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यूपीपीसीएल ने निजीकरण के जिस प्रस्ताव को दी मंजूरी; उस पर उठे गंभीर सवाल, CBI जांच की मांग - UPPCL NEWS

UPPCL news: उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की तरफ से दक्षिणांचल व पूर्वांचल को पीपीपी मॉडल में दिए जाने को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.

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उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 10, 2024, 9:46 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की तरफ से दक्षिणांचल व पूर्वांचल को पीपीपी मॉडल में दिए जाने के लिए एनर्जी टास्क फोर्स से जिस मसौदे को मंजूरी दिलाई गई, वह उद्योगपतियों को ज्यादा फायदा देने वाला है. भारत सरकार की स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के अनुसार 15 प्रतिशत से अधिक हानियों के आधार पर पीपीपी मॉडल को दिया जाता है. लेकिन, पावर कॉरपोरेशन की तरफ से दाखिल एनर्जी टास्क फोर्स में जिस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, वह रिजर्व प्राइस के आधार पर दी गई है. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की तरफ से इस मामले को गंभीर मानते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई है.

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि सबसे बडा सवाल यह है कि उसी एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में जो प्रेजेंटेशन किया गया. उसमें यह दिखाया गया कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की गैर सरकारी हानियां 39.42 प्रतिशत है. पूर्वांचल की 49.22 प्रतिशत हैं. यानी कि आने वाले समय में देश के निजी घराने टेंडर पाते ही हर साल बिना कुछ किए हजारों करोड़ रुपए कमाएंगे. क्योंकि वास्तव में यह हानियां 18 प्रतिशत से 19 प्रतिशत के आसपास हैं.

दूसरी तरफ केंद्र सरकार की आरडीएसएस स्कीम में जो एटीएण्डसी लाइन हानियां भारत सरकार की तरफ से अनुमोदित की गईं, वह वर्ष 2024-25 के लिए दक्षिणांचल की 18.97 प्रतिशत और पूर्वांचल की 18.49 प्रतिशत हैं. यानी कानून के तहत टेंडर आरडीएसएस की तरफ से जो एटीएण्डसी अनुमोदित हानियां हैं, उसके आधार पर आरएफपी की मंजूरी होनी चाहिए.

इसे भी पढ़ें - उड़ीसा का मॉडल यूपी में हुआ लागू तो लुट जाएंगे बिजली उपभोक्ता, कई गुना बढ़ सकती हैं कीमतें

उनका कहना है कि ये सवाल उठना लाजिमी है कि उद्योगपतियों को फायदा देने के लिए ऐसा क्यों किया जा रहा है? अब पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराया जाना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. भारत सरकार की स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के विपरीत जाकर यह मसौदा अनुमोदित कराया गया कि एक रिजर्व प्राइस पांच नई कंपनियों के लिए रखा गया है. उसके आधार पर बिडिंग की प्रक्रिया को आगे बढाया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि लगभग 70 हजार से 80 हजार करोड़ की परिसंपत्तियां दोनों बिजली निगमों की हैं. इसमें आरडीएसस व नए सभी कार्य शामिल हैं.

यहां रिजर्व प्राइस 2000 करोड़ को आकलित करते हुए गोरखपुर कलेक्टर को लगभग मिनिमम बिड प्राइस 1010 करोड़, काशी कलेक्टर को 1650 करोड़, प्रयागराज कलेक्टर को लगभग 1630 करोड़, आगरा मथुरा कलेक्टर को लगभग 1660 करोड़, झांसी कानपुर कलेक्टर को लगभग 1600 करोड़ मिनिमम आकलित है. ये हर हाल में उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाली है.

अवधेश वर्मा का कहना है कि भारत सरकार का रूल स्पष्ट करता है कि किसी भी कंपनी की जो कुल परिसंपत्तियां होंगी उसको लेने के लिए किसी कंपनी की नेटवर्थ 30 प्रतिशत होनी चाहिए. उसके आधार पर देखा जाए तो 80 हजार करोड़ वाली दोनों बिजली कंपनियों के लिए पांच बिजली कंपनियों के लिए कुल नेटवर्थ लगभग रुपया 2400 करोड़ होगी. अब यहां जो रिजर्व बिड प्राइस रखी गई है. वह सिर्फ 2000 करोड़ है, जो अपने आप में सवाल पैदा करता है.

यह भी पढ़ें - ट्रांसफर आदेश पर भड़के कर्मचारी यूनियन के नेता, पावर कॉरपोरेशन पर लगाया कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का आरोप - TRANSFER IN UP POWER CORPORATION

लखनऊ: उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन की तरफ से दक्षिणांचल व पूर्वांचल को पीपीपी मॉडल में दिए जाने के लिए एनर्जी टास्क फोर्स से जिस मसौदे को मंजूरी दिलाई गई, वह उद्योगपतियों को ज्यादा फायदा देने वाला है. भारत सरकार की स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के अनुसार 15 प्रतिशत से अधिक हानियों के आधार पर पीपीपी मॉडल को दिया जाता है. लेकिन, पावर कॉरपोरेशन की तरफ से दाखिल एनर्जी टास्क फोर्स में जिस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, वह रिजर्व प्राइस के आधार पर दी गई है. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद की तरफ से इस मामले को गंभीर मानते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई है.

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि सबसे बडा सवाल यह है कि उसी एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में जो प्रेजेंटेशन किया गया. उसमें यह दिखाया गया कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की गैर सरकारी हानियां 39.42 प्रतिशत है. पूर्वांचल की 49.22 प्रतिशत हैं. यानी कि आने वाले समय में देश के निजी घराने टेंडर पाते ही हर साल बिना कुछ किए हजारों करोड़ रुपए कमाएंगे. क्योंकि वास्तव में यह हानियां 18 प्रतिशत से 19 प्रतिशत के आसपास हैं.

दूसरी तरफ केंद्र सरकार की आरडीएसएस स्कीम में जो एटीएण्डसी लाइन हानियां भारत सरकार की तरफ से अनुमोदित की गईं, वह वर्ष 2024-25 के लिए दक्षिणांचल की 18.97 प्रतिशत और पूर्वांचल की 18.49 प्रतिशत हैं. यानी कानून के तहत टेंडर आरडीएसएस की तरफ से जो एटीएण्डसी अनुमोदित हानियां हैं, उसके आधार पर आरएफपी की मंजूरी होनी चाहिए.

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उनका कहना है कि ये सवाल उठना लाजिमी है कि उद्योगपतियों को फायदा देने के लिए ऐसा क्यों किया जा रहा है? अब पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराया जाना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. भारत सरकार की स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के विपरीत जाकर यह मसौदा अनुमोदित कराया गया कि एक रिजर्व प्राइस पांच नई कंपनियों के लिए रखा गया है. उसके आधार पर बिडिंग की प्रक्रिया को आगे बढाया जा रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि लगभग 70 हजार से 80 हजार करोड़ की परिसंपत्तियां दोनों बिजली निगमों की हैं. इसमें आरडीएसस व नए सभी कार्य शामिल हैं.

यहां रिजर्व प्राइस 2000 करोड़ को आकलित करते हुए गोरखपुर कलेक्टर को लगभग मिनिमम बिड प्राइस 1010 करोड़, काशी कलेक्टर को 1650 करोड़, प्रयागराज कलेक्टर को लगभग 1630 करोड़, आगरा मथुरा कलेक्टर को लगभग 1660 करोड़, झांसी कानपुर कलेक्टर को लगभग 1600 करोड़ मिनिमम आकलित है. ये हर हाल में उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाली है.

अवधेश वर्मा का कहना है कि भारत सरकार का रूल स्पष्ट करता है कि किसी भी कंपनी की जो कुल परिसंपत्तियां होंगी उसको लेने के लिए किसी कंपनी की नेटवर्थ 30 प्रतिशत होनी चाहिए. उसके आधार पर देखा जाए तो 80 हजार करोड़ वाली दोनों बिजली कंपनियों के लिए पांच बिजली कंपनियों के लिए कुल नेटवर्थ लगभग रुपया 2400 करोड़ होगी. अब यहां जो रिजर्व बिड प्राइस रखी गई है. वह सिर्फ 2000 करोड़ है, जो अपने आप में सवाल पैदा करता है.

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