से आते हैं. संगठन में काम करने का अनुभव प्राप्त है और सभी नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं. पिछले सरकार में प्रमोद कुमार मंत्री थे. प्रमोद कुमार राधा मोहन सिंह के करीबी माने जाते हैं. यह आक्रामक बयान बाजी के लिए जाने जाते हैं. प्रमोद कुमार की उम्र बाधा उत्पन्न कर सकती है. प्रमोद कुमार नीतीश कुमार के खिलाफ कई बार टिप्पणी कर मुश्किल में पड़ चुके हैं. राजनीति विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बार प्रदेश अध्यक्ष के चयन में उलझन है.
"भाजपा के लिए प्रदेश अध्यक्ष का चयन कठिन चुनौती है. पार्टी किसी अति पिछड़े पर दाव लगा सकती है. लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी को जल्द इस मसले पर फैसला लेना पड़ सकता है." -डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
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