जमशेदपुर: 21वीं में आज हम डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं. हम चांद और मंगल पर जाने की भी सोच रहे हैं. लेकिन वहीं दूसरी तरफ देश में कुछ ऐसी पुरानी परंपराएं भी हैं जो अंधविश्वास से जुड़ी हुई हैं. ये परंपरा मासूम बच्चों पर की जाने वाली क्रूरता से जुड़ी हुई है.
झारखंड में आज भी कई इलाकों में चीख परंपरा चली आ रही है. जमशेदपुर से सटे ग्रामीण इलाके में. आदिवासी समाज मकर पर्व के दूसरे दिन को अखंड जात्रा कहते हैं, इस दिन गांव में सूरज उगने से पहले ग्रामीण महिलाएं अपने छोटे बच्चों को लेकर पुरोहित के पास जाती हैं जो इन नन्हे मासूमों की पेट में नाभि के चारों तरफ गर्म तांबे की सीक से दागता है, वह भी एक बार नहीं बल्कि पांच बार. इन बच्चों में कई की उम्र तो 1 महीने से भी कम होती है.
क्यों दागते हैं छोटे बच्चों को
गर्म सीक से दागे जाने से बच्चों की चीख गूंजने लगती है. इस परंपरा को आदिवासी चिड़ी दाग की परंपरा करते हैं. बच्चों को गर्म सीक के दगवाने के लिए कई महिलाएं पुरोहित के घर के आंगन में खड़ी होकर अपनी बारी का इंतजार करती हैं. पुरोहित का कहना है कि समाज की परंपरा है जो वर्षों से चली आ रही है. पुरोहित का कहना है कि मकर में कई तरह के व्यंजन खाने के बाद पेट दर्द या तबीयत खराब हो जाता है. चिड़ी दाग करने से पेट से संबंधित बिमारी नहीं होती. पुरोहित का कहना है कि दागने से पहले ग्राम देवता की आराधना कर यह काम करते हैं. हालांकि पुरोहित यह भी कहते हैं कि आज मेडिकल साइंस काफी उन्नत कर गया है, ऐसे में चिड़ी दाग लेने वालों की संख्या कम हो रही है.
क्या कहते हैं समाजसेवी
गांव के समाजसेवी ईश्वर सोरेन इस परम्परा को आदिकाल से देखते आ रहे हैं, लेकिन वो अब इसे नकारते हैं उनका कहना है अब समाज के लोग जागरूक हो रहे हैं. अब लोग इस पर कम ही लोग विश्वास करते हैं.
वहीं, कई ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें आज भी अपनी इस पुरानी दर्द भरी परंपरा पर विश्वास है. महिलाएं कहती हैं कि बच्चा रोता है लेकिन फिर वो शांत भी हो जाता है. चिड़ी दाग से अब पेट दर्द नहीं होगा.
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