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देसी जुगाड़ से ग्रामीण कर रहे खेतों की सिंचाई, साल के आठ महीने उपलब्ध रहता है पानी - IRRIGATION WITH INDIGENOUS JUGAAD

जल स्रोतों का इस्तेमाल खेती के लिए कैसे करें इसकी मिसाल लातेहार में देख सकते हैं. ग्रामीण कैनाल बनाकर खेतों की सिंचाई कर रहे हैं.

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ग्राफिक्स (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 29, 2024, 3:12 PM IST

लातेहार: जिले के गारू प्रखंड अंतर्गत वन गांव हेनार के ग्रामीण जुगाड़ पद्धति से अपने खेतों को सिंचित कर बेहतरीन खेती करते हैं. वन गांव होने के कारण इस गांव में ना तो सिंचाई के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई सुविधा दी गई है और ना ही इस गांव में बिजली की सुविधा है. इसके बावजूद यहां के ग्रामीणों की जुगाड़ इतनी बेहतरीन है कि इनके खेतों तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचता रहता है.

संवाददाता राजीव कुमार की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

दरअसल, हेनार गांव राजस्व गांव ना होकर वन गांव है. वन गांव होने के कारण यहां मनरेगा समेत दूसरी कोई भी योजना संचालित नहीं होती है. इसी कारण इस गांव में आज तक बिजली भी नहीं पहुंची और न ही प्रशासनिक स्तर पर सिंचाई की सुविधा बहाल की गई है. सुविधा विहीन होने के बावजूद यहां के ग्रामीण अपने बूते पर खेतों को सिंचित करते हैं और वहां खेती कर अपना भरण पोषण करते हैं.

पहाड़ के पानी को बांधकर पहुंचते हैं खेतों तक

जिले के इस गांव के लोग पास स्थित पहाड़ की तलहटी में बहने वाले पानी को बांध बनाकर रोक देते हैं. बांध में जब कुछ पानी जमा हो जाता है तो बांध को खोलते हैं और ग्रामीणों के द्वारा बनाए गए कच्चे कैनाल के माध्यम से पानी खेतों तक पहुंच जाता है. इस पद्धति के माध्यम से कम से कम 8 महीने तक उनकी खेतों में पानी पहुंचता रहता है. हालांकि गर्मी के दिनों में जब पानी का स्रोत सूख जाता है, तो सिंचाई में समस्या होती है.

स्थानीय ग्रामीण सुनील बृजिया और लेपा प्रजापति ने बताया कि गांव में सिंचाई के लिए प्रशासनिक स्तर पर किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी गई है. इसीलिए ग्रामीण अपने जुगाड़ के माध्यम से खेतों को सिंचित करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पहाड़ से उतरने वाला पानी को बांधकर ग्रामीणों के द्वारा बनाए गए कैनाल के माध्यम से पानी को खेतों तक पहुंचाते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि इस गांव में ग्रामीणों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधा प्रशासन के द्वारा नहीं दी जाती है.

वन विभाग के द्वारा गांव में हो रहे हैं काम

इधर, इस संबंध में रेंजर तरुण कुमार सिंह ने बताया कि वन विभाग के द्वारा हेनार गांव में कई प्रकार के कार्य किए जा रहे हैं. यहां कंटूर निर्माण के साथ-साथ, घास मैदान समेत कई अन्य योजनाएं संचालित की जा रही है. उन्होंने कहा कि सिंचाई के लिए ग्रामीणों के द्वारा ऊंची पहाड़ी की तलहटी में बहने वाले पानी का उपयोग किया जाता है.

यह है वन गांव का नियम

दरअसल, पलामू टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में बसे वन गांव को विस्थापित करने की योजना बनाई गई है. हेनार गांव में रहने वाले ग्रामीणों को भी विस्थापित करने की योजना है. लेकिन यहां के ग्रामीण अपना गांव छोड़ने को तैयार नहीं है. हालांकि वन विभाग के द्वारा भी ग्रामीणों को जोर जबरदस्ती से विस्थापित नहीं किया जा रहा है. सरकारी स्तर पर गांव में विकास से संबंधित किसी प्रकार की कोई योजना संचालित नहीं की जा रही है. इस कारण गांव में रहने वाले लगभग 400 लोग सरकारी सुविधा से वंचित हैं.

ये भी पढ़ें- लोहरदगा के इस गांव के लोगों की समस्या पहाड़ों जैसी, आदिम युग में जीने को मजबूर

लोहरदगा के इस गांव में 'विकास' को पहुंचने के लिए नहीं मिला रास्ता, आदिम युग में जी रहे लोग

लातेहार: जिले के गारू प्रखंड अंतर्गत वन गांव हेनार के ग्रामीण जुगाड़ पद्धति से अपने खेतों को सिंचित कर बेहतरीन खेती करते हैं. वन गांव होने के कारण इस गांव में ना तो सिंचाई के लिए प्रशासनिक स्तर पर कोई सुविधा दी गई है और ना ही इस गांव में बिजली की सुविधा है. इसके बावजूद यहां के ग्रामीणों की जुगाड़ इतनी बेहतरीन है कि इनके खेतों तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचता रहता है.

संवाददाता राजीव कुमार की रिपोर्ट (ईटीवी भारत)

दरअसल, हेनार गांव राजस्व गांव ना होकर वन गांव है. वन गांव होने के कारण यहां मनरेगा समेत दूसरी कोई भी योजना संचालित नहीं होती है. इसी कारण इस गांव में आज तक बिजली भी नहीं पहुंची और न ही प्रशासनिक स्तर पर सिंचाई की सुविधा बहाल की गई है. सुविधा विहीन होने के बावजूद यहां के ग्रामीण अपने बूते पर खेतों को सिंचित करते हैं और वहां खेती कर अपना भरण पोषण करते हैं.

पहाड़ के पानी को बांधकर पहुंचते हैं खेतों तक

जिले के इस गांव के लोग पास स्थित पहाड़ की तलहटी में बहने वाले पानी को बांध बनाकर रोक देते हैं. बांध में जब कुछ पानी जमा हो जाता है तो बांध को खोलते हैं और ग्रामीणों के द्वारा बनाए गए कच्चे कैनाल के माध्यम से पानी खेतों तक पहुंच जाता है. इस पद्धति के माध्यम से कम से कम 8 महीने तक उनकी खेतों में पानी पहुंचता रहता है. हालांकि गर्मी के दिनों में जब पानी का स्रोत सूख जाता है, तो सिंचाई में समस्या होती है.

स्थानीय ग्रामीण सुनील बृजिया और लेपा प्रजापति ने बताया कि गांव में सिंचाई के लिए प्रशासनिक स्तर पर किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी गई है. इसीलिए ग्रामीण अपने जुगाड़ के माध्यम से खेतों को सिंचित करते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि पहाड़ से उतरने वाला पानी को बांधकर ग्रामीणों के द्वारा बनाए गए कैनाल के माध्यम से पानी को खेतों तक पहुंचाते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि इस गांव में ग्रामीणों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधा प्रशासन के द्वारा नहीं दी जाती है.

वन विभाग के द्वारा गांव में हो रहे हैं काम

इधर, इस संबंध में रेंजर तरुण कुमार सिंह ने बताया कि वन विभाग के द्वारा हेनार गांव में कई प्रकार के कार्य किए जा रहे हैं. यहां कंटूर निर्माण के साथ-साथ, घास मैदान समेत कई अन्य योजनाएं संचालित की जा रही है. उन्होंने कहा कि सिंचाई के लिए ग्रामीणों के द्वारा ऊंची पहाड़ी की तलहटी में बहने वाले पानी का उपयोग किया जाता है.

यह है वन गांव का नियम

दरअसल, पलामू टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में बसे वन गांव को विस्थापित करने की योजना बनाई गई है. हेनार गांव में रहने वाले ग्रामीणों को भी विस्थापित करने की योजना है. लेकिन यहां के ग्रामीण अपना गांव छोड़ने को तैयार नहीं है. हालांकि वन विभाग के द्वारा भी ग्रामीणों को जोर जबरदस्ती से विस्थापित नहीं किया जा रहा है. सरकारी स्तर पर गांव में विकास से संबंधित किसी प्रकार की कोई योजना संचालित नहीं की जा रही है. इस कारण गांव में रहने वाले लगभग 400 लोग सरकारी सुविधा से वंचित हैं.

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