ETV Bharat / state

विलुप्त होने की कगार पर है धान निकालने का यह परंपरागत तरीका, जानिए बिना मशीन कैसे कूटा जाता है धान - TRADITIONAL FARMING METHODS

कृषि के क्षेत्र में बहुत से बदलाव देखने को मिलते हैं, मगर हजारीबाग में आज भी लोग परंपरागत तरीके से खेती करते हैं.

TRADITIONAL FARMING METHODS
हजारीबाग में आज भी परंपरागत तरीके से होती है खेती (Etv Bharat)
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 1, 2025, 12:51 PM IST

हजारीबाग: बदलते जमाने ने जीवन में कई बदलाव लाए हैं. खेती के क्षेत्र में भी भूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं. अभी भी सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में परंपरागत तरीके से खेती करने का तरीका दिखता है जो बेहद खास होता है. ईटीवी भारत आज आपको धान कूटने का वह तरीका दिखाने जा रहा है जो लगभग विलुप्त हो चुका है.

यह तस्वीर देखकर आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि आखिर जानवर चारों ओर क्यों घूम रहा है. उसके पैरों के नीचे धान काट कर क्यों रखा गया हैं. साथ में यह भी सोच रहे होंगे कि एक व्यक्ति भी उसी जानवर के पीछे-पीछे घूम रहा है.

हजारीबाग में आज भी परंपरागत तरीके से होती है खेती (Etv Bharat)

दरअसल यह धान कूटने का परंपरागत तरीका है. जब मशीन नहीं थी तो धान इसी तरह से कूटा जाता था. खेत से धान काट कर जमीन में फैला दिया जाता था और जानवर उस पर चला करता था. इस विधि से धान अलग किया जाता था जिसके बाद किसान पुवाल हटा लेते थे और धान अलग रख लेते थे. स्थानीय भाषा में इसे खोआ मेसाई कहा जाता है.

इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता था. समय बदलता चला गया इसकी जगह थ्रेशर मशीन ने अपनी जगह बना ली. जो महज कुछ घंटे में सैकड़ों किलो धान को अलग कर देता है. इसके बावजूद अभी भी सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में यही पुराना तरीका दिखता है. किसान भी कहते हैं कि यह परंपरागत तरीका है. उनका यह भी कहना है कि इस तरह से चावल निकालने से उसकी गुणवत्ता कम नहीं होती है. गांव में थ्रेशर मशीन नहीं होने के कारण किसान इस तरह से धान निकालने को बेबस हैं.

धान निकालने का यह परंपरागत तरीका अब विलुप्त हो रहा है. कुछ सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में अभी भी जानवर की मदद से धान अलग करते हैं. कुछ जगह शौक से तो कुछ जगह मजबूरी के कारण यह नजारा देखने को मिलता है.

ये भी पढ़ें:

झारखंड में बढ़ी धान खरीद की रफ्तार, बावजूद जानिए क्यों किसान नहीं बेच पा रहे धान

गढ़वा में 25 प्रतिशत ही धान खरीदारी हुई, सही दाम नहीं मिलने से किसान नाराज - PADDY PROCUREMENT IN GARHWA

देसी जुगाड़ से ग्रामीण कर रहे खेतों की सिंचाई, साल के आठ महीने उपलब्ध रहता है पानी - IRRIGATION WITH INDIGENOUS JUGAAD

हजारीबाग: बदलते जमाने ने जीवन में कई बदलाव लाए हैं. खेती के क्षेत्र में भी भूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं. अभी भी सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में परंपरागत तरीके से खेती करने का तरीका दिखता है जो बेहद खास होता है. ईटीवी भारत आज आपको धान कूटने का वह तरीका दिखाने जा रहा है जो लगभग विलुप्त हो चुका है.

यह तस्वीर देखकर आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि आखिर जानवर चारों ओर क्यों घूम रहा है. उसके पैरों के नीचे धान काट कर क्यों रखा गया हैं. साथ में यह भी सोच रहे होंगे कि एक व्यक्ति भी उसी जानवर के पीछे-पीछे घूम रहा है.

हजारीबाग में आज भी परंपरागत तरीके से होती है खेती (Etv Bharat)

दरअसल यह धान कूटने का परंपरागत तरीका है. जब मशीन नहीं थी तो धान इसी तरह से कूटा जाता था. खेत से धान काट कर जमीन में फैला दिया जाता था और जानवर उस पर चला करता था. इस विधि से धान अलग किया जाता था जिसके बाद किसान पुवाल हटा लेते थे और धान अलग रख लेते थे. स्थानीय भाषा में इसे खोआ मेसाई कहा जाता है.

इस प्रक्रिया में बहुत समय लगता था. समय बदलता चला गया इसकी जगह थ्रेशर मशीन ने अपनी जगह बना ली. जो महज कुछ घंटे में सैकड़ों किलो धान को अलग कर देता है. इसके बावजूद अभी भी सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में यही पुराना तरीका दिखता है. किसान भी कहते हैं कि यह परंपरागत तरीका है. उनका यह भी कहना है कि इस तरह से चावल निकालने से उसकी गुणवत्ता कम नहीं होती है. गांव में थ्रेशर मशीन नहीं होने के कारण किसान इस तरह से धान निकालने को बेबस हैं.

धान निकालने का यह परंपरागत तरीका अब विलुप्त हो रहा है. कुछ सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में अभी भी जानवर की मदद से धान अलग करते हैं. कुछ जगह शौक से तो कुछ जगह मजबूरी के कारण यह नजारा देखने को मिलता है.

ये भी पढ़ें:

झारखंड में बढ़ी धान खरीद की रफ्तार, बावजूद जानिए क्यों किसान नहीं बेच पा रहे धान

गढ़वा में 25 प्रतिशत ही धान खरीदारी हुई, सही दाम नहीं मिलने से किसान नाराज - PADDY PROCUREMENT IN GARHWA

देसी जुगाड़ से ग्रामीण कर रहे खेतों की सिंचाई, साल के आठ महीने उपलब्ध रहता है पानी - IRRIGATION WITH INDIGENOUS JUGAAD

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.