लखनऊ: रेलवे प्रशासन ने बढ़ते कोहरों को देखते हुए ट्रेनों में फॉग सेफ डिवाइस लगानी शुरू कर दी है. रेलवे क्रॉसिंग के बैरियर पर ल्यूमिनस स्ट्रिप (चमकने वाली पट्टियां) लगाईं जा रहीं हैं.अब साइटिंग सिग्नल पर पटाखे की जगह चूना बिछाया जा रहा है. जिससे कोहरे में दूर से पता चल सके कि क्रॉसिंग बंद है या खुली हुई है.
कोहरे में ट्रेनों के सुरक्षित संचालन के लिए जीपीएस आधारित फॉग सेफ डिवाइस लगाई जा रहीं हैं. इस डिवाइस के उपयोग में आने के पहले कोहरे के दौरान अधिकतम गति 60 किमी प्रति घंटा मान्य थी, अब यह बढ़कर 75 किमी प्रति घंटा हो गई है. उत्तर रेलवे के डीआरएम सचिंद्र मोहन शर्मा का कहना है, कि उत्तर रेलवे की जितनी भी ट्रेनें संचालित हो रही हैं. उन सभी में फॉग सेफ डिवाइस लगा दी गई है. जिससे कोहरे का असर ट्रेनों पर कम पड़ेगा. ड्रॉइवर कॉन्फिडेंस के साथ ट्रेन का संचालन कर सकेंगे.
ऐसे काम करता है फॉग सेफ डिवाइस: उत्तर रेलवे के मंडल रेल प्रबंधक सचिंद्र मोहन शर्मा का कहना है, कि कोहरे में ट्रेन थोड़ी लेट हो जाती हैं, क्योंकि आगे का रास्ता नहीं दिखता है. तो रेलवे ने फॉग सेफ डिवाइस का आविष्कार किया. हर सेक्शन में जो सिग्नल आ रहा है, कोई लेवल क्रॉसिंग फाटक आ रहा है, कोई स्पीड रिस्ट्रिक्शन आ रहा है, तो उसके बारे में जीपीएस मैपिंग के थ्रू फीडिंग की जाती है. यह ड्राइवर को सचेत करता है. ड्रॉइवर में कॉन्फिडेंस आता है. उसे आगे के रूट के बारे में पता चल जाता है. इसके बाद ही वह रिएक्ट करता है. गाड़ी को सही प्रकार से संचालित करता है. रेलवे में जो पहले स्टाफ सिग्नल का बोर्ड होता है. जिसे साइटिंग बोर्ड कहते हैं उस पर चूने की मार्किंग कराई गई है. जो पहले स्टाफ सिग्नल है, उससे 270 मीटर पहले जहां पर पटाखे लगते थे.
इसे भी पढ़ें-यात्रीगण ध्यान दें! 48 ट्रेनें निरस्त; कई के रूट बदले, महाकुंभ में चलेगी स्पेशल ट्रेन - RAILWAY News
सभी ट्रेनों में डिवाइस जरूरी: फॉग में जहां तक ट्रेनों की स्पीड कम होने की बात है, तो मैक्सिमम स्पीड 60 केएमपीएच की होती है. लेकिन, जब अंदाजे से ड्राइवर को सिग्नल नहीं दिखता है. उसे लगता है 20 किलोमीटर पर सिग्नल है तो गाड़ी की स्पीड 20 से 30 या 40 तक हो जाती है. लेकिन, जब फाग सेफ डिवाइस से आगे का पता चल जाता है, तो स्पीड मेंटेन हो जाती है. ट्रेनों में 100% फॉग सेफ डिवाइस लगा दी गई है. जैसे ही लोको पायलट साइन इन करते हैं डिवाइस स्टार्ट कर लेते हैं. रेगुलर तरीके से इन डिवाइस की जांच की जाती है. फॉग सेफ डिवाइस और वॉकी टॉकी की समय पर मॉनिटरिंग होती है. इसके लिए बाकायदा कर्मचारियों की नियुक्ति है. फॉग सेफ डिवाइस की पॉलिसी उन जोन के लिए है, जहां पर कोहरा होता है. नॉर्थ ईस्टर्न, नॉर्दर्न और नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे में कोहरा ज्यादा होता है, इसलिए यहां पर सभी ट्रेनों में डिवाइस जरूरी है.
पटरियों की निगरानी के लिए पेट्रोलिंग के बढ़ाये जा रहे फेरे: सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने बताया, कि पूर्वोत्तर रेलवे में कुल 857 फॉग सेफ डिवाइस की व्यवस्था की गई है. जिनमें से लखनऊ मंडल में 315, इज्जतनगर मंडल में 193 और वाराणसी मंडल में 349 फॉग सेफ डिवाइस उपलब्ध कराइ गईं हैं. सभी लोको पायलटों और सहायक लोको पायलटों की काउसलिंग की गई है. पटरियों के निगरानी के लिए पेट्रोलिंग के फेरे बढ़ाये जा रहे हैं. कोहरे में ट्रेनों की गति कम होने से लाईन क्षमता कम हो जाती है, जिसके चलते ट्रेनों की संख्या में कमी की जाती है.
यह भी पढ़ें-कोहरे का कहर; उत्तर रेलवे ने कैंसल कीं 85 ट्रेनें, मेरठ जाने वाली 3 ट्रेनें भी 28 फरवरी तक निरस्त