मेरठ: जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव बहलोलपुर में सरकारी स्कूल लोगों को खासा पसंद आ रहा है. इतना ही नहीं स्कूल में शिक्षा के स्तर को समझने के लिए तो इतना ही काफी है, कि गांव से दस किलोमीटर दूर कस्बा से भी लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने भेज रहे हैं. यह स्कूल हमेशा से ही ऐसा नहीं था. 2019 में इस स्कूल की सूरत तब बदलनी शुरु हुई, जब गांव के ही रहने वाले सरकारी अध्यापक अजय कुमार का यहां स्थानांतरण हो गया.
अजय बताते हैं, कि इससे पहले वह संभल जिले के सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे. वहां उन्होंने अपने एक सीनियर को सरकारी स्कूल की दिशा दशा बदलने की कोशिश करते देखा था, जिससे वह बेहद प्रभावित थे. अब जब वह अपने गांव में ही सेवा देने आ गए, तो उनके मन में बस यही विचार था, कि अपने गांव के बच्चों के जीवन में बदलाव के लिए उन्हें इस स्कूल को सुधारना ही होगा.
अजय बताते हैं, कि जब वह गांव में सेवा दे रहे थे, तभी अचानक उनकी पत्नि का देहांत हो गया, वह अवसाद में थे. जिसके बाद वह पूरे दिन घर से आकर स्कूल में ही साफ सफाई और तमाम खराब चीजों को सही करने में लगे रहते और खुद को व्यस्त रखते. स्कूल के बाकी टीचर भी कहते हैं, कि सहायक अध्यापक अजय के मन में एक ही धुन सवार थी, कि स्कूल को बिल्कुल कान्वेंट की तर्ज पर न सिर्फ पढ़ाई के स्तर पर बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से भी लाना है.
स्कूल के हेड मास्टर बताते हैं, कि यूं तो वह स्वयं 2010 से इस स्कूल में थे. लेकिन, स्कूल में वह प्रधानाचार्य काफी समय बाद बने. जब से अजय की पत्नि का निधन हुआ, अजय स्कूल में ही खुद को कभी गार्डन दुरुस्त करने में तो कभी बच्चों को अतिरिक्त समय देकर पढ़ाने लगे. इसका परिणाम यह हुआ, कि पूरा स्टाफ छात्रों के साथ और अधिक एक्टिव होकर पढ़ाने लगा.
ग्रामीण बताते हैं, कि स्कूल अस्त व्यस्त हालत में था. जिसे किसी पौधे की तरह सींचकर यहां के स्टाफ ने अलग ही मिसाल पेश की है. अजय ने बताया, कि एक वक्त था कि इस स्कूल में न सिर्फ गंदगी के अम्बार होते थे, बल्कि छात्रों की संख्या भी दहाई में ही हुआ करती थी. स्कूल की चार दीवारी न होने की वजह से यह बेसहारा गोवंश और अन्य जानवरों के बैठने का ठिकाना हुआ करता था. लेकिन अब स्कूल की स्थिती पूरी तरह से बदल गई है. स्कूल के बच्चे भी बेहद खुश हैं. वह बताते हैं, कि पहले कस्बे में निजी स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन जब उनके घर वालों ने यहां की पढ़ाई का स्तर देखा और यहां का पूरा वातावरण देखा तो उन्हें यहीं पढ़ाने भेज दिया. ईटीवी भारत ने जब छात्र और छात्राओं से बात की तो वह भी अपनी परफॉर्मेंस से खुश हैं.
अजय ने बताया, कि कुछ कार्यों में जनसहयोग भी लिया. कुछ स्टाफ ने मिलकर किए. अब इस छोटे से गांव के इस स्कूल में 150 से अधिक स्टूडेंट्स हैं. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. यहां प्रोजेक्टर से भी पढ़ाई होती है. पढ़ाई के साथ साथ फिजिकल एक्टिविटी समेत तमाम एक्टिविटी बच्चे करते हैं. स्कूल के गार्डन बेहद ही खूबसूरत हैं, दीवारों पर स्टूडेंट्स को प्रेरित करने वाले स्लोगन लिखे हैं, कान्वेंट की तर्ज पर ही पढ़ाई होती है.कुछ कक्षाओं को तो हूबहू रेलगाड़ी की शक्ल में डिजाइन किया गया है, स्कूल के प्रिंसिपल कहते हैं कि यहां जो भी कुछ किया गया है उसके पीछे एक सार छुपा हुआ है.