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गजब है इस गांव की कहानी, 12 घंटे के लिए जंगल चले जाते हैं ग्रामीण, घरों में ताले तक नहीं लगाते - Years old tradition in Bagaha

Bagaha Village: पश्चिमी चंपारण जिले के बगहा के नौरंगिया गांव में वर्षों से पुरानी परंपरा आज भी चली आ रही है. नौरंगिया गांव में बैसाख की नवमी तिथि को गांव के लोग अपना-अपना घर छोड़कर 12 घंटे के लिए गांव से बाहर जंगल में चले जाते हैं. गांव के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं.

बगहा का नौरंगिया गांव की कहानी
बगहा का नौरंगिया गांव की कहानी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 17, 2024, 8:31 PM IST

बगहा का नौरंगिया गांव की कहानी (ETV Bharat)

बगहा: बिहार के बगहा के नौरंगिया में वर्षों पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है. बैसाख के नवमी को गांव के लोग घर छोड़कर 12 घंटे के लिए गांव से बाहर जंगल में चले जाते हैं. आधुनिकता की दौड़ में एक आदमी भी गांव में रुकने की हिम्मत नहीं करता. ऐसी ही एक प्राचीन प्रथा को आज भी आदिवासी लोग बड़ी शिद्दत के साथ निभाते आ रहे हैं वर्षों पुरानी परंपरा को बुजुर्ग के साथ साथ बच्चे भी मजबूर हैं. आइये जानते हैं आज नौरंगिया गांव की गजब कहानी.

देवी प्रकोप से मिलती है निजात: दरअसल, बगहा के नौरंगिया गांव में वर्षों से यह मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है. आदिवासी समुदाय बहुल इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है. इस प्रथा के चलते साल में एक बाद सीता नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते. लोग वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच अवस्थित भजनी कुट्टी स्थान पर जाकर पूरा दिन बिताते हैं.

जंगल में पूजा करतीं गांव की महिलाएं
जंगल में पूजा करतीं गांव की महिलाएं (ETV Bharat)

गांव में आई थी महामारी: गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह दैवीय प्रकोप से निजात पाना है. वर्षों पहले इस गांव में भीषण आगजनी होती थी. उसके बाद महामारी आई थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप अक्सर रहता था. इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना की थी और ऐसा करने का फरमान सुनाया था. जिसका आज भी लोग सिद्दत से पालन करते हैं.

बाबा परमहंस को सपने में आई था देवी मां: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जंगल के नौरंगिया गांव के मुखिया सुनील महतो ने बताया कि "यहां बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आई थी. मां ने उन्हें गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया. उन्होंने नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास के लिए चला जाए. इसके बाद यह परंपरा शुरू हो गई." यहीं वजह है कि नवमी के दिन लोग अपने घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं और यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इसके बाद 12 घंटे गुजरने के बाद वापस अपने-अपने घर चले जाते हैं.

जंगल में जाकर भोजन की तैयारी करतीं महिलाएं
जंगल में जाकर भोजन की तैयारी करतीं महिलाएं (ETV Bharat)

घरों में नहीं लगाते थे ताला: इस गांव की कहानी भी गजब की है.भजनी कुट्टी के पुजारी ने कहा कि "इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते है. पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती है. लेकिन अब लोग अपने अपने घरों में ताला लगाकर पूरा गांव खाली कर देते हैं" और बाबा परमहंस के भजनी कुट्टी में आकर पूरा दिन गुजारते हैं.

बगहा जिले का नौरंगिया गांव
बगहा जिले का नौरंगिया गांव (ETV Bharat)

परंपरा किसी उत्सव से कम नहीं: लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परंपरा किसी उत्सव से कम नहीं होती है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसा माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं. इस दिन पूजा अर्चना करते हुए हलुआ पूड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर लोग पूरे दिन जंगल में ही खाना बनाते और खाते हैं.

जंगल में खाना बनातीं महिलाएं
जंगल में खाना बनातीं महिलाएं (ETV Bharat)

गांव में पिकनिक का दिखता है नजारा: गांव के लोगों ने बता कि इस दौरान लोग मांस, मछली, मिट मुर्गा बनाते हैं और अपने रिश्तेदारों के साथ जंगल में एक साथ मिलकर भोजन करते हैं. सुबह 5 बजे घर से निकलकर शाम 5 बजे घर वापस लौटने की परंपरा है. बता दें की सीता नवमी के दिन जंगल में पिकनिक सा नजारा रहता है.

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बगहा का नौरंगिया गांव की कहानी (ETV Bharat)

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देवी प्रकोप से मिलती है निजात: दरअसल, बगहा के नौरंगिया गांव में वर्षों से यह मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी प्रकोप से निजात मिलती है. आदिवासी समुदाय बहुल इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है. इस प्रथा के चलते साल में एक बाद सीता नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी छोड़ने की हिम्मत नहीं करते. लोग वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच अवस्थित भजनी कुट्टी स्थान पर जाकर पूरा दिन बिताते हैं.

जंगल में पूजा करतीं गांव की महिलाएं
जंगल में पूजा करतीं गांव की महिलाएं (ETV Bharat)

गांव में आई थी महामारी: गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह दैवीय प्रकोप से निजात पाना है. वर्षों पहले इस गांव में भीषण आगजनी होती थी. उसके बाद महामारी आई थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप अक्सर रहता था. इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना की थी और ऐसा करने का फरमान सुनाया था. जिसका आज भी लोग सिद्दत से पालन करते हैं.

बाबा परमहंस को सपने में आई था देवी मां: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जंगल के नौरंगिया गांव के मुखिया सुनील महतो ने बताया कि "यहां बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आई थी. मां ने उन्हें गांव को प्रकोप से निजात दिलाने के लिए आदेश दिया. उन्होंने नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास के लिए चला जाए. इसके बाद यह परंपरा शुरू हो गई." यहीं वजह है कि नवमी के दिन लोग अपने घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं और यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इसके बाद 12 घंटे गुजरने के बाद वापस अपने-अपने घर चले जाते हैं.

जंगल में जाकर भोजन की तैयारी करतीं महिलाएं
जंगल में जाकर भोजन की तैयारी करतीं महिलाएं (ETV Bharat)

घरों में नहीं लगाते थे ताला: इस गांव की कहानी भी गजब की है.भजनी कुट्टी के पुजारी ने कहा कि "इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाते है. पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती है. लेकिन अब लोग अपने अपने घरों में ताला लगाकर पूरा गांव खाली कर देते हैं" और बाबा परमहंस के भजनी कुट्टी में आकर पूरा दिन गुजारते हैं.

बगहा जिले का नौरंगिया गांव
बगहा जिले का नौरंगिया गांव (ETV Bharat)

परंपरा किसी उत्सव से कम नहीं: लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परंपरा किसी उत्सव से कम नहीं होती है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसा माहौल रहता है. मेला लगता है. वहीं, पूजा करने के बाद रात को सब वापस आते हैं. इस दिन पूजा अर्चना करते हुए हलुआ पूड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है और फिर लोग पूरे दिन जंगल में ही खाना बनाते और खाते हैं.

जंगल में खाना बनातीं महिलाएं
जंगल में खाना बनातीं महिलाएं (ETV Bharat)

गांव में पिकनिक का दिखता है नजारा: गांव के लोगों ने बता कि इस दौरान लोग मांस, मछली, मिट मुर्गा बनाते हैं और अपने रिश्तेदारों के साथ जंगल में एक साथ मिलकर भोजन करते हैं. सुबह 5 बजे घर से निकलकर शाम 5 बजे घर वापस लौटने की परंपरा है. बता दें की सीता नवमी के दिन जंगल में पिकनिक सा नजारा रहता है.

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