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डीयू के विभागों व कॉलेजों में शिक्षकों के वरिष्ठता क्रम में विसंगतियां होने पर कुलपति ने कमेटी गठित की - DU TEACHERS SENIORITY ISSUE

DU TEACHERS SENIORITY ISSUE: डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की सीनियरिटी को लेकर, उनकी आपत्तियों के मामले में कमेटी गठित कर दी है. शिक्षकों की सीनियरिटी लिस्ट कैसे बनाई जाए, इसके लिए इस कमेटी का गठन किया गया है.

कुलपति प्रो. योगेश सिंह
कुलपति प्रो. योगेश सिंह (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 11, 2024, 3:55 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और उससे संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की सीनियरिटी को लेकर शिक्षकों की आपत्तियों और डूटा (दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन) के दखल के बाद कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था. इसके बाद कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता ने एक कमेटी गठित की है. डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणी को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह, हंसराज कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रमा शर्मा, शहीद भगत सिंह कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार अत्री, रामजस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अजय अरोड़ा व डिप्टी रजिस्ट्रार, कॉलेजेज (मेम्बर सेक्रेटरी) बनाए गए हैं.

कमेटी का कार्य हाल में सहायक प्रोफेसर के पदों पर हुई लगभग 4600 स्थायी नियुक्ति के बाद कॉलेजों में सीनियरिटी को लेकर हो रहे विवाद का समाधान करना है. क्योंकि वह एससी, एसटी व ओबीसी के शिक्षकों को जहां बैकलॉग व शॉर्टफॉल के पदों को भरने के बाद सीनियर माना जाना चाहिए था, कॉलेज उन्हें जूनियर बना रहे थे. शिक्षकों की सीनियरिटी लिस्ट कैसे बनाई जाए, इसके लिए यह कमेटी गठित की गई है, जो अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 2024 तक देगी.

फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित कमेटी में एससी, एसटी व ओबीसी कोटे के शिक्षकों को प्रतिनिधित्व न दिए जाने पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए कमेटी में आरक्षित श्रेणी के सदस्यों को रखे जाने की मांग की है. इससे इन वर्गों के साथ सही से सामाजिक न्याय हो सकेगा. उन्होंने कमेटी में संसदीय समिति, डीओपीटी व एससी/एसटी कमीशन, ओबीसी कमीशन से भी सदस्यों को रखे जाने की मांग की.

फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कमेटी को सुझाव दिए हैं. उन्होंने कहा है कि कमेटी जब भी सीनियरिटी लिस्ट तैयार करे, तो यह देखे कि रोस्टर में यह पद किस वर्ष आया तथा पद बैकलॉग का है या शॉर्टफॉल है. ऐसा इसलिए, क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दशक बाद स्थायी सहायक प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति हुई है. इनमें एससी/एसटी व ओबीसी के ज्यादातर उन लोगों की सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई है, जो पिछले एक दशक से अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे थे.

यह भी पढ़ें- DU में हो सकता है 'मानवता व धर्म के लिए गीता' का पेपर, हिंदू अध्ययन केंद्र का प्रस्ताव

इनमें कुछ नियुक्तियां कॉलेजों के रोस्टर रजिस्टर में बैकलॉग पद आने पर विज्ञापित करके की गई हैं. विभिन्न विभागों और कॉलेजों में ये नियुक्तियां, विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई चयन समिति के माध्यम से की गई थीं. चयन समिति ने मिनट्स बनाते समय भारत सरकार की आरक्षण नीति के अंतर्गत भर्ती नीति व कॉलेजों द्वारा बनाए गए रोस्टर के अंतर्गत श्रेणीवार चयनित अभ्यर्थियों का नाम नहीं रखा.

बता दें, वरिष्ठता क्रम को लेकर कॉलेजों में विवाद खड़ा हो गया और शिक्षकों में तनाव की स्थिति बन गई है. कहा जा रहा है कि जूनियर शिक्षकों को वरीयता देकर वरिष्ठ बनाया जा रहा है. इसे लेकर फोरम ऑफ एकेडमिक फॉर सोशल जस्टिस ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति, शिक्षा मंत्रालय व यूजीसी व विश्वविद्यालय प्रशासन से गुहार लगाई थी तथा अनियमितता की जांच कराने की मांग की थी. इस अनियमितता को देखकर ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने कमेटी गठित की है.

यह भी पढ़ें- डीयू अकादमिक काउंसिल की बैठक में रखी जाए प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट: प्रो. सुमन

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और उससे संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की सीनियरिटी को लेकर शिक्षकों की आपत्तियों और डूटा (दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन) के दखल के बाद कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था. इसके बाद कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता ने एक कमेटी गठित की है. डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो. बलराम पाणी को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह, हंसराज कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रमा शर्मा, शहीद भगत सिंह कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अरुण कुमार अत्री, रामजस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. अजय अरोड़ा व डिप्टी रजिस्ट्रार, कॉलेजेज (मेम्बर सेक्रेटरी) बनाए गए हैं.

कमेटी का कार्य हाल में सहायक प्रोफेसर के पदों पर हुई लगभग 4600 स्थायी नियुक्ति के बाद कॉलेजों में सीनियरिटी को लेकर हो रहे विवाद का समाधान करना है. क्योंकि वह एससी, एसटी व ओबीसी के शिक्षकों को जहां बैकलॉग व शॉर्टफॉल के पदों को भरने के बाद सीनियर माना जाना चाहिए था, कॉलेज उन्हें जूनियर बना रहे थे. शिक्षकों की सीनियरिटी लिस्ट कैसे बनाई जाए, इसके लिए यह कमेटी गठित की गई है, जो अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 2024 तक देगी.

फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित कमेटी में एससी, एसटी व ओबीसी कोटे के शिक्षकों को प्रतिनिधित्व न दिए जाने पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए कमेटी में आरक्षित श्रेणी के सदस्यों को रखे जाने की मांग की है. इससे इन वर्गों के साथ सही से सामाजिक न्याय हो सकेगा. उन्होंने कमेटी में संसदीय समिति, डीओपीटी व एससी/एसटी कमीशन, ओबीसी कमीशन से भी सदस्यों को रखे जाने की मांग की.

फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कमेटी को सुझाव दिए हैं. उन्होंने कहा है कि कमेटी जब भी सीनियरिटी लिस्ट तैयार करे, तो यह देखे कि रोस्टर में यह पद किस वर्ष आया तथा पद बैकलॉग का है या शॉर्टफॉल है. ऐसा इसलिए, क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दशक बाद स्थायी सहायक प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति हुई है. इनमें एससी/एसटी व ओबीसी के ज्यादातर उन लोगों की सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति हुई है, जो पिछले एक दशक से अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे थे.

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इनमें कुछ नियुक्तियां कॉलेजों के रोस्टर रजिस्टर में बैकलॉग पद आने पर विज्ञापित करके की गई हैं. विभिन्न विभागों और कॉलेजों में ये नियुक्तियां, विश्वविद्यालय द्वारा बनाई गई चयन समिति के माध्यम से की गई थीं. चयन समिति ने मिनट्स बनाते समय भारत सरकार की आरक्षण नीति के अंतर्गत भर्ती नीति व कॉलेजों द्वारा बनाए गए रोस्टर के अंतर्गत श्रेणीवार चयनित अभ्यर्थियों का नाम नहीं रखा.

बता दें, वरिष्ठता क्रम को लेकर कॉलेजों में विवाद खड़ा हो गया और शिक्षकों में तनाव की स्थिति बन गई है. कहा जा रहा है कि जूनियर शिक्षकों को वरीयता देकर वरिष्ठ बनाया जा रहा है. इसे लेकर फोरम ऑफ एकेडमिक फॉर सोशल जस्टिस ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति, शिक्षा मंत्रालय व यूजीसी व विश्वविद्यालय प्रशासन से गुहार लगाई थी तथा अनियमितता की जांच कराने की मांग की थी. इस अनियमितता को देखकर ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने कमेटी गठित की है.

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