रायपुर : हम रोजाना कई तरह की चीजें खाते हैं.कुछ लोगों को तीखा पसंद होता है तो कुछ को स्वीट.वहीं कई लोग घर के खाने के बजाए जंक फूड पर ज्यादा फोकस करते हैं. हम रोजाना सुबह उठकर एक्सरसाइज करते हैं, हेल्दी फूड लेते हैं.समय पर डॉक्टर्स से अपना चेकअप करवाते हैं.फिर भी कई दफा आपने देखा होगा कि इन सब चीजों के बावजूद हम में से कई लोगों को गंभीर बीमारियां हो जाती है.कई बार तो समय पर इलाज नहीं मिलने पर कई लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं.भारत की यदि बात करें तो यहां भी कई लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हैं.उन्हीं बीमारियों से एक है कैंसर. कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है.हर साल कैंसर को लेकर कई तरह के शोध किए जाते हैं.इन्हीं शोध में से एक शोध में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है.खुलासा ये है कि हमारी एक अच्छी आदत हमें कैंसर जैसे बीमारी के करीब लाती है.तो आईए जानते हैं ये अच्छी आदत क्या है.
अच्छी आदत कहीं बन ना जाए मौत का कारण : हम रोजाना सुबह उठकर सबसे पहले ब्रश करते हैं.ब्रश करने के लिए हम कई तरह के महंगे टूथपेस्ट का इस्तेमाल करते हैं.फिर नहाने के लिए भी शैंपू का इस्तेमाल अक्सर सभी घरों में होता है.लेकिन हम जिस टूथपेस्ट और शैंपू का इस्तेमाल करते हैं,उनमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो हमारे शरीर में मौजूद कैंसर फैलाने वाले फैक्टर को एक्टिव कर देता है.अब आप सोच रहे होंगे ऐसा हो नहीं सकता.लेकिन हम सिर्फ हवा में बात नहीं कर रहे हैं.इस बारे में दुनिया भर में शोध हो चुके हैं.ताजा शोध की बात करें तो टोरंटो यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में बताया गया है कि टूथपेस्ट में ट्राइक्लोसन कंपाउंड पाया जाता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. ये ऐसा प्रोडक्ट है जो शरीर में कैंसर फैलाने वाले फैक्टर को एक्टिव कर देता है. कई टूथपेस्ट में ट्राइक्लोसन की मात्रा काफी ज्यादा पाई गई है.
भारत में भी हो चुका है शोध : इस बारे में भारत में भी शोध हो चुका है. जिसमें पाया गया है कि इंडिया में इस्तेमाल होने वाले टूथपेस्ट, साबुन और डिओडोरेंट में ट्राइक्लोसिन की मात्रा मानक स्तर से ज्यादा है.वहीं विशेषज्ञों की माने तो मानक स्तर के भीतर भी ट्राइक्लोसन का उपयोग नियमित रूप से हो तो इसका हेल्थ पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. ये शोध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), हैदराबाद के शोधकर्ताओं ने किया है. रिसर्चर्स के मुताबिक भारत में ट्राइक्लोसन के उपयोग की स्वीकृत सीमा 0.3 प्रतिशत है. ट्राइक्लोसिन को लेकर शोध पत्रिका केमोस्फीयर में प्रकाशित हो चुकी है.
क्या होता है ट्राइक्लोसन : ट्राइक्लोसन, बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीव प्रतिरोधी एजेंट है, जो नर्वस सिस्टम को इफेक्ट करता है. ये रसायन बर्तनों और कपड़ों में भी पाया जाता है. 1960 के दशक में इसका शुरुआती इस्तेमाल मेडिकल फील्ड तक ही सीमित था. मौजूदा समय में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने ट्राइक्लोसन के खिलाफ उठने वाले सवालों की समीक्षा के बाद इसके उपयोग पर आंशिक प्रतिबंध लगाया था. वहीं भारत की बात करें तो ट्राइक्लोसन आधारित उत्पादों पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं है.इसलिए यदि आप भारत में हैं और आप ऐसे किसी उत्पाद का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसमें ट्राइक्लोसन है तो भविष्य में आपको परेशानी हो सकती है.
''किसी भी तरह का केमिकल जो चाहे खाद्य पदार्थों में हो या फिर किसी उत्पाद में मिला हो.लंबे समय तक लगातार इस्तेमाल करने पर शरीर के अंदर दुष्प्रभाव डालती है.ट्राइक्लोसिन से आंतों में सूजन होने का खतरा बढ़ता है,ये सूजन आगे चलकर कैंसर जैसी घातक बीमारी का रूप ले सकती है.''- डॉ राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, रायपुर IMA
क्या करता है ट्राइक्लोसन : ट्राइक्लोसन को लेकर चूहों में शोध किया गया. स्वस्थ्य चूहों को ट्राइक्लोसन की नियमित मात्रा कुछ महीनों तक दी गई. वैज्ञानिकों ने इसके बाद चूहों का अध्ययन किया तो पाया कि ट्राइक्लोसन के इस्तेमाल के कारण चूहों की आंतों में सूजन आ गई है. ये सूजन आगे चलकर कैंसर का रूप लेती है.शोध में ये भी पाया गया कि ट्राइक्लोसन आंतों में मौजूद गुड बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है.इसके बाद आंतों में गंदगी और इंफेक्शन होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
क्या है भारत में कैंसर की रिपोर्ट : ICMR के मुताबिक इंडिया के अंदर 2022 में कैंसर के 14 लाख 60 हजार केस थे, जो 2025 तक बढ़कर 15 लाख 70 हजार होने की संभावना है. 2022 में कैंसर से हुई मौतों की बात करें तो ये 8 लाख से ज्यादा हैं.चिंता करने वाली बात ये है कि ये आंकड़ा जागरुकता फैलाने के बाद भी बढ़ता जा रहा है.इसके अलावा कैंसर का मुख्य कारण खराब खानपान, वायु प्रदूषण और फिजिकल एक्टिविटी का कम होना भी माना गया है.