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यूपी में भाव खा रहे गधे; 3 लाख रुपए तक लगी कीमत, VIDEO में देखिए- कहां लगा गधों का जमघट

BARABANKI DONKEY FAIR: देवा शरीफ में लगा 10 दिन का अनोखा पशु मेला, देश के कोने-कोने से आते हैं व्यापारी. 'जो रब है, वही राम' का संदेश देने वाले मशहूर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में हर साल लगता है मेला.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 9 hours ago

Updated : 5 hours ago

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बाराबंकी के देवा में लगते है यूपी का अनोखा पशु मेला. (photo credit: etv bharat)

बाराबंकीः यूं तो आपने मध्यप्रदेश के सतना और यूपी के चित्रकूट में लगने वाले गधा मेले के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि यूपी के बाराबंकी में भी गधा मेला लगता है. जी हां यहां के देवां में गधों और खच्चरों का मेला लगता है. हर साल कार्तिक के महीने में लगने वाले इस मेले में दूरदराज से लोग बेहतरीन नस्ल के खच्चर और गधे खरीदने और बेचने आते हैं.


देवां मेला का गधा और खच्चर मेला: यह मेला पिछले कई दशकों से लगने वाले इस मेले में दूरदराज से लोग गधे और खच्चर खरीदने और बेचने आते हैं. यहां 30 हजार रुपये से लगाकर 03 लाख रुपये तक गधे या खच्चर मिल जाते हैं. वैसे तो यूपी के चित्रकूट, हापुड़ और बलिया समेत कई जिलों में भी गधे और खच्चरों का मेला लगता है, लेकिन बाराबंकी के देवां में लगने वाले इस मेले का अपना अलग ही महत्व है. गधे खरीदने और बेचने वालों का कहना है कि वे यहां से कभी निराश नहीं लौटते.


कब लगता है यह मेलाः 'जो रब है वही राम' का संदेश देकर सभी मजहबों के लोगों को एक धागे में पिरोने वाले मशहूर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में हर साल कार्तिक मास में दीवाली से पहले यहां मेला लगता है. दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में खान-पान, लकड़ी, लोहे और चीनी मिट्टी के सामानों वाली तमाम दुकानों के अलावा खास तौर पर पशु बाजार, घोड़ा बाजार और गधा बाजार भी लगती है. तमाम लोग तो इस मेले में सिर्फ खच्चर या गधे खरीदने और बेचने ही आते हैं.

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यूपी के बड़े पशु मेलों में है शुमार. (photo credit: etv bharat gfx)

अच्छे गधों की पहचानः गधा घोड़े की ही प्रजाति की एक उपजाति है. साइज में यह घोड़े से छोटा होता है, लेकिन कान बड़े होते हैं.जबकि खच्चर ,घोड़ी और गधे के क्रॉस से पैदा होते हैं.इनके सर पर घोड़ों की तुलना में बाल कम होते हैं और इनके खुर छोटे होते हैं. चाल और मजबूती का अंदाजा लगाकर ही खरीददारों द्वारा इनकी कीमतें तय की जाती हैं. नर खच्चर या गधे की कीमत कम होती है जबकि मादा गधे और खच्चर महंगे बिकते हैं. इनकी कीमत 30 हजार रुपये से लगाकर 03 लाख रुपये तक होती है.

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मेले में दूर-दूर से आते हैं खरीदार. (photo credit: etv bharat)



गधा पालना मेहनत का कामः गधा और खच्चर पालने के शौकीन बताते हैं कि गधे पालना बहुत ही मेहनत का काम है. इनकी जमीन में लोटने की खास आदत के चलते बड़ी जगह होनी चाहिए,चारागाह होनी चाहिए. ठंडक में इनके खान पान पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है.

गधों के सौदागार ने दी यह जानकारी. (video credit: etv bharat)


बोझा ढोने में होता है उपयोगः गधों या खच्चर का इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए किया जाता है. ईंट भट्ठों पर इनका प्रयोग तो बहुत ज्यादा होता है.कुछ इलाकों में मिट्टी,बालू और मौरंग भी ढोई जाती है.खच्चरों का प्रयोग खास तौर पर पहाड़ों पर चढ़ाई के लिए सवारी के रूप में किया जाता है. ये ऐसे पशु हैं जहां गाड़ियां नही पहुंच सकती ये बोझा लेकर आसानी से पहुंच जाते हैं.

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प्रदेश भर में आकर्षण का केंद्र है यह अनोखा मेला. (photo credit: etv bharat)



इस बार निराश हैं व्यापारीः पिछले कई वर्षों से मेले में अपने खच्चर बेचने आ रहे गधा पालकों में इस बार खासी निराशा है. दरअसल इनका कहना है कि मेले में अब वसूली ज्यादा होने लगी है. लिखाई के नाम पर महंगी रसीद, जमीन की महंगाई और गेट पर लगने वाले महंगे भाड़े से व्यापारी निराश हैं. जबकि सुविधाएं कम है.गधा एक ऐसा पशु है जो बहुत ही सीधा सादा होता है. अपने साथ होने वाले उत्पीड़न पर भी यह चुप रहता है और शायद यही वजह है कि इसके इस गुण को लेकर ही लोग अक्सर कुछ लोगों को गधा बोल देते हैं. भले ही इसको लेकर मजाक बनाया जाता हो, लेकिन अपने काम के चलते यह हम सबके प्यार का हकदार जरूर है.

ये भी पढ़ेंः क्रिकेट के फलक पर सितारा बनकर चमकी ताजनगरी की 7 बेटियां, महिला टी-20 ट्राफी में दिखाएंगी जलवा

ये भी पढ़ेंः कंफ्यूजन दूर; 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी दीपावली, काशी के ज्योतिषाचार्यों का ऐलान

बाराबंकीः यूं तो आपने मध्यप्रदेश के सतना और यूपी के चित्रकूट में लगने वाले गधा मेले के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि यूपी के बाराबंकी में भी गधा मेला लगता है. जी हां यहां के देवां में गधों और खच्चरों का मेला लगता है. हर साल कार्तिक के महीने में लगने वाले इस मेले में दूरदराज से लोग बेहतरीन नस्ल के खच्चर और गधे खरीदने और बेचने आते हैं.


देवां मेला का गधा और खच्चर मेला: यह मेला पिछले कई दशकों से लगने वाले इस मेले में दूरदराज से लोग गधे और खच्चर खरीदने और बेचने आते हैं. यहां 30 हजार रुपये से लगाकर 03 लाख रुपये तक गधे या खच्चर मिल जाते हैं. वैसे तो यूपी के चित्रकूट, हापुड़ और बलिया समेत कई जिलों में भी गधे और खच्चरों का मेला लगता है, लेकिन बाराबंकी के देवां में लगने वाले इस मेले का अपना अलग ही महत्व है. गधे खरीदने और बेचने वालों का कहना है कि वे यहां से कभी निराश नहीं लौटते.


कब लगता है यह मेलाः 'जो रब है वही राम' का संदेश देकर सभी मजहबों के लोगों को एक धागे में पिरोने वाले मशहूर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में हर साल कार्तिक मास में दीवाली से पहले यहां मेला लगता है. दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में खान-पान, लकड़ी, लोहे और चीनी मिट्टी के सामानों वाली तमाम दुकानों के अलावा खास तौर पर पशु बाजार, घोड़ा बाजार और गधा बाजार भी लगती है. तमाम लोग तो इस मेले में सिर्फ खच्चर या गधे खरीदने और बेचने ही आते हैं.

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यूपी के बड़े पशु मेलों में है शुमार. (photo credit: etv bharat gfx)

अच्छे गधों की पहचानः गधा घोड़े की ही प्रजाति की एक उपजाति है. साइज में यह घोड़े से छोटा होता है, लेकिन कान बड़े होते हैं.जबकि खच्चर ,घोड़ी और गधे के क्रॉस से पैदा होते हैं.इनके सर पर घोड़ों की तुलना में बाल कम होते हैं और इनके खुर छोटे होते हैं. चाल और मजबूती का अंदाजा लगाकर ही खरीददारों द्वारा इनकी कीमतें तय की जाती हैं. नर खच्चर या गधे की कीमत कम होती है जबकि मादा गधे और खच्चर महंगे बिकते हैं. इनकी कीमत 30 हजार रुपये से लगाकर 03 लाख रुपये तक होती है.

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मेले में दूर-दूर से आते हैं खरीदार. (photo credit: etv bharat)



गधा पालना मेहनत का कामः गधा और खच्चर पालने के शौकीन बताते हैं कि गधे पालना बहुत ही मेहनत का काम है. इनकी जमीन में लोटने की खास आदत के चलते बड़ी जगह होनी चाहिए,चारागाह होनी चाहिए. ठंडक में इनके खान पान पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है.

गधों के सौदागार ने दी यह जानकारी. (video credit: etv bharat)


बोझा ढोने में होता है उपयोगः गधों या खच्चर का इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए किया जाता है. ईंट भट्ठों पर इनका प्रयोग तो बहुत ज्यादा होता है.कुछ इलाकों में मिट्टी,बालू और मौरंग भी ढोई जाती है.खच्चरों का प्रयोग खास तौर पर पहाड़ों पर चढ़ाई के लिए सवारी के रूप में किया जाता है. ये ऐसे पशु हैं जहां गाड़ियां नही पहुंच सकती ये बोझा लेकर आसानी से पहुंच जाते हैं.

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प्रदेश भर में आकर्षण का केंद्र है यह अनोखा मेला. (photo credit: etv bharat)



इस बार निराश हैं व्यापारीः पिछले कई वर्षों से मेले में अपने खच्चर बेचने आ रहे गधा पालकों में इस बार खासी निराशा है. दरअसल इनका कहना है कि मेले में अब वसूली ज्यादा होने लगी है. लिखाई के नाम पर महंगी रसीद, जमीन की महंगाई और गेट पर लगने वाले महंगे भाड़े से व्यापारी निराश हैं. जबकि सुविधाएं कम है.गधा एक ऐसा पशु है जो बहुत ही सीधा सादा होता है. अपने साथ होने वाले उत्पीड़न पर भी यह चुप रहता है और शायद यही वजह है कि इसके इस गुण को लेकर ही लोग अक्सर कुछ लोगों को गधा बोल देते हैं. भले ही इसको लेकर मजाक बनाया जाता हो, लेकिन अपने काम के चलते यह हम सबके प्यार का हकदार जरूर है.

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