जयपुर : राजस्थान विश्वविद्यालय में शुक्रवार से तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन का शुभारंभ हुआ. इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि आज भारतीय गुरुकुल पद्धति को अपनाने की जरूरत है, क्योंकि इसी के माध्यम से गुरु शिष्य संबंधों को फिर से जीवंत किया जा सकता है. आगे उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय में भारतीय विधिशास्त्र की पढ़ाई शुरू हुई है. संस्कृत में ये पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैं. इसकी स्वीकृति भी मिल गई है और आने वाले दिनों में इसमें से यदि एडवोकेट निकलते हैं तो ये एक बहुत बड़ा परिवर्तन होगा.
उन्होंने कहा कि आचार में स्वतंत्र और स्वच्छंद होना, विकास नहीं है, बल्कि विचार में स्वतंत्र होना जरूरी है. वहीं, इस दौरान ग्रेटर नगर निगम की महापौर सौम्य गुर्जर ने कहा कि संस्कृत भाषा के जरिए भारत दोबारा विश्व गुरु बने, विकसित भारत बने, इस पर चर्चा की जा रही है, क्योंकि आज जितने भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं, वो सभी हमारे वेदों पर आधारित है. ऐसे में इसे समझना पड़ेगा.
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उन्होंने कहा कि जो छात्र स्कूलों में अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई कर रहे हैं, वो सिर्फ किताबी ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं. उन्हें संस्कार प्राप्त करने के लिए संस्कृत का ज्ञान होना जरूरी है. ऐसे में उन्होंने पार्कों में संस्कृत के गीत, संस्कृत में विचार गोष्ठी, विचारों का आदान-प्रदान और समसामयिक विषयों पर संस्कृत में वार्ता करने का प्रयास शुरू करने का ऐलान किया.
वहीं, वेदों के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विचारों और महर्षि दयानंद सरस्वती की वैदिक पुनरुत्थान पर विचारों का मंथन शुरू हुआ. 11 अगस्त तक यहां वेद और महर्षि दयानंद सरस्वती के चिंतन पर 600 से ज्यादा शोध पत्र पढ़े जाएंगे. इधर, शुक्रवार को इस सम्मेलन में 5 से अधिक देश और 22 राज्यों के करीब 150 से अधिक संस्कृतज्ञ और विचारक शामिल हुए. इसके अलावा प्रदेश के 500 से अधिक संस्कृत विद्वानों ने भी इसमें हिस्सा लिया.