वाराणसी : कोयले की गुणवत्ता की जांच करने के लिए IIT-BHU के माइनिंग विभाग में एक अनुसंधान केंद्र शुरू किया गया है. खास बात यह है कि यहां पर सिर्फ कोयले की गुणवत्ता की जांच नहीं होगी बल्कि शोध के लिए भी यह अनुसंधान केंद्र मील का पत्थर साबित होगा. किस तरीके से कोयला का अलग-अलग स्वरूप में प्रयोग किया जा सकेगा, किस तरीके से कोयले की ग्रेडिंग की जा सकेगा इन तमाम चीजों के बारे में जानकारी भी उपलब्ध कराई जाएगी. कोयले के कारोबारियों को भी इसकी जानकारी दी जाएगी. ऐसे में यह अनुसंधान केंद्र कोयले से जुड़े कई क्षेत्रों में मददगार साबित होगा.
लैब से विश्वविद्यालय के साथ बाहरी लोगों को फायदा : अनुसंधान केंद्र के कॉर्डिनेटर प्रोफेसर आरिफ जमाल ने बताया कि कोयले की गुणवत्ता जानने के लिए दो तरह की चीजें होती हैं. एक तो कोयले को जब हम लोग जला रहे हैं तो उसमें कितनी एनर्जी है. उस एनर्जी के आधार पर ही हम लोग कहते हैं कि यह ग्रेड वन का है, ग्रेड टू है या ग्रेड 17 है. उसकी हम लोग जीसीवी निकालते हैं. इसके लिए हमारे पास बहुत ही एडवांस बॉम कैलोरीमीटर है जो कि लेटेस्ट मॉडल का है. हम लोगों ने यहां पर दो यूनिट खरीदी हैं. पूरा सेंटर हमारा IIT-BHU का सेंटर है. इसमें आईआईटी के सारे विभाग के लोग, विश्वविद्यालय के लोग या बाहर के लोग भी इसका फायदा उठा सकते हैं. चाहे वे शोधार्थी हों, कोयले के व्यापारी हों सभी को इसका फायदा मिलेगा.
सरकारी विभाग कराते हैं कोयले की जांच : प्रोफेसर आरिफ जमाल के अनुसार रेलवे से भी हमारे पास उनके कोयले की ग्रेडिंग के लिए बहुत सैंपल आते हैं. इनकम टैक्स विभाग से भी सैंपल आते हैं कि किस ग्रेड का कोयला है. जिससे पेनाल्टी लगाई जा सके. इससे आसपास की जनता के साथ सरकारी विभागों को बहुत सारे फायदे हो रहे हैं. हमारे पास रिप्रजंटेटिव सैंपल आते हैं. उस सैंपल को हम फिर पाउडर में बनाते हैं. पाउडर में बनाने के लिए हमारे पास कोल पल्बराइजर है. उसके बाद एक ग्राम पाउडर को लेकर हम बॉम कैलोरीमीटर रखते हैं और जलाते हैं. जलाने के बाद डिस्प्ले होता है और वहां से प्रिंट निकलता है. सारा सिस्टम ऑटोमेटिक काम करता है.
मशीन से रिपोर्ट हो जाती है प्रिंट : प्रोफेसर जमाल के मुताबिक इस काम के लिए हमारे पास बहुत ही एक्यूरेसी का बैलेंस है. जिसको डिजिटल बैलेंस करते हैं. इसका माइक्रोग्राम तक रिजल्ट देता है. कोयले की वेटिंग सबसे महत्वपूर्ण है. वह एक्यूरेट एक ग्राम होना चाहिए. उस एक ग्राम को इसमें जलाने के बाद कितनी उससे एनर्जी निकली उसको जानने का आसान तरीका है. मशीन के डिस्पले पर सब आ जाता है. उसी से प्रिंट निकलता है. उस प्रिंट को हम लोग रिकॉर्ड में रखते हैं कि कोई चैलेंज न करने पाए. जिस कोयले की ग्रेडिंग करते हैं उसके चार सैंपल हम लोग बनाते हैं. एक पार्ट से एनालिसिस कर देते हैं और तीन पार्ट को रिजर्व रखते हैं. अगर कोई उसको लेकर चैलेंज करता है तो उसे ग्रेडिंग करके दिखा देते हैं.
रिसर्च स्कॉलर्स को भी होता है फायदा : कैलोरीमीटर बहुत ही महत्वपूर्ण है. कोयले के अलावा आसपास के जितने भी सोर्स ऑफ एनर्जी हैं उनको कैसे प्रयोग में लाया जाए? कोई पेड़ की पत्ती, कोई कूड़े का प्रयोग कर रहा है. उसमें जीसीवी कितना है. इसको भी जानना जरूरी होता है. हमारे पास बायोमेडिकल का एक छात्र आया था उसने जीसीवी निकलवाया. ऐसे में छात्र भी हमारे पास आ रहे हैं. इस लैब का बहुत ही अच्छा प्रयोग हो रहा है. रिसर्च स्कॉलर्स को भी इसका बहुत फायदा मिलेगा. कोयले के अलावा जितनी भी चीजें हैं जो एनर्जी दे सकती हैं, उसकी भी जीसीवी हम लोग निकालकर बताते हैं कि इसका प्रयोग एनर्जी के सोर्स के रूप में किया जा सकता है.