रांची: 18वीं लोकसभा चुनाव ने झारखंड का राजनीतिक समीकरण बदल दिया है. भाजपा को अपनी तीनों एसटी सीटें गंवानी पड़ी. इंडिया गठबंधन को इन्हीं तीन सीटों का फायदा हुआ. लेकिन दो बड़े गठबंधन के बीच हुई टक्कर में अगर किसी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा तो वह हैं जयराम महतो. समर्थक इनको युवा टाइगर के नाम से बुलाते हैं.
स्थानीयता और क्षेत्रीय भाषा के मसले पर क्राउड पुलर बनकर उभरे जयराम महतो ने झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति यानी जेबीकेएसएस के नाम पर पार्टी बनाकर तीन सीटों पर चुनावी लड़ाई को रोचक बना दिया. झारखंड की राजनीति में इनकी धाकड़ एंट्री से इस बात की चर्चा शुरु हो गई है कि मौजूदा दौर में झारखंड का कुर्मी नेता कौन है सुदेश या जयराम महतो उर्फ टाइगर.
दरअसल, जेबीकेएसएस का गठन करने वाले जयराम महतो ने आठ लोकसभा सीटों पर ताल ठोका था. वह खुद गिरिडीह सीट से मैदान में उतरे थे. उनकी टीम में शामिल संजय कुमार मेहता हजारीबाग के प्रत्याशी थे. रांची सीट से छात्र नेता देवेंद्र नाथ महतो ने चुनाव लड़ा था. इसके अलावा कोडरमा में मनोज यादव, सिंहभूम में दामोदर सिंह हांसदा, धनबाद में अखलाक अहमद, दुमका में देवीलता टुडू और चतरा में दीपक गुप्ता उम्मीदवार थे. लेकिन गिरिडीह, हजारीबाग और रांची में जेबीकेएसएस का जादू कुर्मी वोटरों पर साफ दिखा. खासकर आजसू के गढ़ में.
आजसू के गढ़ सिल्ली में चमका जेबीकेएसएस का सितारा
दरअसल, झारखंड की राजनीति क्षेत्रीय दलों के इर्द गिर्द घूमती रही है. यहां आदिवासी के बाद कुर्मी वोटर सत्ता का रास्ता तय करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. संभव है कि इसी लिहाज से खुद को कुर्मी का नेता कहने वाले आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को भाजपा ने एनडीए में जगह दी. लेकिन इस चुनाव में उनका जादू नहीं दिखा. जिस जाति के बल पर उनकी राजनीति टिकी है, वह जाति जयराम के प्रभाव में जाती दिखी.
इसको समझने के लिए आजसू के गढ़ कहे जाने वाले सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में आए वोट के बंटवारे को समझना होगा. सिल्ली सुदेश महतो की कर्मभूमि है. वह यहां से विधायक भी हैं. रांची लोकसभा सीट के अधीन सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में कुल 1,64,518 लोगों ने वोट किया था. इनमें कांग्रेस की यशस्विनी सहाय को 34,846 वोट मिले थे. भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ को 57,281 वोट मिले, जबकि जेबीकेएसएस के प्रत्याशी देवेंद्र नाथ महतो 49,362 वोट निकाल ले गये. आंकड़े संकेत दे रहे हैं कि सिल्ली से कुर्मी वोटर सुदेश से छिटककर जयराम महतो में अपना भविष्य तलाश रहे हैं.
गोमिया में भी नहीं चला सुदेश का जादू
इस सीट से आजसू के लंबोदर महतो विधायक हैं. गिरिडीह संसदीय सीट के तहत आने वाले गोमिया विधानसभा क्षेत्र में भी आजसू का जादू नहीं चला. यहां कुल 2,14,654 लोगों ने वोट डाले थे. इसमें से जयराम महतो उर्फ टाइगर को सबसे ज्यादा 70,828 वोट मिले. दूसरे स्थान पर आजसू के प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी रहे. उन्हें 66,488 वोट तो झामुमो प्रत्याशी मथुरा महतो 58,828 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे.
आंकड़े बता रहे हैं कि गोमिया में भी आजसू को जेबीकेएसएस ने जबरदस्त पटखनी दी है. यहां गौर करना जरूरी है कि बेशक चंद्रप्रकाश चौधरी गिरिडीह चुनाव जीत गये लेकिन पहली बार चुनाव लड़कर जयराम ने बंपर वोट बटोरे. चंद्रप्रकाश को कुल 4,51,139 वोट, झामुमो प्रत्याशी मथुरा महतो को 3,70,259 वोट मिले तो जयराम महतो 3,47,322 वोट लाकर साबित कर दिया कि वह आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीति की नई तस्वीर उकेरने की क्षमता रखते हैं.
रामगढ़ में भी जेबीकेएसएस ने आजसू के उड़ाए होश
अब बात हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले रामगढ़ की करते हैं. इस विधानसभा सीट पर आजसू का कब्जा है. कांग्रेस की ममता देवी ने 2019 के चुनाव में आजसू के कद्दावर नेता चंद्रप्रकाश चौधरी को हराया था. लेकिन ममता को एक मामले में सजा होने के बाद हुए उपचुनाव में चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी ने ममता देवी के पति बजरंग महतो को हराकर सीट पर दोबारा कब्जा जमा लिया था.
हजारीबाग सीट के लिए हुए लोकसभा चुनाव में जेबीकेएसएस ने रामगढ़ में अपना दबदबा साबित कर दिया. इस विस क्षेत्र में कुल 2,49,529 लोगों ने वोट डाले थे. इनमें भाजपा प्रत्याशी मनीष जयसवाल को 1,08,110 वोट और कांग्रेस प्रत्याशी जे.पी.पटेल को 70,517 वोट मिले थे. इसकी तुलना में जेबीकेएसएस प्रत्याशी संजय कुमार मेहता ने 55,485 वोट लाकर साबित कर दिया कि यहां के कुर्मी वोटर भी जयराम महतो में अपना नेता देखने लगे हैं.
आपको बता दें कि झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से सिल्ली, रामगढ़ और गोमिया सीट आजसू के पास है. गठबंधन के तहत मिले गिरिडीह सीट को दोबारा जीतने में आजसू कामयाब रहा है. लेकिन चुनावी आंकड़े बता रहे हैं कि जयराम महतो उर्फ टाइगर की एंट्री ने आजसू के लिए परेशानी खड़ी कर दी है. वोट के गणित बता रहे हैं कि जयराम को अगर विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का समर्थन मिला तो झारखंड की राजनीतिक तस्वीर बदल जाएगी. अब चर्चा हो रही है कि गिरिडीह में आजसू ने भाजपा कैडर की बदौलत जीत हासिल की है. यही वजह है कि मोदी सरकार में आजसू को जगह नहीं मिली.
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