गिरिडीहः देशभर में भीषण गर्मी पड़ रही है. आसमान का पारा चढ़ा हुआ है. मनुष्यों के साथ साथ वन्य जीवों का हाल भी बेहाल है. भले ही मानसून ने दस्तक दी हो लेकिन अभी भरपूर पानी बरसने में वक्त लगेगा. इस भीषण गर्मी में प्राकृतिक जलस्रोत भाप बनकर सूख रहे हैं. ऐसे वक्त में आधुनिक मानव समाज सुविधाओं का प्रयोग कर पानी की कमी को दूर कर लेता है. एक समुदाय ऐसा भी है जिनपर प्रकृति की मार भले ही पड़ती है लेकिन उन्हें थोड़ी नेमत भी मिल जाती है. इसका बड़ा उदाहरण नजर आया गिरिडीह के बगोदर में.
गिरिडीह में भी गर्मी का प्रकोप जारी है. यहां का पारा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके कारण विभिन्न जलस्रोतों का स्तर नीचे चला जा रहा है. नदी, तालाब, कुआं, चापानल दम तोड़ रहा है. इससे ग्रामीणों के समक्ष गर्मी के साथ पानी की समस्या भी उत्पन्न होने लगी है. इस भीषण गर्मी के कारण तेजी से सूख रहे जलस्रोतों के बीच एक चुआं ऐसा है जो आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए वरदान साबित हो रहा है. खेत में स्थित चुआं इन ग्रामीणों की प्यास बुझा रहा है. महज से डेढ़ से दो फीट की गहराई में चुआं का पानी है, जिसे बगैर रस्सी-बाल्टी से निकाला जाता है.
बगोदर प्रखंड में जरमुन्ने पूर्वी पंचायत के कोल्हरिया में एक चुआं आदिवासी समुदाय के लिए वरदान साबित हो रहा है. चुआं में पानी लबालब भरा हुआ है और उसके पानी से यहां के आदिवासी परिवार की प्यास बुझ रही है. इतना ही नहीं कपड़ा और बर्तन धोने के साथ-साथ ग्रामीण इसी पानी से नहाते भी हैं. ये चुआं कितना पुराना है इसकी जानकारी ग्रामीणों को भी नहीं है.
ग्रामीण महेंद्र कोल्ह बताते हैं कि हमारे बाप-दादा के जमाने से यह चुआं स्थित है. ये चुआ गांव से लगभग तीन सौ मीटर की दूरी पर स्थित है. चुआं के आसपास के अधिकांश जलस्रोत सूख गये हैं जबकि कुछ सूखने की कगार पर है लेकिन इस चुआं में पानी अब भी लबालब भरा हुआ है. इस चुआं के पास स्थित तालाब भी सूखने लगा है, कुआं में भी नाम मात्र ही पानी है. वहीं चापानल और जल-नल योजना से पानी कभी-कभी निकल रहा है. ऐसे में खेत में स्थित यह चुआं इस भीषण गर्मी में ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहा है.
ग्रामीणों द्वारा बताया जाता है कि यहां डेढ़ से दो की संख्या में कोल्ह परिवार के लोग रहते हैं लेकिन बीच टोले में बसे ग्रामीणों को पानी की समस्या से जुझना पड़ता है और यही चुआं अब उनके लिए वरदान साबित हो रहा है. स्थानीय निवासी सह सामाजिक कार्यकर्ता महेश कुमार महतो का कहना है कि यह चुआं दशकों से आदिवासी परिवार के लिए वरदान साबित हो रहा है लेकिन इस चुआं के अस्तित्व को बचाने के लिए सरकारी तंत्र गंभीर नहीं है. चुआं पर न तो मुंडेर बना हुआ है और न ही जमीन समतल है. ऐसे में हादसा होने की संभावना बनी रहती है.
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