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वाराणसी में दीपावली : पांच नहीं इस बार छह दिनों तक मनाया जाएगा प्रकाश पर्व, जानिए शुभ मुहूर्त

Diwali Celebration in Varanasi : दीपावली पर पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को सायं 6:27 बजे से रात 8:23 बजे तक है.

वाराणसी में दीपावली
वाराणसी में दीपावली (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 24, 2024, 9:33 PM IST

Updated : Oct 26, 2024, 10:21 AM IST

वाराणसी : प्रकाश पर्व दीपावली का त्योहार 31 अक्टूबर को है. काशी विद्वत परिषद और वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित ज्योतिष विभाग ने भी 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने की परंपरा को फलदायी बताया है. फिलहाल पंच दिवसीय पर्व के बाबत कुछ पेंच है. इस बाबत काशी विद्वत परिषद के पूर्व महामंत्री और ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने भ्रम को दूर किया है. दीपावली पर पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को स्थिर लग्न वृषभ सायं 6:27 बजे से रात 8:23 बजे तक है. यह सबसे उत्तम मुहूर्त है. इसके बाद स्थिर लग्न सिंह मध्य रात्रि 12:53 बजे से भोर 3:09 बजे तक होगा.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि पंच दिवसीय पर्व अपने आप में महत्वपूर्ण है, लेकिन इस बार 5 दिन नहीं, बल्कि प्रकाश पर्व 6 दिन का होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दोनों दिन अमावस्या का होना है. 31 तारीख को दीपावली मनाई जाएगी और 1 तारीख को स्नान दान की अमावस्या होगी. इस दिन कोई त्यौहार तो नहीं है, लेकिन स्नान और दान पुण्य का विधान उत्तम है.

दीपावली के मुहूर्त और परंपरा की जानकारी देते पंडित ऋषि द्विवेदी. (Video Credit : ETV Bharat)

पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार 29 अक्टूबर को धन त्रयोदशी धन्वंतरि जयंती, 30 अक्टूबर को हनुमान जयंती और नरक चतुर्दशी व छोटी दीपावली मनाई जाएगी. 31 अक्टूबर को दीपावली और महालक्ष्मी और गणेश का पूजन का विधान है. एक नवंबर को कोई पर्व नहीं है, लेकिन अमावस्या के दिन शाम को 5:13 बजे तक होने की वजह से इस दिन दान पुण्य और स्नान करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है. इसके अलावा 2 नवंबर को वाराणसी के अतिरिक्त हर स्थान पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा. 2 नवंबर को ही अन्नकूट का पर्व संपन्न होगा. 3 नवंबर को गोवर्धन पूजा और भाई दूज के अलावा यम द्वितीया का पर्व मनाया जाएगा.


घनतेरस : धनतेरस का त्योहार 29 अक्टूबर को धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. इस दिन धनवंतरि जयंती का भी त्यौहार मनाया जाएगा. इस दिन शाम में माता लक्ष्मी और धन कुबेर का पूजन करने का विधान है. इसके लिए शाम 6:35 बजे से रात 8:31 बजे तक पूजन पाठ संपन्न करना होगा यह स्थिर लग्न है. इसके अलावा धन त्रयोदशी वाले दिन अपने घर के ड्योढ़ी पर चौमुखा मुख वाला दीपक भी जलाना होगा.

नरक चतुर्दशी व हनुमान जयंती : 30 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी व हनुमान जयंती मनाई जाएगी. क्योंकि हनुमान जी का जन्म वृषभ लग्न में हुआ था. इसलिए शाम 4:54 बजे से 6:31 बजे तक हनुमान जन्म व पूजन संपन्न करना होगा.

दीपावली और महालक्ष्मी-गणेश पूजून : 31 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष व्यापिनी होने की वजह से इसी दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाएगा. शाम 6:27 बजे से रात 8:23 बजे तक दृश्य लग्न स्थिर होगा. इस समय मां लक्ष्मी का पूजन विशेष फलदाई माना जाता है.

अमावस्या : दीपावली को लेकर भ्रम है. इसलिए 1 नवंबर को भी बहुत जगह पर दीपावली मनाई जाएगी, लेकिन 1 नवंबर को कोई भी त्योहार ना होने की वजह से इस दिन पांच दिवसीय पर्व के क्रम में अमावस्या का दान और स्नान पूरा किया जाएगा और शाम को दीपक भी जलाए जाएंगे, लेकिन दीपावली का मान 31 अक्टूबर को ही होगा.



अन्नकूट व गोवर्धन पूजा : 2 नवंबर को वाराणसी को छोड़कर बाकी जगहों पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा और मंदिरों में अन्नकूट के साथ घरों में भी अन्नकूट का भोग भगवान को अर्पित किया जाएगा. इस दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की परंपरा का निभाई जाएगी.

भाई दूज व यम द्वितीया : 3 नवंबर को इस पांच दिवसीय पर्व के क्रम में भाई दूज का त्यौहार मनाया जाएगा. भाई अपनी बहनों के घर जाकर टीका लगवाएंगे और भोजन ग्रहण करेंगे. इसी दिन हम द्वितीया का भी त्योहार मनाया जाएगा. शाम को घर की दहलीज पर यम के निमित्त चार मुख वाला दीपक भी जलाया जाएगा, ताकि अकाल मृत्यु से के डर से मुक्ति मिल सके.

दीपावली मुहूर्त

पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी. कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर व एक नवंबर दो दिन है. कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दिन में 3:12 बजे लग रही है, जो एक नवंबर को सायं 5:13 बजे तक है. एक नवंबर को सूर्यास्त सायं 5:32 बजे पर होगा. कार्तिक अमावस्या सूर्यास्त से पूर्व 5:13 बजे खत्म होगी. एक नवंबर को ही सायं 5:13 बजे के बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी. एक नवंबर को प्रदोष काल व निशिथकाल दोनों में कार्तिक अमावस्या न मिलने से 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत होगा.


ब्रह्म पुराण में भी कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी, कुबेर आदि का रात में भ्रमण बताया गया है. प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद दो घटी रहता है. एक घटी 24 मिनट का होता है अर्थात, सूर्यास्त के बाद 48 मिनट का समय प्रदोष काल होता है. जो 31 अक्टूबर को ही मिलेगा. एक नवंबर को कार्तिक अमावस्या स्नान, दान और श्राद्ध की होगी. 31 अक्टूबर को दीपावली के दिन बृहस्पतिवार का संयोग माता लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए चार चांद लगाने वाला होगा. इस प्रमुख पर्व पर सनातनी लोग लक्ष्मी पूजन, तांत्रिक लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि करते हैं. व्यापारी वर्ग अपने व्यापार की उन्नति के लिए, जिसका जो भी व्यापार या जो भी जिस क्षेत्र का कार्य करता हो, वह सिद्धि के लिए महालक्ष्मी का पूजन-वंदन करता है.


मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या दीपावली अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है. इसलिए इस दिन किसी भी कार्य को किया जाए तो निश्चित ही वर्ष भर उस कार्य में सफलता मिलती है. बंगीय समाज के लोग महाकाली जी का निशिथ काल में पूजन करते हैं. दीपावली के दिन सायंकाल देव मंदिरों में दीपदान तो रात्रि के अंतिम प्रहर में दरिद्रा निस्तारण व्यापारी वर्ग इस रात्रि शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए महालक्ष्मी जी का पूजन करते हैं. इस रात लक्ष्मी, गणेश व कुबेर का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर दीप प्रज्जवलित करने से माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तमकनकधारा स्त्रोत, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र का पाठ-जप-हवन आदि करना चाहिए. जिससे महालक्ष्मी, स्थिर लक्ष्मी स्वरूप में कृपा के साथ धन-धान्य, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, ऐश्वर्य और प्रभुत्व का इत्यादि का वरदान देते हैं. दीपावली के दिन प्रात: हनुमान जी का दर्शन-पूजन करने का विधान होता है. दीपावली लक्ष्मी पूजन का प्रमुख समय प्रदोष काल माना जाता है. इसमें स्थिर लग्न की प्रधानता मानी जाती है.

यह भी पढ़ें : इस बार पांच नहीं छह दिवसीय होगा प्रकाश पर्व दीपावली, जानिए शुभ मुहूर्त और तिथि

यह भी पढ़ें : कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के लिए काशी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

वाराणसी : प्रकाश पर्व दीपावली का त्योहार 31 अक्टूबर को है. काशी विद्वत परिषद और वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित ज्योतिष विभाग ने भी 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाने की परंपरा को फलदायी बताया है. फिलहाल पंच दिवसीय पर्व के बाबत कुछ पेंच है. इस बाबत काशी विद्वत परिषद के पूर्व महामंत्री और ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने भ्रम को दूर किया है. दीपावली पर पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर को स्थिर लग्न वृषभ सायं 6:27 बजे से रात 8:23 बजे तक है. यह सबसे उत्तम मुहूर्त है. इसके बाद स्थिर लग्न सिंह मध्य रात्रि 12:53 बजे से भोर 3:09 बजे तक होगा.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि पंच दिवसीय पर्व अपने आप में महत्वपूर्ण है, लेकिन इस बार 5 दिन नहीं, बल्कि प्रकाश पर्व 6 दिन का होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि 31 अक्टूबर और 1 नवंबर दोनों दिन अमावस्या का होना है. 31 तारीख को दीपावली मनाई जाएगी और 1 तारीख को स्नान दान की अमावस्या होगी. इस दिन कोई त्यौहार तो नहीं है, लेकिन स्नान और दान पुण्य का विधान उत्तम है.

दीपावली के मुहूर्त और परंपरा की जानकारी देते पंडित ऋषि द्विवेदी. (Video Credit : ETV Bharat)

पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार 29 अक्टूबर को धन त्रयोदशी धन्वंतरि जयंती, 30 अक्टूबर को हनुमान जयंती और नरक चतुर्दशी व छोटी दीपावली मनाई जाएगी. 31 अक्टूबर को दीपावली और महालक्ष्मी और गणेश का पूजन का विधान है. एक नवंबर को कोई पर्व नहीं है, लेकिन अमावस्या के दिन शाम को 5:13 बजे तक होने की वजह से इस दिन दान पुण्य और स्नान करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है. इसके अलावा 2 नवंबर को वाराणसी के अतिरिक्त हर स्थान पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा. 2 नवंबर को ही अन्नकूट का पर्व संपन्न होगा. 3 नवंबर को गोवर्धन पूजा और भाई दूज के अलावा यम द्वितीया का पर्व मनाया जाएगा.


घनतेरस : धनतेरस का त्योहार 29 अक्टूबर को धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. इस दिन धनवंतरि जयंती का भी त्यौहार मनाया जाएगा. इस दिन शाम में माता लक्ष्मी और धन कुबेर का पूजन करने का विधान है. इसके लिए शाम 6:35 बजे से रात 8:31 बजे तक पूजन पाठ संपन्न करना होगा यह स्थिर लग्न है. इसके अलावा धन त्रयोदशी वाले दिन अपने घर के ड्योढ़ी पर चौमुखा मुख वाला दीपक भी जलाना होगा.

नरक चतुर्दशी व हनुमान जयंती : 30 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी व हनुमान जयंती मनाई जाएगी. क्योंकि हनुमान जी का जन्म वृषभ लग्न में हुआ था. इसलिए शाम 4:54 बजे से 6:31 बजे तक हनुमान जन्म व पूजन संपन्न करना होगा.

दीपावली और महालक्ष्मी-गणेश पूजून : 31 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष व्यापिनी होने की वजह से इसी दिन दीपावली का त्यौहार मनाया जाएगा. शाम 6:27 बजे से रात 8:23 बजे तक दृश्य लग्न स्थिर होगा. इस समय मां लक्ष्मी का पूजन विशेष फलदाई माना जाता है.

अमावस्या : दीपावली को लेकर भ्रम है. इसलिए 1 नवंबर को भी बहुत जगह पर दीपावली मनाई जाएगी, लेकिन 1 नवंबर को कोई भी त्योहार ना होने की वजह से इस दिन पांच दिवसीय पर्व के क्रम में अमावस्या का दान और स्नान पूरा किया जाएगा और शाम को दीपक भी जलाए जाएंगे, लेकिन दीपावली का मान 31 अक्टूबर को ही होगा.



अन्नकूट व गोवर्धन पूजा : 2 नवंबर को वाराणसी को छोड़कर बाकी जगहों पर गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा और मंदिरों में अन्नकूट के साथ घरों में भी अन्नकूट का भोग भगवान को अर्पित किया जाएगा. इस दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की परंपरा का निभाई जाएगी.

भाई दूज व यम द्वितीया : 3 नवंबर को इस पांच दिवसीय पर्व के क्रम में भाई दूज का त्यौहार मनाया जाएगा. भाई अपनी बहनों के घर जाकर टीका लगवाएंगे और भोजन ग्रहण करेंगे. इसी दिन हम द्वितीया का भी त्योहार मनाया जाएगा. शाम को घर की दहलीज पर यम के निमित्त चार मुख वाला दीपक भी जलाया जाएगा, ताकि अकाल मृत्यु से के डर से मुक्ति मिल सके.

दीपावली मुहूर्त

पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी. कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर व एक नवंबर दो दिन है. कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दिन में 3:12 बजे लग रही है, जो एक नवंबर को सायं 5:13 बजे तक है. एक नवंबर को सूर्यास्त सायं 5:32 बजे पर होगा. कार्तिक अमावस्या सूर्यास्त से पूर्व 5:13 बजे खत्म होगी. एक नवंबर को ही सायं 5:13 बजे के बाद प्रतिपदा तिथि लग जाएगी. एक नवंबर को प्रदोष काल व निशिथकाल दोनों में कार्तिक अमावस्या न मिलने से 31 अक्टूबर को दीपावली मनाना शास्त्र सम्मत होगा.


ब्रह्म पुराण में भी कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी, कुबेर आदि का रात में भ्रमण बताया गया है. प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद दो घटी रहता है. एक घटी 24 मिनट का होता है अर्थात, सूर्यास्त के बाद 48 मिनट का समय प्रदोष काल होता है. जो 31 अक्टूबर को ही मिलेगा. एक नवंबर को कार्तिक अमावस्या स्नान, दान और श्राद्ध की होगी. 31 अक्टूबर को दीपावली के दिन बृहस्पतिवार का संयोग माता लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए चार चांद लगाने वाला होगा. इस प्रमुख पर्व पर सनातनी लोग लक्ष्मी पूजन, तांत्रिक लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि करते हैं. व्यापारी वर्ग अपने व्यापार की उन्नति के लिए, जिसका जो भी व्यापार या जो भी जिस क्षेत्र का कार्य करता हो, वह सिद्धि के लिए महालक्ष्मी का पूजन-वंदन करता है.


मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या दीपावली अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त होता है. इसलिए इस दिन किसी भी कार्य को किया जाए तो निश्चित ही वर्ष भर उस कार्य में सफलता मिलती है. बंगीय समाज के लोग महाकाली जी का निशिथ काल में पूजन करते हैं. दीपावली के दिन सायंकाल देव मंदिरों में दीपदान तो रात्रि के अंतिम प्रहर में दरिद्रा निस्तारण व्यापारी वर्ग इस रात्रि शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए महालक्ष्मी जी का पूजन करते हैं. इस रात लक्ष्मी, गणेश व कुबेर का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर दीप प्रज्जवलित करने से माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीसूक्तमकनकधारा स्त्रोत, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र का पाठ-जप-हवन आदि करना चाहिए. जिससे महालक्ष्मी, स्थिर लक्ष्मी स्वरूप में कृपा के साथ धन-धान्य, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, ऐश्वर्य और प्रभुत्व का इत्यादि का वरदान देते हैं. दीपावली के दिन प्रात: हनुमान जी का दर्शन-पूजन करने का विधान होता है. दीपावली लक्ष्मी पूजन का प्रमुख समय प्रदोष काल माना जाता है. इसमें स्थिर लग्न की प्रधानता मानी जाती है.

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Last Updated : Oct 26, 2024, 10:21 AM IST
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