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छत्तीसगढ़ में उत्सव की तरह है धान रोपाई, महिलाएं गीत गाकर करती हैं मॉनसून का स्वागत - Paddy transplantation like festival

Unique tradition of Chhattisgarh छत्तीसगढ़ अपने पारंपरिक उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है.लेकिन प्रदेश का असली उत्सव बारिश के मौसम में शुरु होता है.बारिश आने का मौसम आने पर खेतों में रोपा लगाने का काम शुरु होता है. जिसमें महिलाएं गीत गाकर काम करती हैं.Women welcome monsoon by singing songs

Unique tradition of Chhattisgarh
लोकगीत और रोपाई का संंबंध (ETV Bharat chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 10, 2024, 7:14 PM IST

सरगुजा : छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है. इस प्रदेश की अर्थ व्यवस्था और जीवन शैली का सबसे महत्वपूर्ण अंग है धान की फसल. जैसे ही मानसून आता है, छत्तीसगढ़ में किसान खेतों में पहुंचते हैं. खेतों को तैयार करने के बाद धान की रोपाई शुरु होती है. पुरुष खेतों में मेहनत वाला काम जैसे नागर चलाते हैं. वहीं महिलाएं रोपा लगाने का काम करती हैं. इस दौरान यदि आप छत्तीसगढ़ के खेतों के पास से गुजरेंगे तो आपको अद्भुत नजारा दिखाई और सुनाई देगा.

Unique tradition of Chhattisgarh
धान का रोपा लगाते वक्त महिलाएं गाती हैं गीत (ETV Bharat chhattisgarh)
महिलाएं गीत गाकर करती हैं रोपाई : खेतों में काम करती महिलाएं गीत गाती हुई मिलेंगी. काम करते हुए गीत गा रही महिलाओं को सुनना काफी रोमांच भरा होता है. वो जिस धुन में गीत गाती हैं उसी लय के साथ इनके हाथ और पैर भी मूवमेंट करते हैं.यानी काम भी होता रहता है और महिलाएं गीत के जरिए खुद को तरोताजा रखती हैं.छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में महिलाएं ददरिया गाती हैं.वहीं आदिवासी इलाकों जैसे उत्तर छत्तीसगढ़ में करमा, सुगा, डोमकछ जैसे लोक गीत लोकप्रिय हैं.
Unique tradition of Chhattisgar
छत्तीसगढ़ में उत्सव की तरह है धान रोपाई (ETV Bharat chhattisgarh)
क्यों महिलाएं गाती हैं गीत ?: सरगुजा के लोक सहित्यकार अजय चतुर्वेदी बताते हैं कि "जब धान का रोपा लगता है तो महिलाएं रोपा गीत गाती हैं.इसके साथ वो शैला, सुगा, डोमकछ, करमा जैसे गीत भी गाती हैं. जब रोपा लग जाता है तो महिलाएं गांव के मुखिया के घर जाती हैं और वहां वो बान बहुलिया गाती हैं. स्थानीय बोली में 'बान' का मतलब धान की नर्सरी और 'बहुलिया' का मतलब लहलहाना होता है. इस गीत के माध्यम से यह कामना की जाती है कि जो फसल हमने लगाई है वो लहलहाती रहे"
छत्तीसगढ़ में उत्सव की तरह है धान रोपाई (ETV Bharat chhattisgarh)

"महिलाएं गीत गाते हुए काम करती हैं इससे उन्हें थकावट नही होती है. आप देखेंगे कि वो कड़ी मेहनत करती हैं. लेकिन उनके चेहरों पर थकान नहीं दिखती है. यह मनोविज्ञान का हिस्सा है. गीत गाते हुए जब ये काम करती हैं तो किसी प्रकार का मानसिक तनाव उन्हें नही होता है"- अजय चतुर्वेदी, लोक साहित्यकार


कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया में महिलाओं को रोपा लगाते हुए एक गीत वायरल हुआ था. सरगुजिहा साहित्य के जानकार रंजीत सारथी के मुताबिक ये महिलाएं जो गीत गा रही हैं वो सरगुजा का सुगा गीत है. इस गीत में नारी व्यथा को गाती हैं. रोपा लगाते समय या अन्य उत्सव में भी महिलाएं सुगा गीत गाती हैं. ये रामपुर गांव की महिलाएं हैं. इस गीत का हिंदी भावार्थ है, भंवरी माने फेरी बाजार यानी घुम घुम के बाजार में खरीदी करते हैं. अपने सिंगार, टिकली, सिंदुर, चूड़ी, काजल के बारे में गीत गा रही हैं.

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सरगुजा : छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है. इस प्रदेश की अर्थ व्यवस्था और जीवन शैली का सबसे महत्वपूर्ण अंग है धान की फसल. जैसे ही मानसून आता है, छत्तीसगढ़ में किसान खेतों में पहुंचते हैं. खेतों को तैयार करने के बाद धान की रोपाई शुरु होती है. पुरुष खेतों में मेहनत वाला काम जैसे नागर चलाते हैं. वहीं महिलाएं रोपा लगाने का काम करती हैं. इस दौरान यदि आप छत्तीसगढ़ के खेतों के पास से गुजरेंगे तो आपको अद्भुत नजारा दिखाई और सुनाई देगा.

Unique tradition of Chhattisgarh
धान का रोपा लगाते वक्त महिलाएं गाती हैं गीत (ETV Bharat chhattisgarh)
महिलाएं गीत गाकर करती हैं रोपाई : खेतों में काम करती महिलाएं गीत गाती हुई मिलेंगी. काम करते हुए गीत गा रही महिलाओं को सुनना काफी रोमांच भरा होता है. वो जिस धुन में गीत गाती हैं उसी लय के साथ इनके हाथ और पैर भी मूवमेंट करते हैं.यानी काम भी होता रहता है और महिलाएं गीत के जरिए खुद को तरोताजा रखती हैं.छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में महिलाएं ददरिया गाती हैं.वहीं आदिवासी इलाकों जैसे उत्तर छत्तीसगढ़ में करमा, सुगा, डोमकछ जैसे लोक गीत लोकप्रिय हैं.
Unique tradition of Chhattisgar
छत्तीसगढ़ में उत्सव की तरह है धान रोपाई (ETV Bharat chhattisgarh)
क्यों महिलाएं गाती हैं गीत ?: सरगुजा के लोक सहित्यकार अजय चतुर्वेदी बताते हैं कि "जब धान का रोपा लगता है तो महिलाएं रोपा गीत गाती हैं.इसके साथ वो शैला, सुगा, डोमकछ, करमा जैसे गीत भी गाती हैं. जब रोपा लग जाता है तो महिलाएं गांव के मुखिया के घर जाती हैं और वहां वो बान बहुलिया गाती हैं. स्थानीय बोली में 'बान' का मतलब धान की नर्सरी और 'बहुलिया' का मतलब लहलहाना होता है. इस गीत के माध्यम से यह कामना की जाती है कि जो फसल हमने लगाई है वो लहलहाती रहे"
छत्तीसगढ़ में उत्सव की तरह है धान रोपाई (ETV Bharat chhattisgarh)

"महिलाएं गीत गाते हुए काम करती हैं इससे उन्हें थकावट नही होती है. आप देखेंगे कि वो कड़ी मेहनत करती हैं. लेकिन उनके चेहरों पर थकान नहीं दिखती है. यह मनोविज्ञान का हिस्सा है. गीत गाते हुए जब ये काम करती हैं तो किसी प्रकार का मानसिक तनाव उन्हें नही होता है"- अजय चतुर्वेदी, लोक साहित्यकार


कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया में महिलाओं को रोपा लगाते हुए एक गीत वायरल हुआ था. सरगुजिहा साहित्य के जानकार रंजीत सारथी के मुताबिक ये महिलाएं जो गीत गा रही हैं वो सरगुजा का सुगा गीत है. इस गीत में नारी व्यथा को गाती हैं. रोपा लगाते समय या अन्य उत्सव में भी महिलाएं सुगा गीत गाती हैं. ये रामपुर गांव की महिलाएं हैं. इस गीत का हिंदी भावार्थ है, भंवरी माने फेरी बाजार यानी घुम घुम के बाजार में खरीदी करते हैं. अपने सिंगार, टिकली, सिंदुर, चूड़ी, काजल के बारे में गीत गा रही हैं.

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