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पलायन के बाद बुजुर्गों की पीड़ा को दर्शाती फिल्म है 'पायर', विनोद कापड़ी ने बताया भारत में कब होगी रिलीज?

यूरोप के प्रतिष्ठित 28वें तेलिन ब्लैक नाइट्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ ऑडियंस अवार्ड जीत चुकी 'पायर' फिल्म, फिल्मकार विनोद कापड़ी ने बताई खास बातें

PYRE FILM
पायर फिल्म शूटिंग के दौरान का सीन (फोटो सोर्स- X@vinodkapri)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 16 hours ago

अल्मोड़ा: उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन से खाली हो चुके गांव और उनमें रह रहे बुजुर्गों की व्यथा को दर्शाती फिल्म 'पायर' इन दिनों खूब चर्चाओं में है. क्योंकि, यह फिल्म जहां पलायन के बाद खाली हो चुके गांवों की स्थिति को दर्शाती है तो वहीं इसी पृष्ठभूमि में एक बुजुर्ग दंपत्ति की सच्ची कहानी है. फिल्मकार विनोद कापड़ी की ओर से निर्मित फिल्म पायर को तेलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ ऑडियंस अवार्ड मिला है. इसी कड़ी में अल्मोड़ा पहुंचे फिल्म के लेखक एवं निर्देशक विनोद कापड़ी ने अहम जानकारी दी. उन्होंने बताया कि फिल्म को 7-8 महीनों बाद भारत में रिलीज किया जाएगा.

दो बुजुर्गों की अविश्वसनीय प्रेम कहानी है पायर: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता विनोद कापड़ी ने बताया कि उनकी नई फिल्म पायर (Pyre) उत्तराखंड के हिमालय की पृष्ठभूमि में रची 80 साल के दो बुजुर्गों (आमा बूबू) की एक अद्भुत, अनोखी और दिल को छू लेने वाली एक अविश्वसनीय प्रेम कहानी है. फिल्म में एक्टर के तौर पर गांव के ही दो बुजुर्ग पदम सिंह और हीरा देवी हैं.

लेखक और निर्देशक विनोद कापड़ी ने दी 'पायर' फिल्म की अहम जानकारी (वीडियो- ETV Bharat)

जिन्होंने फिल्म शूटिंग से पहले न कभी कैमरा फेस किया है न ही कोई फिल्म देखी है. ये दोनों बुजुर्ग पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील के ओखडा गांव के रहने वाले हैं. पदम सिंह पहले भारतीय सेना में थे और रिटायरमेंट के बाद खेती बाड़ी करते हैं. जबकि, हीरा देवी घर में पशुपालन और जंगल से लकड़ी व घास काटने-लाने का काम करती हैं.

पहले नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक को किया गया था कास्ट: पायर फिल्म के लेखक और निर्देशक विनोद कापड़ी ने बताया कि पहले इस फिल्म के लिए नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक शाह को कास्ट किया था. दोनों तैयार भी हो गए थे, लेकिन फिर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि हिमालय की कहानी में नसीर एवं रत्ना की कास्टिंग से फिल्म की प्रमाणिकता पर असर पड़ सकता है. जिसके बाद फिर लीड रोल के लिए हिमालय के दूर दराज के दर्जनों गांवों में खोज शुरू की गई.

दो माह की वर्कशाप के बाद तैयार हुए कलाकार: आखिरकार बाद पदम सिंह और तुलसी देवी को लीड रोल के लिए फिट पाया गया. उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी मुश्किल थी कि उन दोनों के साथ शूटिंग कैसे की जाए? क्योंकि उन दोनों ने कभी भी कैमरे का सामना नहीं किया था. एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के अनूप त्रिवेदी के मार्गदर्शन में दो महीने तक चली वर्कशॉप के बाद दोनों कलाकार शूटिंग के लिए तैयार किए गए.

पायर में गीतकार गुलजार ने लिखा गीत: फिल्म पायर में संगीत ऑस्कर विजेता फिल्म संगीतकार माइकल डैन्ना ने तैयार किया. जबकि, इस फिल्म में प्रसिद्ध गीतकार गुलजार का लिखा गीत भी है. विनोद कापरी ने कहा कि विश्व सिनेमा की इन तीन महान हस्तियों ने 'पायर' में अपना योगदान दिया है. इसके लिए जहां माइकल और पैट्रिशिया ने अपनी फीस 90 फीसदी कम ली तो वहीं गुलजार साहब ने तो फीस लेने से मना कर दिया.

खाली गांव में बुजुर्गों की स्थिति को दर्शाती है फिल्म: यह फिल्म 'पायर' उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन के बाद वहां खाली हो चुके गांव, जिन्हें 'भूतहा' गांव भी कहा जाता है कि पृष्ठभूमि में एक बुजुर्ग दंपत्ति की सच्ची कहानी पर आधारित है. निर्देशक विनोद कापड़ी ने बताया कि वो साल 2017 में मुनस्यारी के एक गांव में गए थे. जहां मृत्यु का इंतजार कर रहे इस बुजुर्ग दंपति के एक दूसरे को लेकर प्यार ने उनके दिल में ऐसी गहरी छाप छोड़ी, जिसके बाद उन्होंने यह फिल्म बनाने का फैसला किया.

विनोद कापड़ी ने बताया कि नॉन एक्टर की इस फिल्म के लिए उन्हें कोई निर्माता नहीं मिला तो उन्होंने अपनी पत्नी साक्षी जोशी के साथ खुद ये फिल्म बनाने का फैसला किया. यूरोप के प्रतिष्ठित 28वें तेलिन ब्लैक नाइट्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसका वर्ल्ड प्रीमियर हुआ. इस फेस्टिवल में यह अकेली भारतीय फिल्म चुनी गई थी. अब कम से कम 7-8 महीने तक 'पायर' अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में चलेगा. उसी के बाद पायर फिल्म को भारत में रिलीज किया जाएगा.

फिल्‍म बनाने का आइडिया: 'पायर' फिल्म बनाने का विचार किस तरह आया, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. इस फिल्म के सह निर्माता और लेखक अशोक पांडे बताते हैं कि मुनस्यारी के नीचे गोविंद नदी बहती थी. उसके सामने एक और पहाड़ है. वहां से मुनस्यारी दिखाई देता है. वहां कोरोना काल से दो-तीन साल पहले तक कोई रोड नहीं थी.

वहीं, दूसरी तरफ का हिस्सा बदलती हुई दुनिया से बिल्कुल अछूता था, भले वो नदी के उस पार बदलती हुई दुनिया देख रहे हों. जब रोड खुली तो यूं ही अशोक पांडे घूमने-फिरने मुनस्यारी से उस तरफ गए. वहां उनको अचानक एक बुजुर्ग मिले. वो पूरे जीवन कभी मुनस्यारी नहीं गए थे. उन्हें इस संसार की कोई खबर नहीं थी.

उससे जब अशोक पांडे ने पूछा कि इस समय किसकी सरकार है तो उन्होंने कहा पहले तो इंदिरा गांधी की थी, अब पता नहीं किसकी है? एक ट्रेकिंग के दौरान अशोक के दोस्त विनोद कापड़ी भी उन बुजुर्ग दंपती से मिले, वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके जीवन पर फिल्म बनाने का निश्चय कर लिया. वहीं, विनोद कापड़ी दूसरी फिल्म बनाने की तैयारी में है, जो पहाड़ से जुड़ी होगी.

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अल्मोड़ा: उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन से खाली हो चुके गांव और उनमें रह रहे बुजुर्गों की व्यथा को दर्शाती फिल्म 'पायर' इन दिनों खूब चर्चाओं में है. क्योंकि, यह फिल्म जहां पलायन के बाद खाली हो चुके गांवों की स्थिति को दर्शाती है तो वहीं इसी पृष्ठभूमि में एक बुजुर्ग दंपत्ति की सच्ची कहानी है. फिल्मकार विनोद कापड़ी की ओर से निर्मित फिल्म पायर को तेलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ ऑडियंस अवार्ड मिला है. इसी कड़ी में अल्मोड़ा पहुंचे फिल्म के लेखक एवं निर्देशक विनोद कापड़ी ने अहम जानकारी दी. उन्होंने बताया कि फिल्म को 7-8 महीनों बाद भारत में रिलीज किया जाएगा.

दो बुजुर्गों की अविश्वसनीय प्रेम कहानी है पायर: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता विनोद कापड़ी ने बताया कि उनकी नई फिल्म पायर (Pyre) उत्तराखंड के हिमालय की पृष्ठभूमि में रची 80 साल के दो बुजुर्गों (आमा बूबू) की एक अद्भुत, अनोखी और दिल को छू लेने वाली एक अविश्वसनीय प्रेम कहानी है. फिल्म में एक्टर के तौर पर गांव के ही दो बुजुर्ग पदम सिंह और हीरा देवी हैं.

लेखक और निर्देशक विनोद कापड़ी ने दी 'पायर' फिल्म की अहम जानकारी (वीडियो- ETV Bharat)

जिन्होंने फिल्म शूटिंग से पहले न कभी कैमरा फेस किया है न ही कोई फिल्म देखी है. ये दोनों बुजुर्ग पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील के ओखडा गांव के रहने वाले हैं. पदम सिंह पहले भारतीय सेना में थे और रिटायरमेंट के बाद खेती बाड़ी करते हैं. जबकि, हीरा देवी घर में पशुपालन और जंगल से लकड़ी व घास काटने-लाने का काम करती हैं.

पहले नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक को किया गया था कास्ट: पायर फिल्म के लेखक और निर्देशक विनोद कापड़ी ने बताया कि पहले इस फिल्म के लिए नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक शाह को कास्ट किया था. दोनों तैयार भी हो गए थे, लेकिन फिर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि हिमालय की कहानी में नसीर एवं रत्ना की कास्टिंग से फिल्म की प्रमाणिकता पर असर पड़ सकता है. जिसके बाद फिर लीड रोल के लिए हिमालय के दूर दराज के दर्जनों गांवों में खोज शुरू की गई.

दो माह की वर्कशाप के बाद तैयार हुए कलाकार: आखिरकार बाद पदम सिंह और तुलसी देवी को लीड रोल के लिए फिट पाया गया. उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी मुश्किल थी कि उन दोनों के साथ शूटिंग कैसे की जाए? क्योंकि उन दोनों ने कभी भी कैमरे का सामना नहीं किया था. एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के अनूप त्रिवेदी के मार्गदर्शन में दो महीने तक चली वर्कशॉप के बाद दोनों कलाकार शूटिंग के लिए तैयार किए गए.

पायर में गीतकार गुलजार ने लिखा गीत: फिल्म पायर में संगीत ऑस्कर विजेता फिल्म संगीतकार माइकल डैन्ना ने तैयार किया. जबकि, इस फिल्म में प्रसिद्ध गीतकार गुलजार का लिखा गीत भी है. विनोद कापरी ने कहा कि विश्व सिनेमा की इन तीन महान हस्तियों ने 'पायर' में अपना योगदान दिया है. इसके लिए जहां माइकल और पैट्रिशिया ने अपनी फीस 90 फीसदी कम ली तो वहीं गुलजार साहब ने तो फीस लेने से मना कर दिया.

खाली गांव में बुजुर्गों की स्थिति को दर्शाती है फिल्म: यह फिल्म 'पायर' उत्तराखंड में लगातार हो रहे पलायन के बाद वहां खाली हो चुके गांव, जिन्हें 'भूतहा' गांव भी कहा जाता है कि पृष्ठभूमि में एक बुजुर्ग दंपत्ति की सच्ची कहानी पर आधारित है. निर्देशक विनोद कापड़ी ने बताया कि वो साल 2017 में मुनस्यारी के एक गांव में गए थे. जहां मृत्यु का इंतजार कर रहे इस बुजुर्ग दंपति के एक दूसरे को लेकर प्यार ने उनके दिल में ऐसी गहरी छाप छोड़ी, जिसके बाद उन्होंने यह फिल्म बनाने का फैसला किया.

विनोद कापड़ी ने बताया कि नॉन एक्टर की इस फिल्म के लिए उन्हें कोई निर्माता नहीं मिला तो उन्होंने अपनी पत्नी साक्षी जोशी के साथ खुद ये फिल्म बनाने का फैसला किया. यूरोप के प्रतिष्ठित 28वें तेलिन ब्लैक नाइट्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसका वर्ल्ड प्रीमियर हुआ. इस फेस्टिवल में यह अकेली भारतीय फिल्म चुनी गई थी. अब कम से कम 7-8 महीने तक 'पायर' अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में चलेगा. उसी के बाद पायर फिल्म को भारत में रिलीज किया जाएगा.

फिल्‍म बनाने का आइडिया: 'पायर' फिल्म बनाने का विचार किस तरह आया, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. इस फिल्म के सह निर्माता और लेखक अशोक पांडे बताते हैं कि मुनस्यारी के नीचे गोविंद नदी बहती थी. उसके सामने एक और पहाड़ है. वहां से मुनस्यारी दिखाई देता है. वहां कोरोना काल से दो-तीन साल पहले तक कोई रोड नहीं थी.

वहीं, दूसरी तरफ का हिस्सा बदलती हुई दुनिया से बिल्कुल अछूता था, भले वो नदी के उस पार बदलती हुई दुनिया देख रहे हों. जब रोड खुली तो यूं ही अशोक पांडे घूमने-फिरने मुनस्यारी से उस तरफ गए. वहां उनको अचानक एक बुजुर्ग मिले. वो पूरे जीवन कभी मुनस्यारी नहीं गए थे. उन्हें इस संसार की कोई खबर नहीं थी.

उससे जब अशोक पांडे ने पूछा कि इस समय किसकी सरकार है तो उन्होंने कहा पहले तो इंदिरा गांधी की थी, अब पता नहीं किसकी है? एक ट्रेकिंग के दौरान अशोक के दोस्त विनोद कापड़ी भी उन बुजुर्ग दंपती से मिले, वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके जीवन पर फिल्म बनाने का निश्चय कर लिया. वहीं, विनोद कापड़ी दूसरी फिल्म बनाने की तैयारी में है, जो पहाड़ से जुड़ी होगी.

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