लोहरदगा: होली के साथ परंपरा का अटूट संबंध है. होली एक ऐसा त्योहार है, जो संस्कृति, सभ्यता और परंपरा की तस्वीर माना जाता है. लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड के बेठठ गांव में 400 सालों से राधा-कृष्ण के साथ पारंपरिक होली खेली जा रही है. यहां होली की शुरुआत ही भगवान कृष्ण और राधा के साथ गुलाल खेल कर की जाती है. जब तक राधा और कृष्णा को गुलाल ना लगाई जाए, तब तक होली अपूर्ण है. जानिए इसके पीछे की कहानी क्या है.
राधा-कृष्ण के बिना होली अधूरी
दक्षिणी छोटानागपुर में जमींदार परिवारों के यहां ठाकुरबाड़ी मंदिर स्थित है. अमूमन सभी क्षेत्रों में जहां पर ठाकुर और चौहान परिवार रहते हैं, वहां पर ठाकुरबाड़ी होती है. चौहान परिवारों के यहां बिना ठाकुरबाड़ी में पूजा-अर्चना के दिन की शुरुआत नहीं हो सकती. साल के सभी प्रमुख त्योहारों में यहां पर पूजा-अर्चना होती है. साल के 365 दिन यहां पर पूजा-अर्चना की जाती है.
लोहरदगा जिला के किस्को प्रखंड के बेठठ गांव में स्थित ठाकुरबाड़ी मंदिर में भी होली की परंपरा एक अनूठी परंपरा है. यहां पर डोल पूजा का आयोजन होता है. भगवान कृष्ण और राधा के संग होली खेली जाती है. जब तक राधा और कृष्ण को रंग और गुलाल ना लगाया जाए, तब तक होली अधूरी है. दिन के पहले पहर में भले ही कितना भी रंग खेला जाए, पर दिन के दूसरे पहर में गुलाल के बिना रंग पूरा नहीं होता या कहे की रंगोत्सव पूरा नहीं होता. यहां सबसे पहले राधा और कृष्ण को रंग और गुलाल लगाया जाता है. पुरोहित पूजा अर्चना करते हैं. ठाकुरबारी मंदिर से राधा और कृष्ण को लाकर डाल पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है. उसके बाद होली की परंपरा पूरी की जाती है. लगभग 400 सालों से यह परंपरा निभाई जा रही है. आज भी अनवरत रूप से हर साल परंपरा का निर्माण होता है.
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