रांची: लैंड स्कैम मामले में प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई ने झारखंड की राजनीतिक तस्वीर बदल दी है. 31 जनवरी की शाम तक राज्य की कमान हेमंत सोरेन के हाथों में थी, जो 2 फरवरी की सुबह चंपई सोरेन के पास आ गई. इस बीच राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने यह कहकर झारखंड की राजनीति को शक के कटघरे में खड़ा कर दिया है कि नई सरकार बनाने के विरोध में दो विधायकों ने राजभवन से संपर्क साधा था. राज्यपाल के मुताबिक इसको लेकर राजभवन में फोन आए थे.
उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया में एक विधायक का बयान चल रहा था कि हैदराबाद जाने की क्या जरुरत है. इस वजह से निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मंथन करना पड़ा. लेकिन इसकी वैद्यता को जांचना मुश्किल था. फिर भी साढ़े 26 घंटे के भीतर 1 फरवरी की रात को 11 बजे ही चंपई सोरेन को बुलाकर पत्र सौंप दिया गया. राज्यपाल ने यहां तक कहा कि हमने 24 या 48 घंटा के बजाए बहुमत साबित करने के लिए 10 दिन का समय दिया. इसके बावजूद राजभवन की भूमिका पर कैसे सवाल उठाए जा सकते हैं.
बेशक, चंपाई सोरेन द्वारा सीएम पद की शपथ लेते ही यह एपिसोड खत्म हो चुका है लेकिन राज्यपाल के कथन से एक गंभीर सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर उस ऊहापोह वाले दौर में किन दो विधायकों ने राजभवन से संपर्क साधा था. कौन वो दो विधायक हैं जो सरकार के पक्ष में नहीं थे. राज्यपाल के इस बयान पर क्या है सत्ताधारी दलों का स्टैंड. इन सवालों का जवाब जानना इसलिए भी जरुरी हो गया है कि 2 फरवरी को चंपई सोरेन ने दो मंत्रियों के साथ शपथ लिया था. इसके बाद 8 फरवरी को कैबिनेट विस्तार की तारीख तय कर दी गई थी. लेकिन ऐन मौके पर यह तारीख भी टल गई. अब 16 फरवरी को कैबिनेट का विस्तार होगा. कहीं यह आंतरिक खटपट का तो नतीजा नहीं है.
प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने ईटीवी भारत को फोन पर इस सवाल का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि राज्यपाल को इतनी हल्की बात नहीं करनी चाहिए. अगर कोई विधायक राजभवन में फोन करेगा तो उसका पता करना कोई मुश्किल काम नहीं है. यह भटकाने वाली बात है. उन्होंने पूछा कि राज्यपाल को बताना चाहिए कि आखिर पूरे घटनाक्रम पर उनको सफाई देने की जरुरत क्यों पड़ी. ईडी को किसने राजभवन में घुसने के लिए परमिशन दिया था. हेमंत सोरेन को पीछे के दरवाजे से ईडी क्यों ले गई. इस मामले में प्रमुख सत्ताधारी दल झामुमो की प्रतिक्रिया भी लेने की कोशिश की गई लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो पाया.
क्यों देना पड़ा राजभवन की भूमिका की जांच का ऑफर
संभवत: भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी राज्यपाल को कहना पड़ा कि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और सरकार बनाने में विलंब के पीछे राजभवन की भूमिका को लेकर किसी भी तरह का संदेह है तो राज्य की एजेंसी से इसकी जांच कराई जा सकती है. उन्होंने यहां तक कह दिया जांच में हर तरह का सहयोग मिलेगा. हालांकि उनके बयान के अगले दिन यानी 9 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हमलोग इतने धृष्ट लोग नहीं हैं कि हम असंवैधानिक काम करें. राज्यपाल और राजभवन का दायरा कानून से भी ऊंचा होता है. इसी दायरे के तहत एक आदमी को बचाने के लिए राज्यपाल भी बनाया गया. राजभवन की पहरेदारी तो राज्य सरकार कर सकती है लेकिन जांच नहीं.
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