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क्या कम वोटिंग पीएम मोदी के रिकॉर्ड जीत में बनेगी बाधक, किस वजह से घर से नहीं निकले मतदाता?, पढ़िए डिटेल - Varanasi Lok Sabha Seat - VARANASI LOK SABHA SEAT

लोकसभा चुनाव 2024 के सभी चरणों के मतदान हो चुके हैं. अब 4 जून को वोटों की गिनती होगी. इसी दिन सभी सीटों पर राज और ताज का फैसला हो जाएगा. इसी कड़ी में वाराणसी लोकसभा सीट पर भी लोगों की खास निगाह रहेगी. इस बार कई मायने में पीएम मोदी के जीत का अंतर देखना दिलचस्प होगा.

इस बार जीत के अंतर का नया रिकॉर्ड बनना मुश्किल.
इस बार जीत के अंतर का नया रिकॉर्ड बनना मुश्किल. (PHOTO Credit; Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 2, 2024, 12:11 PM IST

प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय ने बताया कितना होगा जीत का अंतर. (VIDEO Credit; Etv Bharat)

वाराणसी : देश की सबसे हॉट सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी समेत इंडी गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय और बीएसपी से अतहर जमाल लारी के अलावा अन्य प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला भी 4 जून को हो जाएगा. लाख प्रयास के बावजूद मतदान प्रतिशत में इजाफा न होना क्या बीजेपी के उस सपने को पूरा कर पाएगा जो बनारस में पीएम मोदी की बड़ी जीत को लेकर पार्टी ने संजोया था?. कई प्रयासों के बावजूद वाराणसी में 56.35% ही मतदान हो पाया. यह पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में भी कम है. यह जीत के अंतर पर खासा प्रभाव डाल सकता है.

पिछले चुनाव की अगर बात करें तो वाराणसी में लगभग 57.13 प्रतिशत मतदान हुआ था. तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें बढ़ोतरी न होने से पीएम मोदी के जीत के अंतर पर फर्क को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय से ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं से कम वोटिंग का नुकसान बीजेपी के कैंडिडेट पीएम मोदी को उठाना पड़ सकता है.

10 लाख के अंतर से जीत का दावा होगा फेल : उन्होंने कहा कि बीजेपी 10 लाख के अंतर से जीतने का दावा कर रही थी. वाराणसी में वह पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा है. पिछले दो चुनावों में पीएम मोदी ने वाराणसी सीट से बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. 2014 में जब पीएम मोदी ने पहली बार वाराणसी से चुनाव लड़ा और प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को 3.72 लाख वोट (56.37% वोट शेयर) से हराया था. 2019 में जब पीएम मोदी फिर से इस सीट से जीते तो पीएम की जीत का अंतर बढ़कर 4.59 लाख वोट (63.6% वोट शेयर ) हो गया.

बिना मुद्दों के चुनाव से लोगों का मोह भंग : प्रो. मालवीय का कहना है कि दो बार जीत के अंतर में बढ़ोतरी यह तो स्पष्ट कर रही है कि जनादेश पीएम मोदी के पक्ष में ही होगा, लेकिन वोटिंग परसेंटेज का कम होना और 2019 की तुलना में कांग्रेस-सपा का अलग होकर लड़ने की जगह एक साथ आकर लड़ना पीएम मोदी के जीत के अंतर को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ने देगा. हेमंत मालवीय का कहना है कि इस बार के चुनाव में मुद्दे थे ही नहीं, जुबानी जंग हर चुनाव में हावी रही. इस वजह से जनता भी अब वोट देने से गुरेज करने लगी है. पब्लिक को लगता है कि नेता मुद्दों की बात करते ही नहीं है और इसी वजह से लोग वोट देने जाने से बचते हैं.

कम मतदान प्रतिशत के ये हैं तीन कारण : प्रो. मालवीय का कहना है कि कम वोटिंग परसेंटेज के तीन कारण महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं. पहला मुद्दा विहीन चुनाव होना, दूसरा मुद्दों की कमी की वजह से वोटर का नाराज होना और तीसरा गठबंधन के तौर पर विपक्ष की बड़ी तैयारी. पीएम मोदी के समर्थन में मतदान तो हुआ लेकिन उनके मतदाता बाहर निकलने से बचते दिखाई दिए जबकि गठबंधन के पक्ष में एक वर्ग विशेष का रुझान जबरदस्त दिखाई दिया और शहर के तमाम मिश्रित आबादी वाले इलाकों में जबरदस्त वोट पड़े हैं. यह कहीं न कहीं से नुकसान भाजपा को ही पहुंचाएगा.

पिछली बार से 20 से 25 हजार ही बढ़ सकता है वोट : पीएम मोदी जीत दर्ज करते हैं तो जीत का अंतर इस बार बहुत ज्यादा नहीं होगा. 2014 की तुलना में 2019 में हुई बढ़ोतरी के बाद जीत का अंतर 20 से 25000 ही रह सकता है. उससे ज्यादा की उम्मीद कम वोटिंग परसेंटेज की वजह से अब नहीं रह गई है. प्रो मालवीय का कहना है की वोट देने के मामले में सबसे बुरी स्थिति तो इंटेलेक्चुअल (बौद्धिक) क्लास की है. वाराणसी में सबसे बड़े इंटेलेक्चुअल क्लास के सेंटर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महज 37% मतदान हुआ है. यह स्पष्ट करता है कि पढ़े-लिखे लोग खुद अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने से गुरेज करते हैं. बनारस जैसे शहर में तो मतदान का प्रतिशत कम से कम 60% तक होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है.

प्रो. मालवीय का कहना है कि हालांकि इस बार पीएम मोदी के लिए थोड़ी राहत की बात इसलिए है, क्योंकि पिछले सालों की तुलना में इस बार चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या कम हो गई है. इससे वोट शेयर बंटने का मामला कम होगा. 2014 के चुनाव में 41 उम्मीदवार पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में थे. उनमें से 19 निर्दलीय थे. 2019 में, 26 उम्मीदवारों ने पीएम के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिनमें से आठ निर्दलीय थे. 2024 लोकसभा चुनाव में शुरुआत में 41 उम्मीदवारों ने वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया, जिनमें से एक ने खुद ही अपना नाम वापस ले लिया था. इसके बाद कुल 7 प्रत्याशी ही मैदान में हैं.

लोकसभा वाराणसी में मतदान प्रतिशत : वाराणसी लोकसभा सीट पर कुल 56.35 प्रतिशत वोटिंग हुई. इनमें शहर उत्तरी में 54.55, शहर दक्षिणी में 57.7, कैंट में 51.47, सेवापुरी में 60.93, रोहनिया में 58.77 प्रतिशत वोट पड़े. इससे पूर्व साल 1952 में 45.19, 1957 में 62.67, 1962 में 63.20, 1967 में 56.8, 1971 में 55.48, 1977 में 55.83, 1980 में 53.66, 1984 में 54.94, 1989 में 42.64, 1991 में 44.79, 1996 में 47.18, 1998 में 44.16, 1999 में 45.02, 2004 में 48.15, 2009 में 46.27, 2014 में 58.35, 2019 में 59.62 प्रतिश मतदान हुआ था.

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प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय ने बताया कितना होगा जीत का अंतर. (VIDEO Credit; Etv Bharat)

वाराणसी : देश की सबसे हॉट सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी समेत इंडी गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय और बीएसपी से अतहर जमाल लारी के अलावा अन्य प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला भी 4 जून को हो जाएगा. लाख प्रयास के बावजूद मतदान प्रतिशत में इजाफा न होना क्या बीजेपी के उस सपने को पूरा कर पाएगा जो बनारस में पीएम मोदी की बड़ी जीत को लेकर पार्टी ने संजोया था?. कई प्रयासों के बावजूद वाराणसी में 56.35% ही मतदान हो पाया. यह पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में भी कम है. यह जीत के अंतर पर खासा प्रभाव डाल सकता है.

पिछले चुनाव की अगर बात करें तो वाराणसी में लगभग 57.13 प्रतिशत मतदान हुआ था. तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें बढ़ोतरी न होने से पीएम मोदी के जीत के अंतर पर फर्क को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हेमंत कुमार मालवीय से ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं से कम वोटिंग का नुकसान बीजेपी के कैंडिडेट पीएम मोदी को उठाना पड़ सकता है.

10 लाख के अंतर से जीत का दावा होगा फेल : उन्होंने कहा कि बीजेपी 10 लाख के अंतर से जीतने का दावा कर रही थी. वाराणसी में वह पूरा होता नहीं दिखाई दे रहा है. पिछले दो चुनावों में पीएम मोदी ने वाराणसी सीट से बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. 2014 में जब पीएम मोदी ने पहली बार वाराणसी से चुनाव लड़ा और प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को 3.72 लाख वोट (56.37% वोट शेयर) से हराया था. 2019 में जब पीएम मोदी फिर से इस सीट से जीते तो पीएम की जीत का अंतर बढ़कर 4.59 लाख वोट (63.6% वोट शेयर ) हो गया.

बिना मुद्दों के चुनाव से लोगों का मोह भंग : प्रो. मालवीय का कहना है कि दो बार जीत के अंतर में बढ़ोतरी यह तो स्पष्ट कर रही है कि जनादेश पीएम मोदी के पक्ष में ही होगा, लेकिन वोटिंग परसेंटेज का कम होना और 2019 की तुलना में कांग्रेस-सपा का अलग होकर लड़ने की जगह एक साथ आकर लड़ना पीएम मोदी के जीत के अंतर को बहुत ज्यादा नहीं बढ़ने देगा. हेमंत मालवीय का कहना है कि इस बार के चुनाव में मुद्दे थे ही नहीं, जुबानी जंग हर चुनाव में हावी रही. इस वजह से जनता भी अब वोट देने से गुरेज करने लगी है. पब्लिक को लगता है कि नेता मुद्दों की बात करते ही नहीं है और इसी वजह से लोग वोट देने जाने से बचते हैं.

कम मतदान प्रतिशत के ये हैं तीन कारण : प्रो. मालवीय का कहना है कि कम वोटिंग परसेंटेज के तीन कारण महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं. पहला मुद्दा विहीन चुनाव होना, दूसरा मुद्दों की कमी की वजह से वोटर का नाराज होना और तीसरा गठबंधन के तौर पर विपक्ष की बड़ी तैयारी. पीएम मोदी के समर्थन में मतदान तो हुआ लेकिन उनके मतदाता बाहर निकलने से बचते दिखाई दिए जबकि गठबंधन के पक्ष में एक वर्ग विशेष का रुझान जबरदस्त दिखाई दिया और शहर के तमाम मिश्रित आबादी वाले इलाकों में जबरदस्त वोट पड़े हैं. यह कहीं न कहीं से नुकसान भाजपा को ही पहुंचाएगा.

पिछली बार से 20 से 25 हजार ही बढ़ सकता है वोट : पीएम मोदी जीत दर्ज करते हैं तो जीत का अंतर इस बार बहुत ज्यादा नहीं होगा. 2014 की तुलना में 2019 में हुई बढ़ोतरी के बाद जीत का अंतर 20 से 25000 ही रह सकता है. उससे ज्यादा की उम्मीद कम वोटिंग परसेंटेज की वजह से अब नहीं रह गई है. प्रो मालवीय का कहना है की वोट देने के मामले में सबसे बुरी स्थिति तो इंटेलेक्चुअल (बौद्धिक) क्लास की है. वाराणसी में सबसे बड़े इंटेलेक्चुअल क्लास के सेंटर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महज 37% मतदान हुआ है. यह स्पष्ट करता है कि पढ़े-लिखे लोग खुद अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने से गुरेज करते हैं. बनारस जैसे शहर में तो मतदान का प्रतिशत कम से कम 60% तक होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है.

प्रो. मालवीय का कहना है कि हालांकि इस बार पीएम मोदी के लिए थोड़ी राहत की बात इसलिए है, क्योंकि पिछले सालों की तुलना में इस बार चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या कम हो गई है. इससे वोट शेयर बंटने का मामला कम होगा. 2014 के चुनाव में 41 उम्मीदवार पीएम मोदी के खिलाफ मैदान में थे. उनमें से 19 निर्दलीय थे. 2019 में, 26 उम्मीदवारों ने पीएम के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिनमें से आठ निर्दलीय थे. 2024 लोकसभा चुनाव में शुरुआत में 41 उम्मीदवारों ने वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया, जिनमें से एक ने खुद ही अपना नाम वापस ले लिया था. इसके बाद कुल 7 प्रत्याशी ही मैदान में हैं.

लोकसभा वाराणसी में मतदान प्रतिशत : वाराणसी लोकसभा सीट पर कुल 56.35 प्रतिशत वोटिंग हुई. इनमें शहर उत्तरी में 54.55, शहर दक्षिणी में 57.7, कैंट में 51.47, सेवापुरी में 60.93, रोहनिया में 58.77 प्रतिशत वोट पड़े. इससे पूर्व साल 1952 में 45.19, 1957 में 62.67, 1962 में 63.20, 1967 में 56.8, 1971 में 55.48, 1977 में 55.83, 1980 में 53.66, 1984 में 54.94, 1989 में 42.64, 1991 में 44.79, 1996 में 47.18, 1998 में 44.16, 1999 में 45.02, 2004 में 48.15, 2009 में 46.27, 2014 में 58.35, 2019 में 59.62 प्रतिश मतदान हुआ था.

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