ETV Bharat / state

भिक्षावृत्ति और बाल मजदूरी से निकालकर 500 बच्चों की जिंदगी संवार रहे आगरा के "पारस" - Teachers Day 2024

बाल मजदूरी और भिक्षावृत्ति से कुचक्र में फंसे 500 बच्चों के लिए आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता नरेश "पारस" साबित हो रहे हैं. नरेश 16 साल से शहर के ऐसे जरूरतमंदों की जिंदगी में शिक्षा का उजियारा फैलाने के साथ उन्हें जीवन की राह दिखा रहे हैं.

आगरा के "पारस"
आगरा के "पारस" (Photo Credit: ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 5, 2024, 1:56 PM IST

बेसहारा बच्चों की जिंदगी संवार रहे आगरा के "पारस". (Video Credit : ETV Bharat)

आगरा : सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस वाकिए में "पारस" साबित हुए हैं. ऐसा हम नहीं उनके काम और उद्देश्य को देख सुनकर आगरा का हर शख्स कह रहा है. नरेश पारस शहर की सड़कों पर भीख मांगने वाले और बाल मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए एक मसीहा, फरिश्ता और शिक्षक हैं. नरेश 16 साल से ऐसे बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं. साथ ही खुद पढ़ाते भी हैं. इसके अलावा बिछड़े बच्चों को उनके माता पिता या संबंधियों तक पहुंचाने का काम करते हैं.



जगदीशपुरा थाना क्षेत्र निवासी नरेश पारस बताते हैं कि बात साल 2007 की है. मुझे जगदीशपुरा थाना के बाहर एक महिला रोते हुए मिली थी. पूछने पर बताया कि 2002 में मेरे तीन बच्चे लापता हो गए थे. अभी तक पुलिस ने मेरे बच्चों की गुमशुदगी नहीं लिखी है. महिला की बात सुनकर मैं हैरान रह गया और पुलिस के कामकाज की कार्यशैली ने झकझोर दिया. मैंने मानवाधिकार आयोग और बाल आयोग में शिकायत करवाई. जिसके बाद पुलिस ने बच्चों की गुमशुदगी दर्ज की. हालांकि बच्चे नहीं मिले. इसके बाद मन बहुत व्यथित हुआ. मैंने तभी से अपना जीवन असहाय लोगों और उनके बच्चों के लिए समर्पित कर दिया.





नरेश पारस बताते हैं कि गरीब और असहाय बच्चे शिक्षा से काफी दूर हैं. ऐसे में वे भिक्षावृत्ति और बाल मजदूरी करते हैं. ऐसे कुछ बच्चों को मैंने चिह्नित किया और अधिकारियों से मिला. अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद बाल मजदूरी और भिक्षावृत्ति से निकालकर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रत्यन शुरू किया. सभी बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया. इसके बाद फुटपाथ और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए खुद भी पढ़ाना शुरू कर दिया. इसमें तमाम बाधाएं आईं. हर बाधा को पार करके करीब पांच सौ बच्चों को शिक्षा से जोड़ा गया. इसके अलावा अब तक 250 से अधिक लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलवा चुका हूं. इसमें पुलिस का भी सहयोग मिलता है. साथ ही वेश्यावृत्ति गैंग के चंगुल से कई बच्चियों को बचाने में सफलता मिली.


नरेश पास की पाठशाला में पढ़ने वाले छात्र शेरखान ने बताया कि इसी साल मैंने 12वीं पास की है. मेरा परिवार घरों नीबू और मिर्ची टांगने का काम करता है. बमुश्किल परिवार का खर्च चलता है. ऐसे में नरेश पारस सर जब हमारे यहांं आए तो मैं शिक्षा से जुड़ा और आज स्नातक में पहुंच गया हूं. निर्झरा ने बताया कि हम तीन भाई और बहन पढ़ रहे हैं. हमें यहां पर नरेश पारस सर ही पढ़ाने आते थे. छात्रा करीना ने बताया कि पिता की मौत हो चुकी हैं. सर ने हमारा दाखिला कराया. मैंने 10वीं प्रथम श्रेणी में पास की है. आगे भी पढ़ाई करूंगी. हमारे समाज के 15 से अधिक बच्चे आज स्कूल में पढ़ रहे हैं.




यह भी पढ़ें : शिक्षक दिवस : भारत की वो हस्तियां जिन्हें दुनिया मानती है 'विश्व गुरु' - All Time Great Teachers

यह भी पढ़ें : कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं - Teachers Day

बेसहारा बच्चों की जिंदगी संवार रहे आगरा के "पारस". (Video Credit : ETV Bharat)

आगरा : सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस वाकिए में "पारस" साबित हुए हैं. ऐसा हम नहीं उनके काम और उद्देश्य को देख सुनकर आगरा का हर शख्स कह रहा है. नरेश पारस शहर की सड़कों पर भीख मांगने वाले और बाल मजदूरी करने वाले बच्चों के लिए एक मसीहा, फरिश्ता और शिक्षक हैं. नरेश 16 साल से ऐसे बच्चों को स्कूलों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं. साथ ही खुद पढ़ाते भी हैं. इसके अलावा बिछड़े बच्चों को उनके माता पिता या संबंधियों तक पहुंचाने का काम करते हैं.



जगदीशपुरा थाना क्षेत्र निवासी नरेश पारस बताते हैं कि बात साल 2007 की है. मुझे जगदीशपुरा थाना के बाहर एक महिला रोते हुए मिली थी. पूछने पर बताया कि 2002 में मेरे तीन बच्चे लापता हो गए थे. अभी तक पुलिस ने मेरे बच्चों की गुमशुदगी नहीं लिखी है. महिला की बात सुनकर मैं हैरान रह गया और पुलिस के कामकाज की कार्यशैली ने झकझोर दिया. मैंने मानवाधिकार आयोग और बाल आयोग में शिकायत करवाई. जिसके बाद पुलिस ने बच्चों की गुमशुदगी दर्ज की. हालांकि बच्चे नहीं मिले. इसके बाद मन बहुत व्यथित हुआ. मैंने तभी से अपना जीवन असहाय लोगों और उनके बच्चों के लिए समर्पित कर दिया.





नरेश पारस बताते हैं कि गरीब और असहाय बच्चे शिक्षा से काफी दूर हैं. ऐसे में वे भिक्षावृत्ति और बाल मजदूरी करते हैं. ऐसे कुछ बच्चों को मैंने चिह्नित किया और अधिकारियों से मिला. अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद बाल मजदूरी और भिक्षावृत्ति से निकालकर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए प्रत्यन शुरू किया. सभी बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया. इसके बाद फुटपाथ और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए खुद भी पढ़ाना शुरू कर दिया. इसमें तमाम बाधाएं आईं. हर बाधा को पार करके करीब पांच सौ बच्चों को शिक्षा से जोड़ा गया. इसके अलावा अब तक 250 से अधिक लापता बच्चों को उनके परिजनों से मिलवा चुका हूं. इसमें पुलिस का भी सहयोग मिलता है. साथ ही वेश्यावृत्ति गैंग के चंगुल से कई बच्चियों को बचाने में सफलता मिली.


नरेश पास की पाठशाला में पढ़ने वाले छात्र शेरखान ने बताया कि इसी साल मैंने 12वीं पास की है. मेरा परिवार घरों नीबू और मिर्ची टांगने का काम करता है. बमुश्किल परिवार का खर्च चलता है. ऐसे में नरेश पारस सर जब हमारे यहांं आए तो मैं शिक्षा से जुड़ा और आज स्नातक में पहुंच गया हूं. निर्झरा ने बताया कि हम तीन भाई और बहन पढ़ रहे हैं. हमें यहां पर नरेश पारस सर ही पढ़ाने आते थे. छात्रा करीना ने बताया कि पिता की मौत हो चुकी हैं. सर ने हमारा दाखिला कराया. मैंने 10वीं प्रथम श्रेणी में पास की है. आगे भी पढ़ाई करूंगी. हमारे समाज के 15 से अधिक बच्चे आज स्कूल में पढ़ रहे हैं.




यह भी पढ़ें : शिक्षक दिवस : भारत की वो हस्तियां जिन्हें दुनिया मानती है 'विश्व गुरु' - All Time Great Teachers

यह भी पढ़ें : कौन थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जिनकी जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं - Teachers Day

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.