विदिशा: प्राचीन राधा रानी मंदिर के पट साल में एक ही बार खोले जाते हैं. भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की आठवीं तिथि राधा अष्टमी को केवल आम जन राधा रानी के दर्शन कर सकते हैं. इसके अलावा केवल पुजारी ही गुप्त रूप से बगल के द्वार से पूजा अर्चना करते हैं और भोग लगाते हैं. वहीं, इस मंदिर के सेवा में पंडित मनमोहन शर्मा लगे हुए हैं. वे एक हवेली संगीत के विख्यात गायक है.
'पुर्वज उत्तर प्रदेश से मूर्ति लेकर पहुंचे थे विदिशा'
मनमोहन शर्मा के अनुसार, जब मंदिरों पर आक्रमण होना शुरू हुआ, तो उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र के लोगों ने अपने 2 इष्ट देव की प्रतिमाओं का सुरक्षा के हिसाब से पलायन किया. गोकुल के राधरंग राय के मंदिर की मूर्ति कामवन में गुप्त ढंग से रखी गई. इसके साथ ही ऐसी ही कुछ विशिष्ट मूर्ति को लेकर अर्चक (भक्त) 2 क्षेत्रों में निकल गए.'' वे बतातें हैं कि नाथद्वारा, कोटा, चित्तोड़ आदि जगहों पर यही निधियां विराजमान हैं.
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आज भी होती है गुप्त रूप से पूजा
मनमोहन शर्मा ने बताया कि, ''उसके भाई राकेश, सूरज और देवेश शर्मा के पूर्वज इसी दौरान चलते-चलते करीब 20 साल में विदिशा पहुंचे. वे बताते हैं कि सन् 1700 के आसपास विदिशा किले के बाहर कोई आबादी नहीं थी. किले के बाहर लोहंगी पहाड़ी फैली हुई थी. इन्हीं जगहों पर उनके पूर्वज रहने लगे और उनके पास मौजूद राधारानी की मूर्ति का गुप्त रूप से पूजा करते रहे. इसके बाद यहां मंदिर बनाया गया और हमले से बचने के लिए गुप्त रूप से पूजा करते रहे. आज भी इसी परंपरा को निभाया जाता है.''