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ओपेरा शैली की एक मात्र नाट्यशाला की हो रही है उपेक्षा, पर्यटन समिति ने की खोलने की मांग - bhawani natyshala jhalawar - BHAWANI NATYSHALA JHALAWAR

झालावाड़ की ऐतिहासिक भवानी नाट्यशाला प्रशासन कीअनदेखी की शिकार हो रही है. इस नाट्यशाला का नियमित रखरखाव नहीं हो रहा. शहर की एक संस्था ने सरकार से इसे पर्यटकों के लिए खोलने की मांग की है.

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ओपेरा शैली की एक मात्र नाट्यशाला की हो रही है उपेक्षा (photo etv bharat jhalawar)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 16, 2024, 4:34 PM IST

ओपेरा शैली की एक मात्र नाट्यशाला की हो रही है उपेक्षा (video etv bharat jhalawar)

झालावाड़ः शहर के बीचोबीच स्थित गढ़ परिसर में ऐतिहासिक इमारत भवानी नाट्यशाला का सोमवार को 103वां स्थापना दिवस मनाया गया. इस अवसर पर पर्यटन विकास समिति के सदस्यों की ओर से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें समिति के सदस्यों ने पुरातत्व विभाग से इस ऐतिहासिक इमारत को देशी तथा विदेशी पर्यटकों के लिए खोलने और इसके बेहतर संरक्षण की मांग की.

समिति के अध्यक्ष ओम पाठक ने बताया कि वर्तमान में यह इमारत पुरातत्व विभाग के अधीन है. स्थापना के 100 वर्ष से ऊपर होने के बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर की पहचान बनाए रखने को लेकर पर्यटन विभाग व प्रशासन ने कोई खास प्रयास नहीं किए हैं. ये ऐतिहासिक इमारत दुर्दशा का शिकार हो रही है.

पढ़ें: अभिज्ञान शाकुंतलम् और हैमलेट जैसे विश्व प्रसिद्ध नाटकों का मंचन करने वाली नाट्यशाला अनदेखी का शिकार

ओपेरा शैली में निर्मित है नाट्य शाला: यह नाट्यशाला उत्तर भारत में ओपेरा शैली में निर्मित एक मात्र नाट्यशाला है. इसका वैभव देखते ही बनता है. ये नाट्यशाला 61 फीट लंबी, 48 फीट चौड़ी एवं 36 सुंदर बालकनियों पर बनी हुई है. इमारत में तिमंजिला प्रेक्षागृह है. यह 87 स्तम्भों पर टिकी है. इसका निर्माण यहां के जनप्रिय तथा कलाप्रेमी नरेश भवानीसिंह ने वर्ष 1921 में करवाया था. इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि यह नाट्यशाला कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की साक्षी रही है. इस स्थान का मुख्य आकर्षण इसकी अनूठी संरचना है. नाट्यशाला में सामने की ओर एक मंच बनाया गया था, जिसकी उंचाई कम रखी गई थी. इससे घोड़ों और रथों को आसानी से देखा जा सके. उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में ऐसे सिर्फ आठ नाट्यशालाएं हैं. उत्तर भारत में अकेली एकमात्र ओपेरा से निर्मित नाट्यशाला है. उन्होंने बताया कि यहां 'शाकुंतलम' और 'शेक्सपियर' जैसे नाटक प्रदर्शित किए गए हैं. इस नाट्यशाला का प्रयोग पारसी थिएटर के लिए भी किया गया. इतिहासकार शर्मा ने बताया कि जिन्हें कला में रुचि है, वे नाट्यशाला में जाकर बीते हुए युग को महसूस कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आज नाट्यशाला को संरक्षण की दरकार है. यहां की दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो रही है. कुछ कंगूरों के भी जीर्ण-शीर्ण होने से इनका मौलिक स्वरूप बिगड़ रहा है. नाट्यशाला को रंगाई पुताई की आवश्यकता है.

ओपेरा शैली की एक मात्र नाट्यशाला की हो रही है उपेक्षा (video etv bharat jhalawar)

झालावाड़ः शहर के बीचोबीच स्थित गढ़ परिसर में ऐतिहासिक इमारत भवानी नाट्यशाला का सोमवार को 103वां स्थापना दिवस मनाया गया. इस अवसर पर पर्यटन विकास समिति के सदस्यों की ओर से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें समिति के सदस्यों ने पुरातत्व विभाग से इस ऐतिहासिक इमारत को देशी तथा विदेशी पर्यटकों के लिए खोलने और इसके बेहतर संरक्षण की मांग की.

समिति के अध्यक्ष ओम पाठक ने बताया कि वर्तमान में यह इमारत पुरातत्व विभाग के अधीन है. स्थापना के 100 वर्ष से ऊपर होने के बावजूद इस ऐतिहासिक धरोहर की पहचान बनाए रखने को लेकर पर्यटन विभाग व प्रशासन ने कोई खास प्रयास नहीं किए हैं. ये ऐतिहासिक इमारत दुर्दशा का शिकार हो रही है.

पढ़ें: अभिज्ञान शाकुंतलम् और हैमलेट जैसे विश्व प्रसिद्ध नाटकों का मंचन करने वाली नाट्यशाला अनदेखी का शिकार

ओपेरा शैली में निर्मित है नाट्य शाला: यह नाट्यशाला उत्तर भारत में ओपेरा शैली में निर्मित एक मात्र नाट्यशाला है. इसका वैभव देखते ही बनता है. ये नाट्यशाला 61 फीट लंबी, 48 फीट चौड़ी एवं 36 सुंदर बालकनियों पर बनी हुई है. इमारत में तिमंजिला प्रेक्षागृह है. यह 87 स्तम्भों पर टिकी है. इसका निर्माण यहां के जनप्रिय तथा कलाप्रेमी नरेश भवानीसिंह ने वर्ष 1921 में करवाया था. इतिहासकार ललित शर्मा ने बताया कि यह नाट्यशाला कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की साक्षी रही है. इस स्थान का मुख्य आकर्षण इसकी अनूठी संरचना है. नाट्यशाला में सामने की ओर एक मंच बनाया गया था, जिसकी उंचाई कम रखी गई थी. इससे घोड़ों और रथों को आसानी से देखा जा सके. उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में ऐसे सिर्फ आठ नाट्यशालाएं हैं. उत्तर भारत में अकेली एकमात्र ओपेरा से निर्मित नाट्यशाला है. उन्होंने बताया कि यहां 'शाकुंतलम' और 'शेक्सपियर' जैसे नाटक प्रदर्शित किए गए हैं. इस नाट्यशाला का प्रयोग पारसी थिएटर के लिए भी किया गया. इतिहासकार शर्मा ने बताया कि जिन्हें कला में रुचि है, वे नाट्यशाला में जाकर बीते हुए युग को महसूस कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि आज नाट्यशाला को संरक्षण की दरकार है. यहां की दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो रही है. कुछ कंगूरों के भी जीर्ण-शीर्ण होने से इनका मौलिक स्वरूप बिगड़ रहा है. नाट्यशाला को रंगाई पुताई की आवश्यकता है.

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