विदिशा। शहर के रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार पर स्थित है सिद्धेश्वरी शक्तिपीठ का मंदिर. यहां विराजमान हैं सिद्धेश्वरी मैया. यह मंदिर बाहर से देखने पर काफी आकर्षित करता है, क्योंकि इस मंदिर में प्रवेश से पहले शेर के मुंह में से जाकर देवी मां के दर्शन होते हैं. देवी मां के दोनों और विराजमान हैं सिद्धेश्वर हनुमान और सिद्धनाथ भैरव जी. इस मंदिर की परिक्रमा करने पर वैष्णो देवी जैसा ही एक मंदिर है, जो वैष्णो देवी जैसा ही यहां गुफा बनाकर वैष्णो देवी का दरबार बनाया गया है. इस मंदिर में आने वाले भक्तों का मानना है कि जो भक्त वैष्णो देवी के दर्शन नहीं करने जा पाते हैं. वह विदिशा के इस मंदिर में ही वैष्णो देवी के दर्शन कर लेते हैं. इस मंदिर में आने के बाद दर्शन मात्र से ही मनोकामना श्रद्धालुओं की पूर्ण हो जाती है. यहां भक्तों का नवरात्रि में तांता लगा हुआ है.
यहां सिद्धेश्वरी माता के साथ महादेव भी विराजमान
70 वर्ष से दुर्गा मंदिर में पुजारी अंबिका प्रसाद शुक्ला यह बताते हैं कि 'यह सिद्धेश्वरी शक्तिपीठ का मंदिर है. यहां सिद्धेश्वरी माता विराजमान हैं. सबसे पहले यहां हनुमान जी विराजमान हुए थे, उनका नाम सिद्धेश्वर हनुमान है, जो बगल में काली मूर्ति है. उनका नाम है सिद्धनाथ भैरव यह भी जयपुर से लाए गए थे. सबसे पहले यही मंदिर बना था, इसके बाद पीछे बहुत बड़ी मूर्ति शंकर जी की है. यहां नाग बने हैं, वह नागेश्वर महादेव हैं. उनके बगल में शनि देव की मूर्ति है. पीछे भी मुक्तेश्वर महादेव की प्रतिमा है, यदि जिसका कर्ज नहीं खत्म हो रहा है, वह उनकी आराधना करे तो वह कर्ज से मुक्त हो जाता है.
विदिशा के मंदिर में 8 मूर्तियों का राम दरबार
इसी मंदिर में गुफा बनी हुई है. जिसमें तीन देवी विराजमान हैं. महाकाली महालक्ष्मी, मां सरस्वती, वैष्णो देवी का दरबार है. उस गुफा की परिक्रमा करके आप राम दरबार के दर्शन करेंगे. इस राम दरबार की भी विशेषता यह है कि आठ मूर्ति का राम दरबार भारत में कहीं भी नहीं है. अयोध्या में केवल 6 मूर्तियों का दरबार है. यहां राम-लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाई, तीनों माता कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी और हनुमान जी को मिलाकर यहां आठ मूर्तियां स्थापित है. यहां पर गुरु वशिष्ठ हैं. जिन्होंने रामजी का राजतिलक किया था.
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कांच मंदिर दिया गया नाम
मंदिर में दर्शन करने आई श्रद्धालू रितु मीणा ने बताया कि 'आज मैं स्टेशन के पास वाले मंदिर में आई हूं. यहां पर बहुत अच्छा लग रहा है. आज रामनवमी है. मैं आज तक वैष्णो देवी नहीं गई, पर यहां पर जो दर्शन आप कर रहे हैं, ऐसा लगता है, कि वही माता हैं. साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाले श्रद्धालु गोविंद देवलिया बताते हैं कि 'सन 80 के आसपास की बात है, तब यहां दुर्गा जी की प्रतिमा की स्थापना होती थी. यहां एक छोटा सा पेड़ था. उसमें दुर्गा जी की प्रतिमा पहले से रखी हुई थी. उसी के बगल में दुर्गा जी की स्थापना करके और यहां 9 दिन का नवरात्रि का त्यौहार मनाया गया. फिर यहां पर एक टीसी रहते थे. उन्होंने कुछ समाजसेवी के साथ मिलकर यहां पर दुर्गा जी का मंदिर बनवाया. इसके बाद मंदिर निर्माण शुरू हुआ. जयपुर से मूर्तियां लाई गई. सब की मेहनत और परिश्रम से इस मंदिर का निर्माण हुआ. कलाकृति आप देखेंगे कि यहां कांच का काम किया गया है. इस मंदिर को कांच मंदिर का नाम दिया गया है.