अजमेर: विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स मेला जारी है. 1 जनवरी को रजब का चांद दिखाई देने पर उर्स की विधिवत शुरुआत होगी. चांद नहीं दिखाई देता है, तो अगले दिन से उर्स मान लिया जाएगा. खास बात यह है कि 1 जनवरी को अल सुबह आस्ताने के बाहर पश्चिम दिशा की ओर लगा हुआ जन्नती दरवाजा भी आम जायरीन के लिए खोल दिया जाएगा. 1 जनवरी को चांद नजर नहीं आया, तो जन्नती दरवाजा 2 जनवरी को अल सुबह आम जायरीन के लिए खोल दिया जाएगा. उर्स में आने वाले हर जायरीन की हसरत होती है कि वह जन्नती दरवाजे से होकर ख्वाजा गरीब नवाज की मजार की जियारत करे. आइए जानते हैं जन्नती दरवाजे का महत्व और इतिहास के बारे में:
813वें उर्स की शुरुआत रजब के चांद के दिखने पर होगी. रजब का चांद 1 जनवरी को दिखता है, तो उर्स 1 जनवरी से अन्यथा अगले दिन सुबह से उर्स शुरू होगा. इसी प्रकार 1 जनवरी की अल सुबह यानी फजर की नमाज के बाद से जन्नती दरवाजे को आमजन के लिए खोल दिया जाएगा. यदि 1 जनवरी को रजब का चांद नजर नहीं आता है, तो रात को जन्नती दरवाजा बंद कर अगले दिन फजर की नमाज के बाद यानी 2 जनवरी को खोला जाएगा. यह 6 दिन तक खुला रहेगा. छठी के दिन छोटे कुल की रस्म के बाद इसे बंद कर दिया जाएगा. जयरीन आम दिनों में भी जन्नती दरवाजे को चूमते हैं और मन्नतों के धागे बांधते हैं.
यह है मान्यता: ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में खादिम सैयद फखर काजमी बताते हैं कि मान्यता है कि जन्नती दरवाजे से जो कोई जायरीन ख्वाजा गरीब नवाज की मजार की जियारत करता है. उसे करने के बाद जन्नत नसीब होती है. ख्वाजा गरीब नवाज में गहरी आस्था रखने वाले जायरीन जन्नती दरवाजे के खुलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं. खासकर उर्स के दौरान हर जरीन की दिली हसरत होती है कि वह जन्नती दरवाजे से होकर दरगाह में हाजिरी दे. उसके दौरान जन्नती दरवाजे से होकर जियारत करने के लिए जायरीन में हौड़ मची रहती है.
पश्चिमी गेट से आते-जाते थे गरीब नवाज: काजमी बताते हैं कि जहां आस्ताना है, यहीं पर ख्वाजा गरीब नवाज के जीवन काल में उनका हुजरा हुआ करता था. हुजरे का मतलब कमरे से है. हुजरे में तीन गेट हुआ करते थे. एक गेट से लोग ख्वाजा गरीब नवाज से मिलने के लिए दाखिल हुआ करते थे और दूसरे गेट से बाहर निकला करते थे. जबकि तीसरा गेट पश्चिम की ओर खुलता था. उसमें से केवल ख्वाजा गरीब नवाज ही आया-जाया करते थे.
काजमी बताते हैं कि पश्चिमी गेट से आते-जाते ख्वाजा गरीब नवाज अपने जीवन काल में दुआएं करते थे कि मेरे बाद जो कोई भी इस गेट में दाखिल होगा, अल्लाह उसे जन्नत नसीब करना. ख्वाजा गरीब नवाज के बाद यह यह दरवाजा वर्ष में चार मर्तबा ही खोला जाने लगा. दो बार यह जन्नती दरवाजा ईद के खास मौके पर खोला जाता है. जबकि एक बार ख्वाजा गरीब नवाज के पीर मुर्शिद (आध्यात्मिक गुरु) उस्मान रूनी के उर्स पर जन्नती दरवाजा खोला जाता है. केवल उर्स में ही जन्नती दरवाजा 6 दिन तक खोला जाता है.
इसलिए खुलता है वर्ष में चार मर्तबा: काजमी बताते है कि जन्नती दरवाजे वर्ष में चार बार ही खोले जाने की परंपरा सदियों से रही है. उन्होंने कहा कि जैसे ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स 6 दिन ही मनाया जाता है. वैसे ही जन्नती दरवाजा भी वर्ष में चार मर्तबा ही खुलता है. ताकि इसकी अहमियत बनी रहे.