गोड्डा: संथाल परगना की तीनों लोकसभा सीट राजमहल, गोड्डा और दुमका में इस बार दिलचस्प मुकाबला दिख सकता है. हालांकि पार्टी के अंदर की कलह से दो निवर्तमान सांसद परेशान हैं. जीत की राह में अपने ही रोड़ा बन सकते हैं. इनसे निपटना सांसदों के लिए चुनौती होगी. इस संबंध में राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हेमचंद्र बताते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले तीनों सीटों से निवर्तमान सांसद अपनों से ही परेशान हैं. उनकी हालत सांप-छछूंदर वाली हो गई है. ना कुछ उगलते बनता है और ना ही निगलते बनता है. ऐसे में सवाल उठता है कि वो अपना दर्द सुनाए भी तो किसे सुनाएं.
राजमहल सांसद विजय हांसदा की जीत में रोड़ा बन सकते हैं लोबिन!
पत्राकर हेमचंद्र ने बताया कि सुरक्षित सीट राजमहल (एससी ) जहां के लगातार दो बार के सांसद झामुमो से विजय हांसदा हैं. उन्होंने 20014 और 2019 में जीत दर्ज की है. इस बार भी विजय हांसदा को फिर टिकट मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन उनके रास्ते का सबसे रोड़ा उनके ही पार्टी के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री लोबिन हेंब्रम बन गए हैं. लोबिन कई बार बयान दे चुके हैं कि इस बार विजय हांसदा हार जाएंगे. साथ ही यह भी कह चुके हैं कि अगर विजय हांसदा को फिर से टिकट दिया गया तो वे बगावत करेंगे. चर्चा है कि लोबिन अपने बेटे को राजमहल सीट से उतार कर विजय हांसदा की जीत को मुश्किल बना सकते हैं. साथ ही लोबिन अपनी ही सरकार के खिलाफ राजमहल लोकसभा क्षेत्र में पाकुड़ से लेकर राजमहल तक अन्याय यात्रा निकाल चुके हैं. पिछले दिन उन्होंने लोकसभा क्षेत्र के समर्थकों की बैठक भी बुलाई थी. इस मामले में विजय हांसदा का तो बयान नहीं आ रहा है, लेकिन उनके लिए मुश्किल जरूर खड़ी हो गई है.
गोड्डा सांसद निशिकांत और राज पालिवार में चल रहे व्यंग्यों के बाण!
वरिष्ठ पत्रकार हेमचंद्र ने कहते हैं कि गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की राह भी इस बार उतनी आसान नहीं होगी. हालांकि उन्होंने 2009, 2014 और 2019 में गोड्डा सीट से जीत दर्ज की थी. हर बार उनका मुकाबला फुरकान अंसारी या प्रदीप यादव से रहा था. इस बार इंडिया गठबंधन की ओर से अब तक प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की गई है. वहीं हाल के दिनों में गोड्डा लोकसभा के अंतर्गत आने वाले मधुपुर के पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री राज पालिवार के कांग्रेस में जाने खबर आई थी. कांग्रेस के मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट किया था जिसमें मांडू के भाजपा विधायक जेपी पटेल के साथ राज पालिवार के कांग्रेस में शामिल होने की बात कही गई थी. हालांकि यह पोस्ट बाद में हटा लिया गया था. मामले में आठ घंटे बाद राज पालिवार का खंडन आया तो निशिकांत दुबे ने तंज कसते हुए कहा कि खंडन में इतनी देर क्यों लगी. इसके बाद राज पालिवार का जवाब आया कि जरूरी नहीं की में सांसद के हर बात का जवाब दूं. इसके बाद राज पालिवार ने लिखा कि उनकी छवि धूमिल हुई है तो सांसद ने लिखा कि पवन खेड़ा और केस करें और चुनाव आयोग में शिकायत करें. इसके बाद होली में भी दोनों नेताओं के तरफ से व्यंग्य बाण चलते रहे. पत्रकार हेमचंद्र कहते हैं कि राज पालिवार फिलहाल प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और मधुपुर इलाके में एक वर्ग में इनकी खास पकड़ है. अगर आपसी खटास का यही हाल रहा तो सांसद की जीत की राह में मुश्किल हो सकती है. लेकिन सवाल यह है कि अपनों से मिला दर्द कैसे और किसे बताया जाए.
सुनील सोरेन के मुंह से छीन गया निवाला!
राजनीति के जानकार हेमचंद्र आगे कहते हैं कि दुमका के निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन का दुख लग किस्म का है. उनके मुंह से मानो निवाला छीन गया हो. उन्हें टिकट देकर वापस ले लिया गया. उनका नाम पहली लिस्ट में था और फिर सीता सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा ने सांसद सुनील सोरेन का नाम काट कर सीता सोरेन को टिकट दे दिया. यही सुनील सोरेन चंद दिनों पहले घूम-घूम कर कहते थे कि उनका मुकाबला सोरेन परिवार से है. अब कह रहे हैं राष्ट्रीय नेतृत्व का निर्णय मान्य है. हालांकि सवाल अब भी दुमका में बरकरार है कि क्या भाभी सीता के सामने देवर हेमंत होंगे या फिर कोई झामुमो के बड़े पुराने दिग्गज नलिन सोरेन अथवा स्टीफेन मरांडी.
इस पूरे मसले पर झामुमो नेता सह केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य घनश्याम यादव ने कहा कि दुमका में अब सुनील सोरेन का क्या होगा यह तो वही जानें, क्योंकि उन्हें तो भाजपा ने सामने रोटी देकर छीन लिया. वहीं गोड्डा के विषय में कहा कि भाजपा के अंदर अपनों में ही घमासान है. जहां सांसद निशिकांत दुबे और राज पालिवार एक दूसरे पर जुबानी हमला बोल रहे हैं.
क्या कहते हैं राजनीति के जानकार
मामले पर राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार हेमचंद्र कहते हैं कि संथाल परगना के तीनों निवर्तमान सांसद अपनो से परेशान हैं. वे अपना दुखड़ा चुनाव के वक्त किसी से शेयर भी नहीं कर सकते हैं. यह उनकी राजनीतिक मजबूरी है, लेकिन इतना तो तय है राजमहल हो या फिर गोड्डा यहां के बड़े नेताओं की नाराजगी सांसद के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. वहीं दुमका में सुनील सोरेन को टिकट मिलना और फिर छीने जाना यह बर्दाश्त करना उनके लिए कितना सहज होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन भाजपा कार्यकर्ता सीता सोरेन को स्वीकार कर पाते हैं कि नहीं यह देखने वाली बात होगी.
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