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शासनादेश के विरुद्ध स्पेशल काउंसिल को फीस देने का मामला, HC ने दोनों पक्ष से मांगा जवाब - Uttarakhand HighCout - UTTARAKHAND HIGHCOUT

Uttarakhand HighCout उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सरकारी आदेश के खिलाफ पैरवी करने के लिए विशेष वकील को भारी भरकम फीस देने के मामले में सुनवाई की. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार और याचिकाकर्ता से रिपोर्ट और शपथपत्र पेश करने के लिए कहा है.

Uttarakhand HighCout
उत्तराखंड हाईकोर्ट (FILE PHOTO ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 4, 2024, 9:40 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बिना न्याय विभाग और चीफ सेक्रेटरी की अनुमति लिए, शासनादेश के विरुद्ध जाकर, उच्च न्यायालय में कुछ विशेष मामलों की सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से स्पेशल काउंसिल बुलाने और उन्हें प्रति सुनवाई हेतु 10 लाख रुपये पर दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध जो कोई आरोप आप लगा रहे हैं, उसकी रिपोर्ट दस दिन के भीतर कोर्ट में पेश करें. साथ में कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे भी दस दिन के भीतर कोर्ट को बताएं कि वे कितना आयकर देते हैं और अभी तक उनके द्वारा कितने सामाजिक कार्य किए गए हैं, शपथपत्र के माध्यम से पेश करें. मामले की अगली सुनवाई दस दिन बाद की तिथि नियत की है.

गुरुवार को हुई सुनवाई पर महाधिवक्ता की तरफ से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है. क्योंकि इसमें जो पक्षकार बनाए गए हैं वे वर्तमान में सीएम व मुख्य स्थायी अधिवक्ता हैं. जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है. इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाया जाए. जिसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चंद्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इनके नाम नहीं हटाए जाएं, जब तक कोर्ट संतुष्ट नहीं होती.

मुख्यमंत्री सहित राज्य के स्थायी अधिवक्ता को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया है क्योंकि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त के करने के लिए न तो राज्य के चीफ सेक्रेटरी और न ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. जबकि न्याय अनुभाग के द्वारा जारी 30 मई 2015 का शासनादेश यह कहता है कि उन्हीं मामलों में स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, जब सरकार इसका अनुमोदन करें.

इस केस में राज्य सरकार ने किसी का अनुमोदन नहीं लिया. फोन पर हुई वार्ता के अनुसार स्पेशल काउंसिल नियुक्त कर दिया और उसे प्रति सुनवाई दस लाख का भुगतान कर दिया. जो राज्य सरकार की नियमावली के विरुद्ध है. इसका अनुमोदन लिया जाना परम आवश्यक था. जो फोन वार्ता से लिया गया. जिसपर खनन विभाग ने प्रति दिन के हिसाब से दस लाख रुपए दिए. इसका भुगतान 70 लाख रुपए किया गया.

ये भी पढ़ेंः देहरादून संडे मार्केट का मामला, HC ने नगर निगम दून को शपथपत्र पेश करने का दिया आखिरी मौका

देहरादूनः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बिना न्याय विभाग और चीफ सेक्रेटरी की अनुमति लिए, शासनादेश के विरुद्ध जाकर, उच्च न्यायालय में कुछ विशेष मामलों की सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से स्पेशल काउंसिल बुलाने और उन्हें प्रति सुनवाई हेतु 10 लाख रुपये पर दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध जो कोई आरोप आप लगा रहे हैं, उसकी रिपोर्ट दस दिन के भीतर कोर्ट में पेश करें. साथ में कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे भी दस दिन के भीतर कोर्ट को बताएं कि वे कितना आयकर देते हैं और अभी तक उनके द्वारा कितने सामाजिक कार्य किए गए हैं, शपथपत्र के माध्यम से पेश करें. मामले की अगली सुनवाई दस दिन बाद की तिथि नियत की है.

गुरुवार को हुई सुनवाई पर महाधिवक्ता की तरफ से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है. क्योंकि इसमें जो पक्षकार बनाए गए हैं वे वर्तमान में सीएम व मुख्य स्थायी अधिवक्ता हैं. जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है. इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाया जाए. जिसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चंद्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इनके नाम नहीं हटाए जाएं, जब तक कोर्ट संतुष्ट नहीं होती.

मुख्यमंत्री सहित राज्य के स्थायी अधिवक्ता को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया है क्योंकि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त के करने के लिए न तो राज्य के चीफ सेक्रेटरी और न ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. जबकि न्याय अनुभाग के द्वारा जारी 30 मई 2015 का शासनादेश यह कहता है कि उन्हीं मामलों में स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, जब सरकार इसका अनुमोदन करें.

इस केस में राज्य सरकार ने किसी का अनुमोदन नहीं लिया. फोन पर हुई वार्ता के अनुसार स्पेशल काउंसिल नियुक्त कर दिया और उसे प्रति सुनवाई दस लाख का भुगतान कर दिया. जो राज्य सरकार की नियमावली के विरुद्ध है. इसका अनुमोदन लिया जाना परम आवश्यक था. जो फोन वार्ता से लिया गया. जिसपर खनन विभाग ने प्रति दिन के हिसाब से दस लाख रुपए दिए. इसका भुगतान 70 लाख रुपए किया गया.

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