देहरादून: 14 फरवरी यानी वेलेंटाइन डे. इन दिन का इंतजार हर प्रेमी जोड़े को रहता है. प्रेमी जोड़े एक दूसरे के लिए इस दिन को खास बनाने की कोशिश करते हैं. इस दिन पर आज हम आपको उत्तराखंड की ऐसी डेस्टिनेशन के बारे में बताने जा रहे हैं जो प्रेमी जोड़ों के लिए खास है. इस डेस्टिनेशन का नाम त्रियुगीनारायण (त्रिजुगीनारायण) है. त्रियुगीनारायण पहुंचकर प्रेमी जोड़े शिव-पार्वती की तरह अपने प्रेम को साकार करते हैं.
ऐसे में ईश्वरीय अनुभूति के बीच और महादेव-गौरा के एकात्म को महसूस करने श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. ख्याति बढ़ने के साथ ही बीेते कुछ सालों से यहां विवाह करने वालों की संख्या भी काफी बढ़ी है. हर दिन यहां जोड़े सात फेरे लेकर एक दूसरे के साथ वैवाहिक बंधन में बंध रहे हैं. त्रियुगीनारायण में आकर प्रेमी जोड़े अपने प्यार को मुक्कमल कर रहे हैं. दुनियावी दिखावों को छोड़, सदा के लिए एक हो रहे हैं.
6 महीने में त्रियुगीनारायण में 40 शादियां: बदरी-केदार मंदिर समिति के मिली जानकारी के अनुसार, शिव-पार्वती विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में बीते 6 महीने के भीतर 40 शादियां हो चुकी हैं. वहीं, 8 मार्च यानी महाशिवरात्रि पर्व तक 15 जोड़ों ने त्रियुगीनारायण में शादी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है. खासकर महाशिवरात्रि पर्व के दिन त्रियुगीनारायण मंदिर में शादी करने का विशेष महत्व है. पिछले साल शिवरात्रि पर्व पर त्रियुगीनारायण मंदिर में 6 शादियां हुई थी. इस बार भी अभी तक पांच शादियों के रजिस्ट्रेशन महाशिवरात्रि पर्व के लिए हो चुके हैं.
कैसे पहुंचे त्रियुगीनारायण मंदिर: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत आने वाला त्रियुगीनारायण मंदिर केदारनाथ यात्रा के सबसे अहम पड़ाव सोनप्रयाग से लगभग करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी और सोनगंगा नदियों के संगम पर मौजूद है. करीब 1,980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये धाम शिव और पार्वती के विवाह स्थल के रूप में विश्व विख्यात है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर भगवान विष्णु के बामन अवतार का मंदिर है. त्रेता युग में इसी मंदिर में भगवान शिव और मां पार्वती ने भगवान विष्णु को साक्षी मानकर सात फेरे लिए थे. मान्यता है कि ये विवाह स्वयं बह्मा जी ने पुजारी बनकर करवाया था.
मंदिर में स्थित जिस अग्नि कुंड में भगवान शिव और मां पार्वती ने सात फेरे लिये थे, उस अग्नि कुंड में तब से लेकर अब तक अग्नि निरंतर प्रज्जवलित होती रहती है. यह अग्नि यह शिव-शक्ति के विवाह के बाद से निरंतर जलती रहती है. कहा जाता है कि यहां रुद्र कुंड, विष्णु कुंड, सरस्वती कुंड और ब्रह्मा कुंड मौजूद हैं. त्रियुगीनारायण मंदिर जाने के लिये कोई पैदल दूरी तय नहीं करनी होती है. यह मंदिर सड़क के निकट ही स्थित है.
शादी से पहले करना होता है रजिस्ट्रेशन: अपने प्रेम को विवाह तक पहुंचाने के लिए जोड़े शिव-पार्वती के इस प्राचीन धरोहर को साक्षी बना रहे हैं. उत्तराखंड सरकार भी त्रियुगीनारायण मंदिर को वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में काफी प्रचारित कर रही है. जिसके बाद से कपल्स के बीच त्रियुगीनारायण मंदिर काफी प्रसिद्ध हो रहा है. यहां तक कि शादी के लिए यहां महीनों तक की बुकिंग हो चुकी है. यहां शादी के लिए पहले मंदिर समिति से 1100 रुपये में रजिस्ट्रेशन करना होता है. मंदिर में विवाह के लिए समिति निश्चित तिथि तय कर जोड़ों को बताती है. तय तिथि पर यहां विवाह का आयोजन होता है. मंदिर समिति रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया ऑनलाइन करने पर भी विचार कर रही है.
प्यार के इस मौसम में प्रेमी जोड़े त्रियुगीनारायण मंदिर की ओर रुख कर रहे हैं. पहाड़ों पर भी इन दिनों मौसम का रंग गुलाबी है. प्यार के इस मौसम में इजहारे इश्क की अलग-अलग रवायतें हैं, ऐसे ही वक्त के लिए मशहूर शायर मुन्नवर राणा ने कहा है-
'बात आंखों की सुनो दिल में उतर जाती है
जुबां का क्या है वो तो मुकर जाती है
जो कह सको वो कहो, जरिया चाहे जो भी हो
जिंदगी का क्या, गुजरनी है, गुजर जाती है'... जरिया कोई भी बस प्यार मायने रखता है, इसी प्यार की बानगी इन दिनों शिव-पार्वती के विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में दिख रही है.
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