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RJD को शून्य से शिखर तक ले जाने की तेजस्वी के सामने चुनौती, क्या लालू के पुराने दौर को लौटा पाएंगे?

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 20, 2024, 8:35 PM IST

Updated : Mar 20, 2024, 9:56 PM IST

Tejashwi Yadav : 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में से 39 सीट पर जीत हासिल की थी. एक सीट कांग्रेस को किशनगंज के रूप में मिला था. राजद का खाता भी नहीं खुला था. इस बार तेजस्वी यादव के हाथ में कमान है. लालू प्रसाद यादव सपोर्ट कर रहे हैं. साथ ही राहुल गांधी और वामपंथी दल भी तेजस्वी के साथ हैं. एनडीए खेमे के कई बागी और नाराज नेता भी तेजस्वी का साथ दे सकते हैं. तेजस्वी को खुद को साबित करने का मौका है.

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लोकसभा चुनाव तेजस्वी के लिए चुनौती.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तिथियों की घोषणा हो गयी है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2004 में राजद ने 22 सीट जीती थी, तो कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. इस तरह से 25 सीटों पर लालू यादव के गठबंधन की जीत हुई थी. लेकिन, उसके बाद लालू यादव लोकसभा के किसी चुनाव में ना तो पार्टी को डबल डिजिट में पहुंचा सके और ना ही गठबंधन को. अब, इस बार तेजस्वी यादव के कंधों पर पार्टी और गठबंधन को डबल डिजिट में पहुंचाने की चुनौती है.

2019 में नहीं खुला था खाताः राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो तेजस्वी के लिये ऐसा करना आसान नहीं होगा. लालू के जमाने में कई जिताऊ उम्मीदवार थे. तेजस्वी अभी जिताऊ उम्मीदवार की खोज कर रहे हैं. ऐसे में तेजस्वी के लिए लोकसभा चुनाव में राजद को शून्य से शिखर तक पहुंचाने की चुनौती होगी. बिहार में 2004 के बाद एनडीए के सामने लालू प्रसाद यादव के गठबंधन को लगातार हार का सामना करना पड़ा. 2019 में राजद की ऐसी स्थिति हो गई थी कि पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस और वामपंथी दल हैं. 2004 को छोड़ दें तो तीनों का जो प्रदर्शन रहा है ना तो अकेले बल्कि साथियों के साथ भी डबल डिजिट पर नहीं पहुंच पाए हैं.

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तेजस्वी के कंधे पर बड़ी जिम्मेवारीः एक समय लालू के पास शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, रघुनाथ झा जैसे उम्मीदवार हुआ करते थे. 2020 विधानसभा में तेजस्वी यादव ने अपने बल पर पार्टी और गठबंधन को बड़ी जीत दिलाई, हालांकि सरकार बनाने से जरूर चूक गए. अब एक बार फिर से तेजस्वी के कंधे पर न केवल आरजेडी बल्कि गठबंधन को डबल जीत में ले जाने की बड़ी चुनौती है.

"पिछले 10 सालों से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी की सरकार ने जो वादा किया था, वह सब जुमला साबित हुआ. जबकि, तेजस्वी यादव ने 17 महीने में काम करके दिखाया है. इसलिए 2019 वाली स्थिति अब कभी आने वाली नहीं है. इसका उल्टा इस बार होने वाला है."- मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता

तेजस्वी यादव.
तेजस्वी यादव.


तेजस्वी परिपक्व हो रहे हैंः राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे का कहना है तेजस्वी ने विधानसभा में रिजल्ट दिया है. लोकसभा चुनाव में भी स्टार प्रचारक होंगे. उनके साथ वाम दलों का गठबंधन भी है. शून्य से शिखर तक पार्टी को ले जाने की उनके पास चुनौती है. लोकसभा चुनाव उनके लिए आसान नहीं है. वहीं राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय का कहना है कि तेजस्वी यादव परिपक्व नेता होते जा रहे हैं. जिताऊ उम्मीदवार की तो खोज कर ही रहे हैं, नए युवा चेहरे का प्रयोग भी कर रहे हैं. इसलिए बिहार में महागठबंधन एनडीए को कठिन टक्कर देगा.

इसे भी पढ़ेंः विधानसभा चुनाव से सबक लेकर गलती नहीं दोहराना चाहते तेजस्वी, कांग्रेस और वामपंथी दलों का अलग डिमांड

इसे भी पढ़ेंः देखिए ऐसे काम करता है RJD का 'War Room', हर बूथ पर लालू-तेजस्वी की नजर, इन नेताओं को सौंपी जिम्मेदारी

इसे भी पढ़ेंः पप्पू यादव होंगे पूर्णिया से महागठबंधन के उम्मीदवार? देर रात लालू और तेजस्वी से मिले JAP प्रमुख

इसे भी पढ़ेंः राजद ने लोकसभा की सीटों पर जीत का किया दावा, नवादा में बोले शक्ति सिंह यादव- 'राजद ए टू जेड की पार्टी'

लोकसभा चुनाव तेजस्वी के लिए चुनौती.

पटना: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तिथियों की घोषणा हो गयी है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2004 में राजद ने 22 सीट जीती थी, तो कांग्रेस ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. इस तरह से 25 सीटों पर लालू यादव के गठबंधन की जीत हुई थी. लेकिन, उसके बाद लालू यादव लोकसभा के किसी चुनाव में ना तो पार्टी को डबल डिजिट में पहुंचा सके और ना ही गठबंधन को. अब, इस बार तेजस्वी यादव के कंधों पर पार्टी और गठबंधन को डबल डिजिट में पहुंचाने की चुनौती है.

2019 में नहीं खुला था खाताः राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो तेजस्वी के लिये ऐसा करना आसान नहीं होगा. लालू के जमाने में कई जिताऊ उम्मीदवार थे. तेजस्वी अभी जिताऊ उम्मीदवार की खोज कर रहे हैं. ऐसे में तेजस्वी के लिए लोकसभा चुनाव में राजद को शून्य से शिखर तक पहुंचाने की चुनौती होगी. बिहार में 2004 के बाद एनडीए के सामने लालू प्रसाद यादव के गठबंधन को लगातार हार का सामना करना पड़ा. 2019 में राजद की ऐसी स्थिति हो गई थी कि पार्टी का खाता तक नहीं खुला था. महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस और वामपंथी दल हैं. 2004 को छोड़ दें तो तीनों का जो प्रदर्शन रहा है ना तो अकेले बल्कि साथियों के साथ भी डबल डिजिट पर नहीं पहुंच पाए हैं.

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तेजस्वी के कंधे पर बड़ी जिम्मेवारीः एक समय लालू के पास शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, रघुनाथ झा जैसे उम्मीदवार हुआ करते थे. 2020 विधानसभा में तेजस्वी यादव ने अपने बल पर पार्टी और गठबंधन को बड़ी जीत दिलाई, हालांकि सरकार बनाने से जरूर चूक गए. अब एक बार फिर से तेजस्वी के कंधे पर न केवल आरजेडी बल्कि गठबंधन को डबल जीत में ले जाने की बड़ी चुनौती है.

"पिछले 10 सालों से केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी की सरकार ने जो वादा किया था, वह सब जुमला साबित हुआ. जबकि, तेजस्वी यादव ने 17 महीने में काम करके दिखाया है. इसलिए 2019 वाली स्थिति अब कभी आने वाली नहीं है. इसका उल्टा इस बार होने वाला है."- मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता

तेजस्वी यादव.
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तेजस्वी परिपक्व हो रहे हैंः राजनीतिक विश्लेषक अरुण पांडे का कहना है तेजस्वी ने विधानसभा में रिजल्ट दिया है. लोकसभा चुनाव में भी स्टार प्रचारक होंगे. उनके साथ वाम दलों का गठबंधन भी है. शून्य से शिखर तक पार्टी को ले जाने की उनके पास चुनौती है. लोकसभा चुनाव उनके लिए आसान नहीं है. वहीं राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय का कहना है कि तेजस्वी यादव परिपक्व नेता होते जा रहे हैं. जिताऊ उम्मीदवार की तो खोज कर ही रहे हैं, नए युवा चेहरे का प्रयोग भी कर रहे हैं. इसलिए बिहार में महागठबंधन एनडीए को कठिन टक्कर देगा.

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Last Updated : Mar 20, 2024, 9:56 PM IST
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