अजमेर: जिले के सुरसुरा गांव में लोक देवता वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली है. वीर तेजाजी के भक्तों के लिए यह स्थान तीर्थ स्थली है. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को वीर तेजा दशमी मनाई जाती है. इस दिन यहां विशाल मेला भरता है. वीर तेजाजी में हर जाति, धर्म के लोगों में गहरी आस्था है. लिहाजा राजस्थान में हर गांव, शहर में तेजाजी के थानक बने हुए है, जहां वीर तेजाजी को पूजा जाता है. लोग इन स्थानों पर जाकर दर्शन कर पुण्य लाभ कमाते हैं. खासकर तेजा दशमी पर सभी थानकों पर मेले का आयोजन रहता है. जानिए कैसे एक वचन के लिए गौ भक्त वीर तेजाजी ने अपना बलिदान दे दिया.
15 दिन पहले से ही भरने लगता है मेला : अजमेर से 40 किलोमीटर और किशनगढ़ से 12 किलोमीटर दूर किशनगढ़- हनुमानगढ़ मेगा हाईवे पर सुरसुरा गांव है. यहां से 20 से 25 किलोमीटर दूरी पर पनेर में लोक देवता वीर तेजाजी का सुसराल है और सुरसुरा से 5.3 किलोमीटर मीटर दूर त्यौद गांव में वीर तेजाजी का ननिहाल है. सुरसुरा गांव वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली के रूप में देशभर में विख्यात है. यूं तो लोक देवता वीर तेजाजी जाट समाज के आराध्य देव है, लेकिन तेजाजी में हर जाति, समाज के लोगों की गहरी आस्था है. वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली सुरसुरा धाम में वर्षभर श्रद्धालुओं के आने-जाने का सिलसिला रहता है, लेकिन वीर तेजा दशमी से 15 दिन पहले से यहां मेले जैसा माहौल रहता है. राजस्थान ही नहीं अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं.
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हाल ही में रामदेवरा का मेला भी जारी है. ऐसे में रामदेवरा आते-जाते श्रद्धालु वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली धाम आकर दर्शन करते हैं. सुरसुरा धाम में विशाल मंदिर परिसर है. परिसर में यहां 6 से 7 सीढ़ियां नीचे उतरने के बाद वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली है और समीप ही उस नाग की बांबी भी है जिसने वीर तेजाजी को डसा था. सुरसुरा गांव बसने से पहले कभी यहां काफी घना जंगल था. यहां दो बड़े तालाब थे. वक़्त के साथ एक तलाब लुप्त हो गया. लुप्त हुए तालाब की पाल पर खेजड़ी के पेड़ के नीचे बासक नाग की बांबी थी जो आज भी तेजाजी के विशाल मंदिर में मौजूद है. मान्यता है कि यहां श्रद्धालुओं को कभी-कभी बासक नाग बाम्बी में से निकलकर दर्शन देते हैं. वर्तमान में सुरसुरा गांव इस बाम्बी के ही चारों ओर बसा हुआ है.
गांव का ऐसे पड़ा नाम सुरसुरा : प्रचलित दंतकथा के अनुसार सुरसुरा में वीर तेजाजी के बलिदान के बाद यहां सुर्रा नाम का एक खाती बैलगाड़ी लेकर यहां से जा रहा था. रात होने के कारण वह वीर तेजाजी की निर्माण स्थल पर ही रुक गया. रात को चोरों ने उसके बेल चुरा लिए, लेकिन चोर बैलों को ज्यादा दूर नहीं ले जा पाए. रात के अंधेरे में चोर गांव में ही इधर-उधर भटकते रहे. चोरों को वीर तेजाजी के धाम की दिव्यता का आभास हो गया. लिहाजा चोर सुबह सुर्रा खाती से माफी मांग कर उसके बैल वहीं छोड़ गए. वीर तेजाजी की निर्वाण स्थली पर यह चमत्कार देख सुर्रा अपने परिवार और गाय बेल के साथ यही बस गया. उसमें वीर तेजाजी महाराज के प्रति गहरी आस्था जुड़ गई. धीरे-धीरे यहां गांव बस गया. आज भी पुराने लोग गांव को सुर्रा के नाम से ही पुकारते है, जबकि आम बोल चाल की भाषा में गांव को सुरसुरा के नाम से ही जाना जाने लगा.
यूं आए तेजाजी सुरसुरा : मंदिर समिति के पदाधिकारी गिरधर लाल सैनी बताते है कि 9वीं सदी पहले तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खरनाल में हुआ था. वीर तेजाजी खरनाल से अपने सुसराल पनेर गए थे. वो सुसराल पहुंचकर आराम करने लगे. कुछ देर बाद ही गांव में एक गुर्जर जाति की महिला मदद मांगने के लिए तेजाजी के पास आई और बोली कि उसकी गायों को चोर ले गए. गौ भक्त वीर तेजाजी ने गायों को चोरों से छुड़ाने का महिला को वचन दे दिया. वचन पूरा करने के लिए तेजाजी घोड़ी पर सवार होकर किशनगढ़ के समीप पहुंचे, जहां चोरों से युद्ध करके तेजाजी गायों को छुड़ाकर ले आए, लेकिन एक गाय का बछड़ा चोरों के पास ही रह गया.
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उन्होंने कथा में आगे बताया कि महिला ने कहा कि पूरी गायों का मोल वह बछड़ा ही था जिसको आप लेकर नहीं आए. तब तेजाजी वापस चोरों से बछड़ा छुड़ाने के लिए रवाना हुए. इस दौरान तब यही तालाब के पास खेजड़ी के समीप पहुंचे, जहां सर्प की बाम्बी थी. बाम्बी के समीप आग की लपटें देख तेजाजी ने सर्प को जलने से बचा लिया. इस पर सर्प खुश होने के बजाय दुखी होकर बोला कि मेरी गति हो रही थी और तुमने रुकावट डाल दी. तब सर्प ने वीर तेजाजी को कहा कि मैं तुम्हे डसुंगा. वीर तेजाजी ने सर्प को वचन दिया कि मुझे बछड़ा चोरों से छुड़ाकर लाने दो, उसके बाद मुझे डस लेना. चोरों से भयानक युद्ध करने के बाद तेजाजी ने बछड़ा छुड़ा लिया और उसे महिला को संभलवाकर वचन के अनुसार वह सर्प की बाम्बी के पास पंहुच गए. तेजाजी को रक्त रंजित देख सर्प ने कहा कि शरीर पर कोई जगह नहीं है जहां घाव और खून नहीं हो. ऐसे में कहा डसूं. तब वीर तेजाजी ने अपनी जीभ बाहर निकालकर सर्प को दिखाई और बोले अभी यह सुरक्षित है. तब सर्प ने वीर तेजाजी की जीभ पर डसा. सर्प ने वचनबद्ध रहने से प्रसन्न होकर वीर तेजाजी को वरदान दिया कि वह सर्पों के देवता बनेंगे. सर्प से डसे हर व्यक्ति का विष तेजाजी के थानक पर आने पर खत्म हो जाएगा.
सती हुई थी पत्नी पेमल : सैनी बताते है कि वीर तेजाजी ने सर्पदंश के बाद यहीं पर देह त्याग दी थी. जब उनकी पत्नी को पता चला तो वह यहां आई और तेजाजी की देह को अपनी गोद में रखकर सती हो गई. उन्होंने बताया कि यहां से उनकी घोड़ी अपने आप खरनाल चली गई, जहां तेजाजी के वियोग में घोड़ी ने भी प्राण त्याग दिए.
बांबी में होते है सर्प के दर्शन : लोक देवता वीर तेजाजी की निर्माण स्थली के समीप सर्प की बाम्बी है. बताया जाता है कि इस बांबी में आज भी सर्प रहता है जो कभी छोटा तो कभी बड़े आकार में श्रद्धालुओं को साक्षात दर्शन देता है. मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु सर्प को पवित्र और दिव्य मानते हैं. उसको वीर तेजाजी का ही रूप मानते मानते हैं. सर्प के दर्शन होना शुभ माना जाता है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं. उन्हें यकीन है कि तेजाजी उनकी हर मुश्किल आसान करेंगे. यही वजह है कि जो एक बार यहां आता है वह बार बार आने की इच्छा रखता है.
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अजमेर में इन प्रमुख थानकों में लगे मेले : अजमेर में उसरी गेट पर प्राचीन तेजाजी का मंदिर है. यहां सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना जाना लगा है. यहां नारियल और मिठाई भोग श्रद्धालु लगाते हैं. कई श्रद्धालु घर में बनी खीर या चूरमे का भोग भी लगाते हैं. देर रात तक यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इसी तरह गुलाब बाड़ी स्थित तेजाजी की देवली और कोटड़ा क्षेत्र में स्थित तेजाजी के थानक पर मेले लगाए गए हैं.