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सख्त भू कानून को लेकर बढ़ते कदम, जानिये राज्य गठन से लेकर अब तक क्या कुछ हुआ - UTTARAKHAND BHU KANOON

उत्तराखंड के भू कानून में लगातार होते रहे संशोधन, 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने दी बड़ी छूट, धामी सरकार ने भी किया बड़ा प्रावधान.

UTTARAKHAND BHU KANOON
सख्त भू कानून को लेकर बढ़ते कदम (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 19, 2025, 3:28 PM IST

Updated : Feb 19, 2025, 5:07 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में लंबे समय से सख्त भू कानून की मांग की जा रही थी. जिसे आज धामी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है. बजट सत्र के दौरान धामी कैबिनेट ने सख्त भू कानून लागू करने की बात कही है. उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से भू कानून में कई तरह के संसोधन हुये. कभी इसके कानूनों को कुंद किया गया तो कभी सख्ताई दिखा कर उत्तराखंड की जमीनों को बचाने की बात आई. साल 2018 में एक दौर ऐसा भी आया जब उत्तराखंड में उघोग धंधों के नाम पर जमीन खरीद की खुली छूट दे दी गई. आइये आपको बताते हैं राज्य गठन से लेकर अब तक भू कानून को लेकर क्या कुछ हुआ.

साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. इसके बाद साल 2002 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी. कांग्रेस सरकार ने 2002 में उत्तराखंड में भू-कानून को लागू किया. इसके बाद दो साल तक ये व्यवस्था चलती रही. 2004 में कांग्रेस सरकार ने इसमें संसोधन किया. तब की कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 की धारा 154 में बदलाव किये. जिसके हिसाब से कृषि या औद्यानिकी भूमि खरीदने के लिए जिलाधिकारी को नामित किया गया. नगर निगम क्षेत्र से बाहर, राज्य के बाहरी लोग सिर्फ 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सके. इसमें ये भी प्रावधान किया गया.

संबंधित खबर- गैरसैंण सत्र के साथ फिर तेज हुई सशक्त भू-कानून की लड़ाई

इसके बाद 2007 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-कानून को और अधिक सख्त किया. तब बीसी खंडूड़ी उत्तराखंड के सीएम थे. उन्होंने 2004 में किए गए संशोधन में बदलाव किया. जिसमें नगर निगम परिधि से बाहर जमीन खरीदने की सीमा को 500 वर्ग मीटर से घटाकर 250 वर्ग मीटर किया गया. इसके बाद लंबे समय तक भू कानून को लेकर कोई बड़ा काम नहीं हुआ.

UTTARAKHAND BHU KANOON
सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट से पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू-कानून के नियमों में बड़ा संशोधन किया. उन्होंने प्रदेश भर में जमीनों के खरीदने की बंदिशों को समाप्त किया. 6 अक्टूबर 2018 को त्रिवेंद्र रावत ने भू-कानून को लेकर एक नया अध्यादेश पारित किया. जिसका नाम 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 संशोधन विधेयक था. इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई. जिसके तहत, पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को खत्म किया गया. मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में सीलिंग को भी समाप्त कर दिया. ये सब उद्योगों को बढ़ावा देने के नाम पर किया गया.

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सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

2018 में जमीनों की खरीद फरोख्त में मिली छूट के बाद उत्तराखंड में सख्त भू कानून की मांग तेज हुई. 2021 में पुष्कर सिंह धामी ने इसे लेकर कदम उठाया. उन्होंने इसके लिए समिति का गठन किया. जिसमें पूर्व सीएस सुभाष कुमार को अध्यक्ष बनाया गया. इसमें तमाम रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और अजेंद्र अजय को शामिल किया. इस उच्च स्तरीय समिति का उद्देश्य जनहित और प्रदेश हित को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट तैयार करना था. भू-कानून के लिए गठित समिति ने 2022 में रिपोर्ट सौंपी. इस 80 पन्नों की रिपोर्ट में भू-कानून से संबंधित 23 सुझाव दिए गए. जिसमें मुख्य रूप से प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित खरीद-बिक्री के बीच संतुलन बनाने को कहा गया.

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सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

जिसके बाद अब एक बार फिर से उत्तराखंड की धामी सरकार ने सख्त भू कानून को मंजूरी दी है. इसके अनुसार बाहरी लोग हरिद्वार और उधमसिंह नगर के अलावा शेष 11 जिलों में कृषि व बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे. विशेष प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी. जमीन खरीदते समय सब रजिस्ट्रार को शपथ पत्र देना होगा.

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साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ. इसके बाद साल 2002 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी. कांग्रेस सरकार ने 2002 में उत्तराखंड में भू-कानून को लागू किया. इसके बाद दो साल तक ये व्यवस्था चलती रही. 2004 में कांग्रेस सरकार ने इसमें संसोधन किया. तब की कांग्रेस सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम- 1950 की धारा 154 में बदलाव किये. जिसके हिसाब से कृषि या औद्यानिकी भूमि खरीदने के लिए जिलाधिकारी को नामित किया गया. नगर निगम क्षेत्र से बाहर, राज्य के बाहरी लोग सिर्फ 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सके. इसमें ये भी प्रावधान किया गया.

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इसके बाद 2007 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-कानून को और अधिक सख्त किया. तब बीसी खंडूड़ी उत्तराखंड के सीएम थे. उन्होंने 2004 में किए गए संशोधन में बदलाव किया. जिसमें नगर निगम परिधि से बाहर जमीन खरीदने की सीमा को 500 वर्ग मीटर से घटाकर 250 वर्ग मीटर किया गया. इसके बाद लंबे समय तक भू कानून को लेकर कोई बड़ा काम नहीं हुआ.

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सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट से पहले ही तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू-कानून के नियमों में बड़ा संशोधन किया. उन्होंने प्रदेश भर में जमीनों के खरीदने की बंदिशों को समाप्त किया. 6 अक्टूबर 2018 को त्रिवेंद्र रावत ने भू-कानून को लेकर एक नया अध्यादेश पारित किया. जिसका नाम 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 संशोधन विधेयक था. इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई. जिसके तहत, पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को खत्म किया गया. मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में सीलिंग को भी समाप्त कर दिया. ये सब उद्योगों को बढ़ावा देने के नाम पर किया गया.

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सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

2018 में जमीनों की खरीद फरोख्त में मिली छूट के बाद उत्तराखंड में सख्त भू कानून की मांग तेज हुई. 2021 में पुष्कर सिंह धामी ने इसे लेकर कदम उठाया. उन्होंने इसके लिए समिति का गठन किया. जिसमें पूर्व सीएस सुभाष कुमार को अध्यक्ष बनाया गया. इसमें तमाम रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और अजेंद्र अजय को शामिल किया. इस उच्च स्तरीय समिति का उद्देश्य जनहित और प्रदेश हित को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट तैयार करना था. भू-कानून के लिए गठित समिति ने 2022 में रिपोर्ट सौंपी. इस 80 पन्नों की रिपोर्ट में भू-कानून से संबंधित 23 सुझाव दिए गए. जिसमें मुख्य रूप से प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित खरीद-बिक्री के बीच संतुलन बनाने को कहा गया.

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सख्त भू कानून के नियम (ETV BHARAT)

जिसके बाद अब एक बार फिर से उत्तराखंड की धामी सरकार ने सख्त भू कानून को मंजूरी दी है. इसके अनुसार बाहरी लोग हरिद्वार और उधमसिंह नगर के अलावा शेष 11 जिलों में कृषि व बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे. विशेष प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी. जमीन खरीदते समय सब रजिस्ट्रार को शपथ पत्र देना होगा.

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Last Updated : Feb 19, 2025, 5:07 PM IST
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