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भोलेनाथ के इस मंदिर पर कौवे ने फेंक दी थी हड्डी, यहां नहीं बन पाई काशी, अब दूसरी काशी के नाम से है प्रसिद्ध - Kanpur Siddhnath Temple - KANPUR SIDDHNATH TEMPLE

आज सावन महीने का अंतिम सोमवार है. कानपुर के सिद्धनाथ मंदिर में तड़के से भी भक्तों की कतार लगी हुई है. इस मंदिर को दूसरी काशी के रूप में जाना जाता है. भगवान भोलनाथ यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं.

मंदिर को दूसरी काशी के रूप में जाना जाता है.
मंदिर को दूसरी काशी के रूप में जाना जाता है. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 19, 2024, 8:20 AM IST

Updated : Aug 19, 2024, 8:38 AM IST

सिद्धनाथ मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना. (Video Credit; ETV Bharat)

कानपुर : सावन महीने में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायक होती है. आज सावन का आखिरी सोमवार है. हर सोमवार की तरह इस बार भी शिवालयों में भक्त जलाभिषेक कर रहे हैं. कानपुर के सिद्धनाथ मंदिर में भी भक्तों की भीड़ है. यहां तड़के ही भक्त कतार में लगकर दर्शन-पूजन कर रहे हैं. इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इसे दूसरी काशी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि एक कौवे ने यहां हड्डी फेंक दी थी. उसने ऐसा न किया होता तो काशी यहीं पर होती.

सावन के आखिरी सोमवार पर सभी शिवालय पूरी तरह से बम-बम भोले के जयघोष से गूंज रहे हैं. शहर के गंगा तट पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर में सावन मास में लाखों की संख्या में शिव भक्त महादेव के दर्शन करने के लिए आते हैं. बाबा को बेलपत्र और चंदन अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

शिव की मूर्ति है काफी प्राचीन : ईटीवी भारत से खास बातचीत में मंदिर के महंत मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि मां गंगा के पावन तट पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है. यह प्राचीन मंदिर शिव भक्तों में द्वितीय काशी के नाम से चर्चित है. यहां पर बाबा शिव की जो मूर्ति विराजमान है, वह अनादि काल की है. यहां पर राजा ययाति ने 99 यज्ञ कराए थे. एक यज्ञ यहां पर बाकी रह गया था, अगर यहां पर 100 यज्ञ पूरे हो जाते तो इस मंदिर को ही काशी का दर्जा मिल जाता.

कौवा ने यज्ञ में डाला विघ्न : 100 वें यज्ञ के दौरान एक कौवे ने हवन कुंड में हड्डी डाल दी थी. इसकी वजह से वह यज्ञ पूरा नहीं हो सका था. यहां पर 99 यज्ञ संपन्न हुए थे. इस वजह से यह पवित्र स्थल द्वितीय काशी के रूप में पहचाना जाने लगा. महंत ने बताया कि जिस जगह पर बाबा का शिवलिंग विराजमान है. वहां पर एक गाय झाड़ियों के बीच जाकर रोजाना अपना सारा दूध गिरा देती थी. चरवाहों ने जब उस जगह की घास को काटा तब वहां से बाबा का यह शिवलिंग प्रकट हुआ.

मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ी भीड़.
मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ी भीड़. (Photo Credit; ETV Bharat)

जानिए क्या है सिद्धनाथ मंदिर की विशेषता : मां गंगा के पावन तट पर स्थित सिद्धनाथ बाबा को जाजमऊ के कोतवाल के रूप में भी जाना जाता है. लोग उनकी इसी रूप में पूजा भी करते हैं. सिद्धनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्त गंगाजल से महादेव का जलभिषेक कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. दावा है कि यहां पर स्थापित शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए दो बार खोदाई भी हो चुकी है, लेकिन शिवलिंग के अंतिम छोर का आज तक पता नहीं चल सका. सावन मास में बाबा सिद्धनाथ के दर्शन करने के लिए देशभर से शिवभक्त यहां पर आते हैं. जो भी भक्त सच्चे मन से यहां पर आकर बाबा की पूजा-अर्चना करता है, बाबा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

सावन में दिखता है काशी जैसा भव्य नजारा : मंदिर के महंत ने बताया कि सिद्धनाथ बाबा के दर्शन को श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु आते हैं. श्रावण मास के पवित्र महीने में यहां पर आने वाले भक्तों में काशी विश्वनाथ जैसा उत्साह और जोश देखने को मिलता है. उन्होंने बताया कि मंदिर को जो कॉरिडोर का स्वरूप दिया जा रहा है, उसमें बाबा सिद्धनाथ की जो पूजन की कोठरी थी. वहां बाबा की आरती व पूजा-सामग्री रखी जाती थी, वह तोड़ दी गई है. ऐसे में अब यहां पर पूजा की सामग्री रखने की जगह नहीं बची है. इसकी वजह से उन्हें अपने घर से सामना लेकर जाना पड़ता है. इससे उन्हें काफी परेशानी होती है.

यह भी पढ़ें : रक्षाबंधन: यूपी रोडवेज की बसों से आज बहनों का सफर मुफ्त, 24 घंटे चलेंगी 2000 बसें, इन 15 शहरों में सिटी बसों में भी सफर मुफ्त

सिद्धनाथ मंदिर में पूरी होती है हर मनोकामना. (Video Credit; ETV Bharat)

कानपुर : सावन महीने में भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायक होती है. आज सावन का आखिरी सोमवार है. हर सोमवार की तरह इस बार भी शिवालयों में भक्त जलाभिषेक कर रहे हैं. कानपुर के सिद्धनाथ मंदिर में भी भक्तों की भीड़ है. यहां तड़के ही भक्त कतार में लगकर दर्शन-पूजन कर रहे हैं. इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. इसे दूसरी काशी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि एक कौवे ने यहां हड्डी फेंक दी थी. उसने ऐसा न किया होता तो काशी यहीं पर होती.

सावन के आखिरी सोमवार पर सभी शिवालय पूरी तरह से बम-बम भोले के जयघोष से गूंज रहे हैं. शहर के गंगा तट पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर में सावन मास में लाखों की संख्या में शिव भक्त महादेव के दर्शन करने के लिए आते हैं. बाबा को बेलपत्र और चंदन अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

शिव की मूर्ति है काफी प्राचीन : ईटीवी भारत से खास बातचीत में मंदिर के महंत मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि मां गंगा के पावन तट पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है. यह प्राचीन मंदिर शिव भक्तों में द्वितीय काशी के नाम से चर्चित है. यहां पर बाबा शिव की जो मूर्ति विराजमान है, वह अनादि काल की है. यहां पर राजा ययाति ने 99 यज्ञ कराए थे. एक यज्ञ यहां पर बाकी रह गया था, अगर यहां पर 100 यज्ञ पूरे हो जाते तो इस मंदिर को ही काशी का दर्जा मिल जाता.

कौवा ने यज्ञ में डाला विघ्न : 100 वें यज्ञ के दौरान एक कौवे ने हवन कुंड में हड्डी डाल दी थी. इसकी वजह से वह यज्ञ पूरा नहीं हो सका था. यहां पर 99 यज्ञ संपन्न हुए थे. इस वजह से यह पवित्र स्थल द्वितीय काशी के रूप में पहचाना जाने लगा. महंत ने बताया कि जिस जगह पर बाबा का शिवलिंग विराजमान है. वहां पर एक गाय झाड़ियों के बीच जाकर रोजाना अपना सारा दूध गिरा देती थी. चरवाहों ने जब उस जगह की घास को काटा तब वहां से बाबा का यह शिवलिंग प्रकट हुआ.

मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ी भीड़.
मंदिर में जलाभिषेक के लिए उमड़ी भीड़. (Photo Credit; ETV Bharat)

जानिए क्या है सिद्धनाथ मंदिर की विशेषता : मां गंगा के पावन तट पर स्थित सिद्धनाथ बाबा को जाजमऊ के कोतवाल के रूप में भी जाना जाता है. लोग उनकी इसी रूप में पूजा भी करते हैं. सिद्धनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्त गंगाजल से महादेव का जलभिषेक कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. दावा है कि यहां पर स्थापित शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए दो बार खोदाई भी हो चुकी है, लेकिन शिवलिंग के अंतिम छोर का आज तक पता नहीं चल सका. सावन मास में बाबा सिद्धनाथ के दर्शन करने के लिए देशभर से शिवभक्त यहां पर आते हैं. जो भी भक्त सच्चे मन से यहां पर आकर बाबा की पूजा-अर्चना करता है, बाबा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

सावन में दिखता है काशी जैसा भव्य नजारा : मंदिर के महंत ने बताया कि सिद्धनाथ बाबा के दर्शन को श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु आते हैं. श्रावण मास के पवित्र महीने में यहां पर आने वाले भक्तों में काशी विश्वनाथ जैसा उत्साह और जोश देखने को मिलता है. उन्होंने बताया कि मंदिर को जो कॉरिडोर का स्वरूप दिया जा रहा है, उसमें बाबा सिद्धनाथ की जो पूजन की कोठरी थी. वहां बाबा की आरती व पूजा-सामग्री रखी जाती थी, वह तोड़ दी गई है. ऐसे में अब यहां पर पूजा की सामग्री रखने की जगह नहीं बची है. इसकी वजह से उन्हें अपने घर से सामना लेकर जाना पड़ता है. इससे उन्हें काफी परेशानी होती है.

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Last Updated : Aug 19, 2024, 8:38 AM IST
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