भोपाल। आपको पता है जंगल पर मौज के लिए निकले आप जब लापरवाही में अपने साथ लाया हुआ कचरा वहीं फेंक आते हैं, तो वो वन्य प्राणियों की जान पर आ सकता है. वन्य प्राणियों के लिए ये प्लास्टिक नया खतरा बनता जा रहा है. टाइगर रिजर्व के इलाके भी इससे अछूते नहीं है. क्लीन वॉटर बॉडी जहां पर टाइगर से लेकर हिरण तक अपनी प्यास बुझाते हैं. वहां पर इन दिनों प्लास्टिक का कचरा साफ देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में दिखाई दे रहा है कि टाइगर रिजर्व में प्रतिबंधित होने के बावजूद कैसे प्लास्टिक की बोतल वॉटर बॉडी से होते हुए जंगल के राजा के मुंह तक पहुंच गई. वन्य प्राणी विशेषज्ञ की मानें तो इसी लापरवाही में भोपाल के वन विहार में एक चीतल के पेट से सात किलो प्लास्टिक निकल चुका है.
मुंह में शिकार नहीं प्लास्टिक की बोतल
इन दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर खूब शेयर किया जा रहा है. इसमें एक टाइगर प्लास्टिक बॉटर को पानी से अपने मुंह में दबाकर निकालता है और दूर ले जाकर फेंक आता है. मदमस्त चाल में बाघ चलता हुआ दिख रहा है. ये दृश्य ऐसा है, जैसे टाइगर कैमरे पर पोज देते हुए वीडियो शूट करा रहा है. उसे मालूम है कि उसका यह वीडियो खूब वायरल होगा. शहंशाह की तरह वो अपने मुंह में बॉटल दबाकर निकल जाता है. इस वीडियो को लेकर लोगों का कहना है कि 'अब जंगल का बेताज बादशाह सफाइकर्मी की भूमिका में आ गया है. देखें कैसे वो जंगल में प्रदूषण और गंदगी फैलाने वाली वस्तुओं को हटा रहा है.'
लोगों का यह भी कहना है कि 'भले ही यह वीडियो दिलचस्प है. मगर यह जंगल के राजा और वाइल्ड लाइफ के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. वन्य जीव प्रेमियों का सवाल है कि क्या हम अपने ईको सिस्टम को कचरे के जरिए खराब नहीं कर रहे? इस वीडियो को देखने के बाद वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट का कहना है कि, "टाइगर ने मुंह में बॉटल तो दबा लिया, उसे फेंक भी दिया, मगर क्या वो इसे डिस्पोज करने में सक्षम है. इंसान को इस तरह से टाइगर जोन या वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के साथ खिलवाड़ करने का कोई हक नहीं है.'
प्लास्टिक किसी वन्य पशु के लिए स्लो डेथ की तरह
वन्य प्राणी विशेषज्ञ सुदेश बाघमारे बताते हैं 'प्लास्टिक का क्वांटम जैसे-जैसे पेट में बढ़ता जाता है, किसी भी वन्य प्राणी को ये फॉल्स फीलिंग आती है कि उनका पेट भरा हुआ है. प्लास्टिक परमानेंट पेट में रुक जाता है, सो अलग. ऐसे कई केस सामने आए हैं. केस स्टडी हुई है. वन विहार में एक चीतल के पेट से सात किलो पॉलिथिन निकला था. वो खाना नहीं खाता था वो, क्योंकि उसे लगता था पेट भरा हुआ है और आखिर में इसी वजह से हुए कुपोषण से उसकी मौत हो गई. कई बार ये प्लास्टिक की बोतल गला चोक कर देने का काम भी कर सकती है, लेकिन हैरत की बात है कि प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध होने के बावजूद लोगों को समझ में नहीं आता. अब भी जंगल लोग मौज के लिए जाते हैं. ये परवाह किए बिना कि उनकी जरा सी चूक वन्य प्राणी के लिए कैसे मुसीबत बन सकती है.'
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इधर बढ़ता जा रहा है प्लास्टिक का पहाड़
उधर हमारी जिंदगी में प्लास्टिक तेजी से बढ़ रहा है. एक औसत के मुताबिक भारत में 30 हजार प्लास्टिक उद्योगों की बदौलत करीब चालीस लाख लोगों को रोजगार मिलता है. एक जानकारी के मुताबिक 1990 तक 0.9 मिलियन टन प्लास्टिक उपयोग करता था. भारत में जो 2018 में बढ़कर 18.45 मिलियन तक पहुंच गया है. भारत में हर साल केवल प्लास्टिक की बदौलत. 5.1 लाख करोड़ रुपये का रोजगार पैदा होता है.