बीकानेर : श्रावण मास भगवान शिव की आराधना का महीना माना जाता है. बीकानेर शहर की खास बात है कि यहां हर गली में एक मंदिर और खास तौर से शिवालय मिल जाएगा. सावन मास में हर शिव मंदिर में रुद्राभिषेक नित्य रूप से चलता है, लेकिन आज से 200 साल पहले बीकानेर रियासत की ओर से भी सावन मास में शिव पूजा के लिए पंडितों को बाकायदा एक तय राशि दी जाती थी.
150 रुपए तय की राशि : राजस्थान राज्य अभिलेखागार के निदेशक डॉ. नितिन गोयल कहते हैं कि आज से 200 साल पहले बीकानेर रियासत में श्रावण मास के 30 दिनों के हिसाब से 30 ब्राह्मणों को माला फेरने के लिए 5 रुपए प्रति ब्राह्मण एक महीना यानी की 30 ब्राह्मणों को 150 रुपए का भुगतान किया जाता था और इसका उल्लेख टांकडा की बही में मिलता है. वे कहते हैं कि ऐसी तीन अलग अलग वर्ष की बहियां आज भी अभिलेखागार में सुरक्षित हैं. गोयल कहते हैं कि गणेश चतुर्थी पर भी भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने के लिए राज दरबार की ओर से सोने की वस्तु भेंट की जाती थी और इसका जिक्र भी बही में मिलता है.
दान का महत्व : उन्होंने बताया कि इसके अलावा नमक और तिल का दान भी एक अनुपात में करने का जिक्र भी मिलता है, जिसमें 3 रुपए और 12 पैसा पूरे महीने में नमक के दान के लिए और इतना ही तिल के दान के लिए राज दरबार की ओर से दिया जाता था. इन सब के पीछे प्रजा और रियासत की सुख की कामना के साथ ही किसी भी दुख तकलीफ और अनिष्ट से बचाव की कामना होती थी.
अन्य रियासतों में भी जिक्र : गोयल कहते हैं कि बीकानेर के अलावा जोधपुर रियासत में भी इस तरह की परंपरा रही है. बीकानेर, जोधपुर ही नहीं बल्कि जयपुर और कोटा रियासत में भी इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान और आयोजन में रियासत की भूमिका रहती थी. हालांकि, वहां क्षेत्र विशेष के हिसाब से त्योहार बदल जाते थे. गोयल कहते हैं कि जयपुर रियासत में गणगौर और कोटा रियासत में जन्माष्टमी के पर्व पर रियासत की ओर इस तरह की परंपरा का जिक्र दस्तावेजों में मिलता है.