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दिल्ली हाईकोर्ट के UAPA ट्रिब्यूनल ने जमात-ए-इस्लामी पर लगे बैन को सही ठहराया - BAN ON JAMAAT E ISLAMI

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी संगठन खतरनाक गतिविधियों का हिस्सा रहा है, ऐसे में ये एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचा सकता है.

जमात-ए-इस्लामी पर लगा बैन सही-UAPA TRIBUNAL
जमात-ए-इस्लामी पर लगा बैन सही-UAPA TRIBUNAL (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 11, 2024, 11:22 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के यूएपीए ट्रिब्यूनल ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू-कश्मीर पर लगाए गए प्रतिबंध को सही करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी संगठन आंतरिक सुरक्षा और खतरनाक गतिविधियों में शामिल रहा है जिससे देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचने की संभावना है. केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू-कश्मीर पर फरवरी महीने में यूएपीए के प्रावधानों के तहत पांच वर्षों के लिए प्रतिबंध लगाया था. केंद्र सरकार ने इस संगठन के खिलाफ दर्ज 47 मामलों का हवाला दिया था. इन मामलों में टेरर फंडिंग जैसे मामले भी शामिल थे जिनकी एनआईए जांच कर रही है. प्रतिबंध को इस संगठन के सदस्य असद उल्लाह मीर ने यूएपीए ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी.

केंद्र सरकार ने लगाया था प्रतिबंध
केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि जमात-ए-इस्लामी द्वारा टेरर फंडिंग के लिए जुटाए गए धन का इस्तेमाल दूसरे आतंकी संगठनों हिजबुल मुजाहिद्दीन , लश्कर ए तैयबा और दूसरे आतंकी संगठनों के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं और उनके नेटवर्क की मदद करने के लिए किया गया. इस धन का इस्तेमाल हिंसक विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने, अशांति और सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने के लिए किया गया. जिसकी वजह पूरे देश में भय और असुरक्षा की भावना पैदा हुई.

जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ एनआईए ने एक मामला दर्ज किया था. जिसमें अल-हुदा एजुकेशनल ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमीर मोहम्मद शम्सी ने फरवरी 2019 में प्रतिबंध के बावजूद भी जमात-ए-इस्लामी के नाम से धन हासिल किया था. अल-हुदा एजुकेशनल ट्रस्ट का गठन जमात-ए-इस्लामी के शीर्ष नेतृत्व ने किया था. केंद्र सरकार के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी आतंकी संगठनों के संपर्क में है और लगातार जम्मू-कश्मीर और दूसरी जगहों पर आतंकवाद का समर्थन कर रहा है.

ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा था जमात-ए-इस्लामी एक लिखित संविधान वाला सामाजिक-धार्मिक संगठन है. यह शांतिपूर्ण संवैधानिक तरीके से काम करता है और उसका आतंकवादी संगठनों से कोई संबंध नहीं है और न ही वह किसी भी रुप में आतंकवाद का समर्थन करता है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1953 में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए की गई थी. इस संगठन ने हमेशा ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लिया है.

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ये भी पढ़ें- जमात-ए-इस्लामी जम्मू-कश्मीर पर बैन बरकरार, ट्रिब्यूनल ने गृह मंत्रालय के फैसले पर लगाई मुहर

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट के यूएपीए ट्रिब्यूनल ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू-कश्मीर पर लगाए गए प्रतिबंध को सही करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी संगठन आंतरिक सुरक्षा और खतरनाक गतिविधियों में शामिल रहा है जिससे देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचने की संभावना है. केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू-कश्मीर पर फरवरी महीने में यूएपीए के प्रावधानों के तहत पांच वर्षों के लिए प्रतिबंध लगाया था. केंद्र सरकार ने इस संगठन के खिलाफ दर्ज 47 मामलों का हवाला दिया था. इन मामलों में टेरर फंडिंग जैसे मामले भी शामिल थे जिनकी एनआईए जांच कर रही है. प्रतिबंध को इस संगठन के सदस्य असद उल्लाह मीर ने यूएपीए ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी.

केंद्र सरकार ने लगाया था प्रतिबंध
केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि जमात-ए-इस्लामी द्वारा टेरर फंडिंग के लिए जुटाए गए धन का इस्तेमाल दूसरे आतंकी संगठनों हिजबुल मुजाहिद्दीन , लश्कर ए तैयबा और दूसरे आतंकी संगठनों के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं और उनके नेटवर्क की मदद करने के लिए किया गया. इस धन का इस्तेमाल हिंसक विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने, अशांति और सांप्रदायिक विद्वेष पैदा करने के लिए किया गया. जिसकी वजह पूरे देश में भय और असुरक्षा की भावना पैदा हुई.

जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ एनआईए ने एक मामला दर्ज किया था. जिसमें अल-हुदा एजुकेशनल ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमीर मोहम्मद शम्सी ने फरवरी 2019 में प्रतिबंध के बावजूद भी जमात-ए-इस्लामी के नाम से धन हासिल किया था. अल-हुदा एजुकेशनल ट्रस्ट का गठन जमात-ए-इस्लामी के शीर्ष नेतृत्व ने किया था. केंद्र सरकार के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी आतंकी संगठनों के संपर्क में है और लगातार जम्मू-कश्मीर और दूसरी जगहों पर आतंकवाद का समर्थन कर रहा है.

ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा था जमात-ए-इस्लामी एक लिखित संविधान वाला सामाजिक-धार्मिक संगठन है. यह शांतिपूर्ण संवैधानिक तरीके से काम करता है और उसका आतंकवादी संगठनों से कोई संबंध नहीं है और न ही वह किसी भी रुप में आतंकवाद का समर्थन करता है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जमात-ए-इस्लामी की स्थापना 1953 में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए की गई थी. इस संगठन ने हमेशा ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा लिया है.

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