देहरादून: उत्तराखंड में शिक्षकों के तबादले हमेशा ही चर्चाओं में बने रहते हैं, इस दौरान कई शिक्षक अपनी परेशानियों और बीमारी को लेकर भी महानिदेशालय से लेकर शासन तक के भी चक्कर लगाते हैं. ऐसे में कई बार शैक्षणिक कार्य बाधित होते हैं. इससे सीधे छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ता है. कई शिक्षक गंभीर बीमारियों को लेकर विभाग में आवेदन करते हुए सुगम क्षेत्र में भेजे जाने का भी अनुरोध करते हैं. इन्हीं स्थितियों को देखते हुए शिक्षा विभाग ऐसे शिक्षकों को चिन्हित कर रहा है जो शैक्षणिक कार्य को कर पाने में अक्षम हैं. शिक्षा विभाग की तरफ से अब तक करीब 150 शिक्षकों को चिन्हित भी किया जा चुका है. खास बात यह है कि इन शिक्षकों को नोटिस देने की भी कार्रवाई शुरू कर दी गई है.
सरकार पहले भी काम करने में अक्षम कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की बात कहती रही है. इसके लिए बाकायदा शासन स्तर पर निदेशालयों को पत्र भी लिखे गए हैं. शिक्षा विभाग में ऐसे शिक्षकों को नोटिस के जरिए जवाब मांगने की कार्रवाई शुरू हुई है, उधर संतोषजनक जवाब नहीं मिलने और शिक्षक के शैक्षणिक कार्य में रुचि नहीं होने की स्थिति पाए जाने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्रवाई को भी आगे बढ़ाया जाएगा.
मजेदार बात यह है कि शिक्षा विभाग को कई शिक्षकों द्वारा इस सत्र में भी अपनी गंभीर बीमारी के प्रमाण पत्रों के साथ अनुरोध किया गया, लेकिन शिक्षकों के इन चिकित्सा प्रमाण पत्रों को चिकित्सा बोर्ड ने रद्द कर दिया है. शिक्षा विभाग के ऐसे 39 प्रवक्ता हैं जिनके प्रमाण पत्र को रद्द किये गये हैं. बताया गया है कि यह प्रमाण पत्र तबादला एक्ट के दायरे में नहीं आते. इसीलिए इन्हें रद्द कर दिया गया है.
दरअसल, शिक्षकों ने खुद को गंभीर रूप से बीमार बताया था लेकिन जब यह प्रमाण पत्र चिकित्सा बोर्ड तक पहुंचे तो उन्होंने इन्हें तबादला एक्ट में दिए गए मानक के हिसाब से सही नहीं पाया. वैसे हर साल अनुरोध के आधार पर सैकड़ो शिक्षक आवेदन करते हैं जिनका मेडिकल बोर्ड के माध्यम से परीक्षण करवाया जाता है. अब शिक्षा विभाग इस परीक्षण को कराए जाने के साथ ऐसे शिक्षकों को भी चिन्हित कर रहा है जो शैक्षणिक कार्य ही नहीं कर सकते हैं.